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Showing posts with the label संस्कृत-व्याकरणम्

उपसर्ग – Upsarg

  उपसर्ग – Upsarg (Sanskrit Vyakaran) उपसर्ग ऐसे शब्दांश हैं, जो किसी शब्द के पूर्व जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं या उसके अर्थ में विशेषता ला देते हैं।  Prefix (उपसर्ग – Upsarg) is a word that comes before the stem of a word, here a Hindi word. They are used to alter the meaning of a word. Study of prefixes is important as it can help us to determine the meaning of a given word. In Hindi, there are various types of suffixes which include prefixes from Sanskrit (संस्कृत) and Hindi. Prefixes from Sanskrit are very important as most of the Hindi words are words which have been derived from Sanskrit words. Study of these prefixes will not only be helpful for Hindi learning but will also shed light on the linguistic connection between Sanskrit and Hindi. Prefix / Meaning /           Example /        Words 1) अ (a) / नहीं (nahi – not)   /अज्ञान (agyan – ignorance), अभाव (abhaav – lack) 2) अति (ati)अधिक (adhik –...

क्त्वा/ ल्यप् प्रत्यय: (katva/Layap Prattya)

   क्त्वा/ ल्यप्  प्रत्यय:  (katva/Layap Prattya) - Vyakaran  क्त्वा (त्वा) - कर।       यथा- गत्वा- जाकर ल्यप् (य) - कर ।       यथा-  आगत्य - आकर  इदानीम् वयं क्त्वा ल्यप् च प्रत्ययोः प्रयोगं कृत्वा भुतकालिक वाक्यरचनाः कुर्मः।  यदा वयं एकां क्रियां कृत्वा अन्यामपि क्रियां कुर्मः तदा प्रथमायां क्रियायां क्त्वा प्रत्ययस्य प्रयोगःभवति। अब हम "क्त्वा" और "ल्यप"  प्रत्यय का प्रयोग कर भूतकाल में वाक्य रचना करेंगे।  जब हम एक क्रिया को करके दूसरी क्रिया करते हैं तो प्रथम क्रिया में "क्त्वा"  प्रत्यय का प्रयोग होता है।  Here we will make use of KATVA and LAYAP Pratyaa in Bhootkaal ( Past Tense ) and try to make sentenses. When we do kriya ( act of doing something ) at that time karm of that kriyaa would come under Pratham Kriyaa. गत्वा (गम+क्त्वा) = जाकर = after going  खादित्वा= खाकर = after eating पीत्वा = पीकर = after drinking हसित्वा = हँसकर = after laughing भूत्वा = होकर = after happening...

कर्तृ(कर्ता) क्रिया च पदानां ज्ञानम् (कर्ता तथा क्रिया शब्दों की पहचान)-

              कर्तृ क्रिया च पदानां ज्ञानम् -         (कर्ता तथा क्रिया शब्दों की पहचान)    वाक्यः- छात्रः पुस्तकं पठति। कर्तृ (कर्ता)- छात्रः।  कर्म- पुस्तकं ।  क्रिया- पठति।                   कर्ता की पहचान (Karta) 1) क्रिया के करने वाले को   कर्ता कहते हैं।।  2) सदा प्रथमा / तृतीया विभक्ति में होता है। 3) अधिकांश  संज्ञा शब्द - कोई जीवित (मनुष्य, पशु आदि) होता है।  4) वाक्य में अधिकांश सबसे पहले आता है,  छात्रः पुस्तकं पठति।       परन्तु सदा नहीं ।     यथा - वृक्षेषु खगाः सन्ति।                    क्रिया की पहचान (Kriya) 1) किसी क्रिया के होने का संकेत देती है। जैसे- पठति- पढ़ना, लिखति- लिखना,  खादति- खाना।  2) धातु होती है। यथा- पठति , लिखति,  खादति।  3) वाक्य में अधिकांश सबसे अंत में आती है,  छात्रः पुस्तकं पठति ।  परन्तु ...

विभक्ति-परिचयः (Vibhakti parichaya)

 विभक्ति-परिचयः (Vibhakti parichaya) 1) कर्ता ( प्रथमा)                             -                ने 2) कर्म  (द्वितीया)                          -                को 3) करण  (तृतीया)                       -                से, के द्वारा 4) सम्प्रदान (चतुर्थी)                   -               के लिए 5) अपादान  (पञ्चमी)                   -                से (पृथक)  6) संबंध (षष्ठी)      ...

