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Showing posts from May, 2020

8.3.1 कक्षा - अष्टमी, विषय: - संस्कृतम् तृतीय: पाठ: (डिजीभारतम् ) Class 8th, Subject - Sanskrit Lesson-3 (DijiBhartam)

        8.3 कक्षा - अष्टमी,  विषय: - संस्कृतम्              तृतीय: पाठ:  (डिजीभारतम् )        Class 8th,   Subject - Sanskrit               Lesson-3 (DijiBhartam)        ************************************ नमोनमः।  अष्टमकक्ष्यायाः रुचिरा भाग- 3 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।  अद्य वयं तृतीयं पाठं पठामः।  पाठस्य नाम अस्ति -                डिजीभारतम्        ************************************         प्रस्तुत पाठ  "डिजिटल-इण्डिया" के मूल भाव को लेकर लिखा गया निबन्धात्मक पाठ है। इसमें वैज्ञानिक प्रगति के उन आयामों को छुआ गया है, जिनमें हम एक "क्लिक" द्वारा बहुत कुछ कर सकते हैं। आज इन्टरनेट ने हमारे जीवन को कितना सरल बना दिया है। हम भौगोलिक दृष्टि से एक दूसरे के अत्यन्त निकट आ गए हैं। इसके द्वारा जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप सुविधजनक हो गए हैं। ऐसे ही भावों को यहाँ सरल संस्कृत में व्यक्त किया गया है।      ---------------------------------------------------------          अद्य संपूर्णविश्वे "डिजिटलइण्डिया" इत्यस्य चर्चा श्रूयते। अर्थ-

7.3.1 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम् तृतीय: पाठ: (स्वावलम्बनम् ) Class 7th, Subject - Sanskrit Lesson-3 (Svaavlambanam)

       7.3 कक्षा - सप्तमी,  विषय: - संस्कृतम्             तृतीय: पाठ:  (स्वावलम्बनम् )        Class 7th,   Subject - Sanskrit        Lesson-3 (Svaavlambanam)        ************************************ नमोनमः।  सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-2 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।  अद्य वयं तृतीयं पाठं पठामः।  पाठस्य नाम अस्ति -                     स्वावलम्बनम्         ************************************  स्वावलम्बनम् =  स्व+अवलम्बनम्। स्व               - आत्म अवलम्बनम्   -  निर्भर / स्वामित्व इस प्रकार स्वावलम्बनम् का अर्थ हुआ आत्मनिर्भता।   आत्मनिर्भरता स्वस्य  कार्यं स्वयं करणेन भवति।            इस पाठ में संख्यावाचक शब्द,  समय सूचक शब्द (वादनम्),  तत् (वह) और एतत् (यह) शब्दों के विषय में बताया गया है         तथा हम आत्मनिर्भर होने के लाभ के विषय में भी जानेंगे। यदि हम आत्म निर्भर रहें तो हमें अन्य लोगों पर निर्भर नहीं रहना होगा तथा आवश्यकता के समय पर हम अपना कार्य स्वयं कर सकते हैं।         यथा- विद्यार्थी विद्यालय आने के समय पर अपने कपड़े स्वयं पहन सकते हैं, अपनी पु

6. 3 कक्षा *षष्ठी* तृतीय: पाठ: (शब्दपरिचयः - 3 ) Class 6th, Lesson-3 ( ShabdParichaya - 3)

