नमोनमः।
सप्तमकक्षायाः रुचिरा भाग- 2 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अद्य वयं प्रथमं पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति सुभाषितानि।
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सुभाषितानि = सु + भाषितानि
भाषितम् (नपुंसकलिङ्गम्)
भाषितम् भाषिते भाषितानि
सु - सुन्दरम्/ उत्तमम् / शोभनम्
भाषितम् - वचनम् / विचारः
अतः - सुन्दरम् वचनम् (Good Saying )
सु- सुन्दर/ मधुर/ अच्छी
भाषितानि- वचन/ बातें
'सुभाषित' शब्द 'सु+भाषित' इन दो शब्दों के मेल से बना है। सु का अर्थ सुंदर/ मधुर और भाषित का अर्थ वचन है। इस तरह सुभाषित का अर्थ सुन्दर/ मधुर वचन है।
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सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलम् अन्नं सुभाषितम् ।
मूढैः पाषाण-खण्डेषु रत्न-संज्ञा विधीयते।।
छंद-ज्ञानम्
अनुष्टुप् छंद में कुल 32 वर्ण होते हैं। प्रत्येक पाद में 8 वर्ण, (पूर्ण वर्णों को ही गिनते हैं।) इस प्रकार एक पंक्ति में 8x2=16 वर्ण, और एक श्लोक में कुल (16x2=32) 32 वर्ण ।
यथा-
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि 1-पृ, 2-थि, 3-व्यां, 4-त्री, 5-णि, 6-र 7-त्ना, 8-नि
जलम् अन्नं सुभाषितम् । 1-ज, 2-ल, म्, 3-अ, 4-न्नं, 5-सु, 6-भा, 7-षि 8-त, म् ।
मूढैः पाषाण-खण्डेषु 1-मू, 2-ढैः, 3-पा, 4-षा, 5-ण, 6-ख, 7-ण्डे, 8-षु
रत्न-संज्ञा विधीयते।। 1-र, 2-त्न, 3सं, 4-ज्ञा, 5-वि, 6-धी, 7-य, 8-ते।।
सरलार्थ-
पृथ्वी पर तीन ही रत्न है जल, अन्न और अच्छी बातें। परंतु मूर्खों के द्वारा पाषाण के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा दी जाती हैं।
व्याख्या-
विद्वानों द्वारा पृथ्वी पर तीन रत्न कहे गए हैं जल, अन्न अर्थात् भोजन और अच्छी बातें। परंतु मूर्ख लोग पाषाण के टुकड़ों हीरा, पन्ना आदि को रत्न कहा करते हैं।
सरलार्थ -
सत्य से ही पृथ्वी धारण करती है, सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही वायु बहती है तथा सब कुछ सत्य से ही प्रतिष्ठित है।
व्याख्या-
इस श्लोक में सत्य के महत्त्व को बताया गया है। सत्य से ही पृथ्वी धारण करती है सत्य से ही सूर्य ऊष्मता प्रदान करता है, सत्य से ही वायु बहती है तथा इस संसार में सब कुछ सत्य से ही स्थित है।
शब्दार्थ -
1. दाने - दान में
2. तपसि - तपस्या में
3. शौर्ये - पराक्रम में ,
4. विज्ञाने - विशिष्ट ज्ञान/ शास्त्र में
5. विनये - नम्रता में
6. नये - नीति में ,
7. विस्मयो - गर्व/ अहंकार
8. न हि कर्त्तव्यो - नहीं करना चाहिए
9. बहुरत्ना वसुंधरा - बहुत से रत्नों वाली है।
सरलार्थ-
किसी को भी अपने द्वारा दिए गए, दान में, तपस्या में, बल/ वीरता में, शास्त्रज्ञान में, विनम्रता में तथा नीति के कार्यों में अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि इन गुणों को धारण करने वाले इस संसार में बहुत है , सिर्फ कोइ एक नहीं इसलिए कहा गया है कि यह पृथिवी बहुत से रत्नों वाली है।
व्याख्या -
दान में, तापस्या में, बल/पराक्रम में, विज्ञान में, विनम्रता में तथा नीति के कार्यों में अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि पृथिवी बहुत से रत्नों वाली है। अर्थात् पृथ्वी पर या हमारे समाज में बहुत है दानी (बली आदि), तपस्वी, पराक्रमी, विज्ञान/शास्त्र जानने वाले, विनम्र अर्थात धैर्यशाली और नीति के जानकार है इसलिए इन प्रकार के विषयों में अहंकार नहीं करना चाहिए ।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
