श्रीमद्भगवद् गीता-ग्रंथात् श्रेष्ठ-श्लोकाः/ श्रीमद्भगवद् गीता के श्रेष्ठ श्लोक/ Best selected Shaloks from Shrimad Bhagvad Geeta ----------------------------------------- ॐ श्रीपरमात्मने नमः अ थ श्रीमद्भगवद् गीता श्रीभगवान् उवाच 1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्- मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (२-४७) (द्वितीय अध्याय, श्लोक 47) श्रीभगवान् बोले- अर्थ: तेरा कर्म करनेमें ही अधिकार है, उसके फलोंमें कभी नहीं इसलिये तू कर्मोंके फलका हेतु मत हो - तथा तेरी कर्म न करनेमें भी आसक्ति न हो । अर्जुन उवाच 2. स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव। स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।। २-५४ अर्जुन बोले- हे केशव! समाधिमें स्थित परमात्माको प्राप्त हुए स्थिरबुद्ध पुरुषका क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्ध पुरुष कैसे बोलता है कैसे बैठता है और कैसे चलता है ? श्रीभगवानुवाच 3. प्रजहाति यदा कामान् सर्वान्पार्थ मनोगतान्। आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ।। २-५५ श्रीभगवान् बोले- हे अर्जुन! जिस कालमें यह पुरुष मनमें स्थित सम्पूर्ण कामनाओंको भलीभाँति त्याग देता