Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2021

हनुमान चालीसा (Hanumaan Chaalisa)

     हनुमान चालीसा  (Hanumaan Chaalisa)   गोस्वामी तुलसीदास कृत "हनुमान चालीसा" का योग साधना से गहरा सम्बन्ध है ।  इसमें जो मुख्य पात्र हनुमान है ।  उनका अर्थ ही ऐसे साधक या भक्त से है--            "जो पूर्णतया मान रहित होकर भक्त हो गया हो।" हनुमान चालीसा के 40 दोहों में----  5 तत्वों का शरीर,  5 ज्ञानेन्द्रियां,  5 कर्मेन्द्रियां,  शरीर की 25 प्रकृतियां  = 40   मनुष्य शरीर की ज्ञान-अज्ञान-भक्ति आदि का वर्णन है ।  हनुमान चालीसा का सही अर्थ समझने की कोशिश करते हैं।  श्री गुरु चरण सरोज रज । निज मनु मुकुर सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु । जो दायकु फल चारि ।   श्री   का अर्थ सम्पदा या ऐश्वर्य से है ।  ये जिसके भी आगे लगा है । उसके ऐश्वर्य का प्रतीक है ।  ये जिस अस्तित्व के साथ जुड़ा हो । उसके वैभव को दर्शाता है। गुरु   शब्द में गु और रु दो अक्षर हैं । गु अंधकार और रु प्रकाश का द्योतक है ।  संयुक्त गुरु शब्द ज्ञान का पर्याय है ।  यानी एक ऐसा अस्तित्व----           "जो आत्मा से जीवात्मा के बीच में ज्ञान अज्ञान और प्रकाश अंधकार का अंतर या बोध कराये।"  एक दूसरे भाव म

#1 सुविचार: (Thought)

सुविचार: (Thought) शान्तितुल्यं तपो नास्ति            न संतोषात्परं सुखम्। न तृष्णया: परो व्याधिर्न            च धर्मो दया परा:।।   अर्थ-     शान्ति के समान कोई तप नही है, संतोष से श्रेष्ठ कोई सुख नही, तृष्णा से बढकर कोई रोग नही और दया से बढकर कोई धर्म नहीं।