सद्भिः एव सह आसीत सद्भिः कुर्वीत संङ्गतिम्।
सद्भिः विवादं मैत्रीं च न असद्भिः किञ्चिद् आचरेत्।।
सरलार्थ -
सज्जनों के साथ ही बैठना चाहिए, सज्जनों की ही संगति करें, सज्जनों के साथ ही वाद-विवाद/चर्चा (Discussion) या दोस्ती करें परंतु दुर्जनों के साथ कोई भी व्यवहार न करें।
व्याख्या -
इस संसार में सज्जनों के साथ ही बैठना चाहिए, सज्जनों की ही संगति करें अर्थात कहीं आना- जाना हो तो, सज्जनों के साथ ही वाद-विवाद/चर्चा (Discussion) करे क्योंकि उनके साथ चर्चा करने से ही हमारे ज्ञान में वृद्धि होगी तथा दोस्ती करें परंतु दुर्जनों के साथ कोई भी व्यवहार न करें।
शब्दार्थ -
1. धनधान्यप्रयोगेषु - धनधान्य के प्रयोग में
2. विद्यायाः - विद्या के
3. संग्रहेषु - संचय करने में
4. च - और
5. आहारे - भोजन
6. व्यवहारे - व्यवहार
7. त्यक्तलज्जः - शर्म छोड़ने वाला
8. भवेत् - होता है
सरलार्थ-
धन-धन्य के प्रयोग में, विद्या के संग्रह में, आहर-व्यवहार में जो व्यक्ति लज्जा नहीं करता वह सुखी रहता है।
व्याख्या-
1) धन के लेने और देने के समय गणना आवश्यक है जैसे दुकानदार करता है वरना बाद में समस्या होती है।
2) अन्न से संग्रह में भी लज्जा (शर्म) नहीं करनी चाहिए,
3) पढ़ते समय यदि कुछ समझ न आये तो शिक्षकों अथवा मित्रों से अवश्य पूछ लेना चाहिए वहां भी शर्म नहीं करनी चाहिए।
4) भोजन के समय यदि कुछ चाहिए तो स्पष्ट बोलना चाहिए यदि नहीं चाहिए तो भी स्पष्ट बोलना चाहिए अन्यथा बाद में कष्ट होगा अथवा भोजन व्यर्थ जाएगा।
5) अन्य लोगों के साथ भी हम जो व्यवहार करते हैं यदि वह संकोच रहित हो तो उत्तम रहता है।
सरलीकृत्वा (पदविभाग:)-
क्षमा-वशीकृतिः-लोके क्षमया किं न साध्यते।
शन्ति-खड्गः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः।।
शब्दार्थ -
क्षमा - सहनशीलता /Forgiveness
खड्गः - तलवार
करे - हाथ में
सरलार्थ-
संसार में क्षमा सबसे बडा वशीकरण है, उससे क्या नहीं प्राप्त किया जा सकता। जिसके हाथ में शांति रूपी तलवार हो, उसका दुष्ट क्या बिगाड़ सकता है अर्थात् कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
व्याख्या -
संसार में क्षमा सबसे बडा वशीकरण है और शांति एक ऐसा शास्त्र है जो बहुत प्रभावशाली है। जिसके पास ऐसा वशीकरण और अस्त्र हो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जिस प्रकार भगवान बुद्ध की शांति से प्रभावित होकर अंगुलिमार ने भी क्रोध और शस्त्र छोड़कर सज्जन बन शांति के मार्ग पर चल पड़ा था। यहां क्षमा और शांति की तुलना तलवार से की गयी है जिसके सामने कोई क्रोधी टिक नहीं सकता।
(1) पठनाय (Lesson in PDF) -
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(2) श्रवणाय (Audio All Lessons)-
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(3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video )
1.1 पाठ:
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(4) अभ्यासाय (B2B Worksheet)
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(5) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि
(Lesson Exercise - PPT)
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प्रेरणादायक गीत
ये वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा (गीत)
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