              6.3  कक्षा-षष्ठी,  तृती य: पाठ:                       ( शब्दपरिचयः - 3  )             Class 6th, Lesson-3           ( ShabdParichaya - 3)        ************************************  नमोनमः।  षष्ठीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग- 1 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।  अद्य वयं  तृतीयं पाठं  पठामः।   पाठस्य नाम अस्ति  शब्दपरिचयः - 3 । अयं पाठः नपुंसकलिंग-शब्दानां विषये अस्ति   । संस्कृते त्रिविधाः शब्दाः सन्ति।  1) पुंलिङ्गशब्दाः । 2) स्त्रीलिङ्गशब्दाः। 3) नपुंसकलिङ्गशब्दाः ।         इदानीं  नपुंसकलिङ्गशब्दान्  पश्याम:- 1) खनित्रम्.          - कुदाल 3) विश्रामगृहम्      - विश्रामालय 4) भित्तिकम्         - दीवार 5) अङ्गुलीयकम्   - अंगूठी 6) बसयानम्         - बस 7) रेलस्थानकम्     - रेलवे स्टेशन 8) करवस्त्रम्         - रुमाल 9) पुराणम्            - पुराना 10) कदलीफलम्   - केले के फल 11) मधुरम्           - मीठे 12) पोषकम्         - पोषक       ************************************                 नपुंसकलिङ्ग-शब्दाः                  - समीप के लिए -  एतत् शब्द  ए

कक्षा 9 मङ्गलम् (Mangalam)

                मङ्गलम् (Mangalam)           यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो  यस्यामन्नं कृष्टयः सं बभूवुः।         यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत् सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ।।1।। अर्थ -   जिस (भूमि)  में महासागर, नदियाँ और जलाशय (झील, सरोवर आदि) विद्यमान हैं, जिसमें अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ उपजते हैं तथा कृषि, व्यापार आदि करने वाले लोग सामाजिक संगठन बना कर रहते हैं (कृष्टयः सं बभूवुः), जिस (भूमि) में ये साँस लेते (प्राणत्) प्राणी चलते-फिरते हैं, वह मातृभूमि हमें प्रथम भोज्य पदार्थ (खाद्य-पेय) प्रदान करे ।।1।।            -----------------------------------             यस्याश्चतस्र  प्रदिशः पृथिव्या यस्यामन्नं कृष्टयः सं बभूवुः।            या बिभर्ति बहुध प्राणदेजत्  सा नो भूमिर्गोष्वप्यन्ने दधातु ।।2।। अर्थ -   जिस भूमि में चार दिशाएँ तथा उपदिशाएँ अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ (फल, शाक आदि) उपजाती हैं; जहाँ कृषि-कार्य करने वाले सामाजिक संगठन बनाकर रहते हैं (कृष्टयः सं बभूवुः); जो (भूमि) अनेक प्रकार के प्राणियों (साँस लेने वालों तथा चलने-फिरने वाले जीवों) को धारण करती है, वह मातृभूमि हमें ग

9.1 कक्षा नवमी, प्रथम: पाठ: (भारतीवसन्तगीतिः ) Class 9th, Lesson-1 ( BharatiVasantGeetiH )

9.1    कक्षा नवमी,  प्रथम: पाठ:   (भारतीवसन्तगीतिः ) Class 9th, Lesson-1     (BharatiVasantGeetiH )        ************************************ नमोनमः।  नवमकक्ष्यायाः शेमुषी भाग- 1 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।  अद्य वयं प्रथमं पाठं पठामः।   पाठस्य नाम अस्ति भारतीवसन्तगीतिः।     भारतीवसन्तगीतिः   वसन्तगीतिः = वसंतस्य गीति:          भारती    -    सरस्वती वसन्त     -    वसंत ऋतु गीतिः     -     गीत         सरस्वती के वसंत ऋतु के गीत।                     ************************************          अयं पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः पण्डित-जानकीवल्लभ-शास्त्रिाणः "काकली" इति गीतसंग्रहात् सङ्कलितोsस्ति। प्रकृतेः सौन्दर्यम् अवलोक्य एव सरस्वत्यः वीणायाः मधुरझङ्कृतयः प्रभवितुं शक्यन्ते इति भावनापुरस्सरं कविः प्रकृतेः सौन्दर्यं वर्णयन् सरस्वतीं वीणावादनाय सम्प्रार्थयते। यह गीत आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रख्यात कवि पं. जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना ‘काकली’ नामक गीतसंग्रह से संकलित है। इसमें सरस्वती की वन्दना करते हुए कामना की गई है कि हे सरस्वती! ऐसी वीणा बजाओ, जिससे म