संस्कृत-घटी ( Sanskrit Clock )

            संस्कृत-घटी ( Sanskrit Clock )             हमारे सनातन धर्म का दर्शन कराती-    12:00  के स्थान पर " आदित्याः " लिखा हुआ है जिसका अर्थ यह है कि आदित्य/ सूर्य 12 प्रकार के होते हैं- 1) चैत्र-धाता,                   2) वैशाख-अर्यमा,  3) ज्येष्ठ-मित्र                    4) आषाढ़-अरूण,  5) श्रावण-इन्द्र,                6) भाद्रपद- विवस्वान,  7)  अश्विन-पूषा ,               8) कार्तिक-पर्जन्य,  9) मार्गशीर्ष-अंशुमान,    10) पौष-भग,  11) माघ-त्वष्टा,               12) फ़ाल्गुन-जिष्णु                  --------------------------- 1:00  के स्थान पर " ब्रह्म " लिखा हुआ है इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म एक ही है -...

महेश्वर सूत्राणि (Maheshwar sutrani ) उच्चारण-अभ्यासार्थंम्

उच्चारण-अभ्यासार्थं  संस्कृत-व्याकरण-ज्ञानार्थं च-            महेश्वर सूत्राणि (Maheshwar sutrani )      माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि)  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।  इनका उललेख पाणिनि कृत अष्टाध्यायी में किया है।  इसमें लगभग ४००० सूत्र  है , जो आठ अध्यायों में विभाजित हैं।  पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। इन्हें ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहा जाता है। प्रत्याहार का अर्थ होता है – संक्षिप्त कथन । स्वर वर्णों को अच् एवं व्यंजन वर्णों को हल् कहा जाता है। माहेश्वर सूत्रों को उच्चारण अभ्यास हेतु प्रयोग में लाया जा है। इन सूत्रों की कुल संख्या १४ है जो निम्नलिखित हैं: १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।               ------------------------- कहा जाता है कि ...

उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)

             उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)                                                क्रम /  संस्कृत-सूत्राणि / वर्ण / उच्चारण स्थान/ श्रेणी   १) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः।  २) इ-चु-य-शानां तालु।  ३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा।  ४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: ।  ५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ ।  ६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च ।  ७) एदैतौ: कण्ठ-तालु ।  ८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् ।  ९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् ।  १) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः। -अकार (अ, आ), कु= कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार (ह्), और विसर्जनीय (:) का उच्चारण स्थान कंठ और जीभ का निचला भाग  "कंठ्य"  है। २) इ-चु-य-शानां तालु।  -इकार (इ, ई ) , चु= चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार (य) और शकार (श) इनका “ तालु और जीभ / तालव्य ” उच्चारण स्थान है।   ३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा।  -ऋकार (ऋ), टु = टवर्ग ( ट, ठ, ड, ...

संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय

                   संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय वाक्य के मुख्यतः दो भाग होते हैं। 1.कर्ता 2. क्रिया संस्कृत भाषा के वाक्यों  में *क्रिया (Verb)* के लिए *धातु* का प्रयोग की जाती है। यथा- रामः फलं *खादति।*  राम फल *खा रहा है।* Ram is *Eating* an Apple. उपर्युक्त वाक्य में *खादति* क्रिया है जो धातु के रूप में प्रयोग की जाती है। धातुओं के दस लकार होते हैं- " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् ,  लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " । •• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)। •• इन दस लकारों में से ~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और ~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है। •• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से  पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध (बनाए) किये जाते...

संस्कृत व्याकरण- (1) वर्ण, (2) प्रत्याहार (3) प्रयत्न

संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Vyakaran)- (1) वर्ण, (2) प्रत्याहार (3) प्रयत्न संस्कृत व्याकरण को *माहेश्वर शास्त्र* भी कहा जाता है। 👉 माहेश्वर का अर्थ है-- *शिव जी* 👉 माहेश्वर सूत्र की संख्या --- *14*           ...

संस्कृत-व्याकरणम्- सन्धिः

संस्कृत व्याकरणम्- सन्धिः (Sanskrit Vyakaran- Sandhi) 🌸🌸🌸 सन्धि --: 🌸🌸🌸 👉 *सन्धि* ----:  सन्धि का अर्थ है -- जोड़ अथवा मेल । दो शब्दों के मिलने से जो वर्ण संबन्धी परिवर्तन होता है, उसे *सन्धि* कहते है। 👉 *सन्...