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Showing posts from August, 2023

विभक्तिः Vibhakti

विभक्तिः Vibhakti - sanskrit vyakaran विभक्तयः 1. कारकविभक्तयः।  2.  उपपदविभक्तिः। 1. कारकविभक्तयः   क्रियामाधृत्य यत्र द्वितीया-तृतीयाद्याः विभक्तयः भवन्ति ,  ताः  ‘ कारकविभक्तयः ’  इत्युच्यन्ते।  क्रिया के आधार पर जहां (जब) द्वितीया, तृतीया आदि विभक्ति होती हैं उन्हें कारक विभक्ति कहते हैं। यथा-       रामः ग्रामं गच्छति। बालकाः यानेन यान्ति इत्यादयः।।   ( यहां गच्छती क्रिया के होने से ग्राम शब्द में द्वितीय विभक्ति का प्रयोग कर ग्राम रूप बना है ) —————————-2. उपपदविभक्तिः पदमाश्रित्य प्रयुक्ता विभक्तिः  ‘ उपपदविभक्तिः ’  इत्युच्यते। पद (शब्द) के आधार पर प्रयोग की जाने वाली विभक्ति उपपद विभक्ति कहलाती है  यथा-  ग्रामं परितः वनम्।  रामेण सह लक्ष्मणः गच्छति।  अत्र  ‘ परितः ’  इति योगे ग्रामपदात् द्वितीया तथा च  यहां परित: शब्द होनेके कारण (उससे पहले वाले शब्द) ग्राम शब्द में द्वितीया विभक्ति ‘ सह ’  इति योगे रामपदात् प्रयुक्ता तृतीया उपपदविभक्तिः अस्ति। और सह शब्द होने से ( उससे पहले वाले शब्द)    राम शब्द में तृतीया विभक्ति का प्रयोग रामेण हुआ है।

प्रमुख कवि तथा उनकी रचनाएँ Imp. Sanskrit books and writers

 प्रमुख कवि तथा उनकी रचनाएँ  Imp. Sanskrit books and writers  1.अभिषेक नाटक - भास 2.अभिज्ञान शाकुन्तलम् - कालिदास 3.अविमारक - भास 4.अर्थशास्त्र - चाणक्य 5.अष्टाध्यायी - पाणिनि 6.आर्यभटीयम् - आर्यभट 7.आर्या-सप्तशती - गोवर्धनाचार्य 8.उरुभंग - भास 9.ऋतुसंहार - कालिदास 10.कर्णभार - भास 11.कादम्बरी - वाणभट्ट 12.कामसूत्र - वात्स्यायन 13.काव्यप्रकाश - मम्मट 14.काव्यमीमांसा - राजशेखर 15.कालविलास - क्षेमेन्द्र 16.किरातार्जुनीयम् - भारवि 17.कुमारसंभव - कालिदास 18.बृहत्कथा - गुणाढ्य 19.चण्डीशतक - वाणभट्ट 20.चरक संहिता - चरक 21.चारुदत्त भास 22.चौरपंचाशिका - बिल्हण 23.दशकुमारचरितम् - दण्डी 24.दूतघटोत्कच - भास 25.दूतवाक्य - भास 26.न्यायसूत्र - गौतम 27.नाट्यशास्त्र - भरतमुनि 28.पञ्चरात्र - भास 29.प्रतिमानाटकम् -भास 30.प्रतिज्ञायौगंधरायण - भास 31.बृहद्यात्रा - वाराहमिहिर 32.ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त - ब्रह्मगुप्त 33.ब्रह्मसूत्र - बादरायण 34.बालचरित्र - भास 35.मध्यमव्यायोग भास 36.मनुस्मृति - मनु 37.महाभारत - वेद व्यास 38.मालविकाग्निमित्र - कालिदास 39.मुकुटतादितक - वाणभट्ट 40.मेघदूत - कालिदास 41.मृच्छकटिकम्