Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2024

संहिता, संयोग और संधि / Sanhita sanyog and Sandhi

  संहिता,  संयोग और संधि /   Sanhita sanyog and  Sandhi  संहिता और संयोग में भेद महर्षि पाणिनि ने संयोग को इस सूत्र से समझाया है हलोऽननन्तराः संयोगः। १। १। ७॥ संहिता और संयोग में एक बहुत ही छोटा अन्तर है। दोनों में भी दो वर्ण बिल्कुल नजदीक आते हैं जिनके बीच में कोई दूसरा वर्ण नहीं होता है। परन्तु संहिता सभी वर्णों में होती है। अर्थात् स्वर तथा व्यंजनों में संहिता हो सकती है। परन्तु संयोग केवल दो व्यंजनों का होता है जिसे हिन्दी में संयुक्ताक्षर कहते हैं। अर्थात् संयोग में संहिता हो सकती है। परन्तु प्रत्येक संहिता में संयोग होता ही है ऐसा नहीं है। जैसे कि - दुर्गा - द् + उ + र् + ग् + आ। इस पद में आप देख सकते हैं कि र् + ग् इन दोनों व्यंजनों के बीच में कोई दूसरा वर्ण नहीं है। अतः यह संयोग है और चूँकि दुर्गा एक पद है इसीलिए पद में तो हर वर्ण संहिता में ही रहते हैं। अतः यहाँ संहिता भी है। संहिता और संधि में भेद  दो वर्णों का बिल्कुल नजदीक उच्चारण, बीच में किसी अन्य वर्ण का ना होना- बस इतना ही संहिता का अर्थ है। इस में किसी भी वर्ण में कुछ परिवर्तन, बदलाव का जिक्र नहीं है। परन्तु सन्धि में