हनुमान चालीसा (Hanumaan Chaalisa) गोस्वामी तुलसीदास कृत "हनुमान चालीसा" का योग साधना से गहरा सम्बन्ध है । इसमें जो मुख्य पात्र हनुमान है । उनका अर्थ ही ऐसे साधक या भक्त से है-- "जो पूर्णतया मान रहित होकर भक्त हो गया हो।" हनुमान चालीसा के 40 दोहों में---- 5 तत्वों का शरीर, 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां, शरीर की 25 प्रकृतियां = 40 मनुष्य शरीर की ज्ञान-अज्ञान-भक्ति आदि का वर्णन है । हनुमान चालीसा का सही अर्थ समझने की कोशिश करते हैं। श्री गुरु चरण सरोज रज । निज मनु मुकुर सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु । जो दायकु फल चारि । श्री का अर्थ सम्पदा या ऐश्वर्य से है । ये जिसके भी आगे लगा है । उसके ऐश्वर्य का प्रतीक है । ये जिस अस्तित्व के साथ जुड़ा हो । उसके वैभव को दर्शाता है। गुरु शब्द में गु और रु दो अक्षर हैं । गु अंधकार और रु प्रकाश का द्योतक है । संयुक्त गुरु शब्द ज्ञान का पर्याय है । यानी एक ऐसा अस्तित्व---- "जो आत्मा से जीवात्मा के बीच में ज्ञान अज्ञान और प्रकाश अंधकार का अंतर या बोध कराये।" एक दूसरे भाव म