अनुष्टुप छन्द (Anushtup Chand)
अनुष्टुप छन्द में कुल - ३२ वर्ण होते हैं - आठ वर्णों के चार पाद।
यह संस्कृत काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त छन्द है, इसका वेदों में भी प्रयोग हुआ है। आदि कवि वाल्मिकी द्वारा उच्चारित रामायण का प्रथम श्लोक (मा निषाद प्रतिष्ठा) भी अनुष्टुप छन्द में है। गीता और विष्णसहस्रनाम के श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं। रामायण तथा महाभारत केअधिकांश श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही हैं।
हिन्दी में जो लोकप्रियता और सरलता दोहा की है वही संस्कृत में अनुष्टुप की है।
लक्षण-
श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम्।
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥
1 2 3 4 5-लघु 6-गुरु 7गुरु 8, 1 2 3 4 5-लघु 6-गुरु 7लघु 8,
1 2 3 4 5-लघु 6-गुरु 7गुरु 8, 1 2 3 4 5-लघु 6-गुरु 7लघु 8,
अनुष्टुप् छंद में कुल चार पादों में 32 वर्ण होते हैं। प्रत्येक पाद में 8 वर्ण, (पूर्ण वर्णों को ही गिनते हैं।) इस प्रकार एक पंक्ति में 8x2=16 वर्ण, और एक श्लोक में कुल (16x2=32) 32 वर्ण ।
इस छन्द के प्रत्येक पद/चरण का छठा वर्ण गुरु होता है और पंचमाक्षर लघु होता है। प्रथम और तृतीय पाद का सातवाँ वर्ण गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पाद का सप्तमाक्षर लघु होता है। इस प्रकार पादों में सप्तमाक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है - अर्थात् प्रथम पाद में गुरु, द्वितीय पाद में लघु, तृतीय पाद में गुरु और चतुर्थ पाद में लघु। प्रत्येक आठवें वर्ण के बाद यति (रुकना ) होती है।
उदाहरण-
अनुष्टुभ् छंद के प्रत्येक पाद में 8 वर्ण होते हैं (पूर्ण वर्णों को ही गिनते हैं।) इस प्रकार एक पंक्ति में 8x2=16 वर्ण हुए और एक श्लोक में कुल (16x2=32) 32 वर्ण होते हैं।
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि 1-पृ, 2-थि, 3-व्यां, 4-त्री, 5-णि, 6-र 7-त्ना, 8-नि
जलम् अन्नं सुभाषितम् । 1-ज, 2-ल, म्, 3-अ, 4-न्नं, 5-सु, 6-भा, 7-षि 8-त, म् ।
मूढैः पाषाण-खण्डेषु 1-मू, 2-ढैः, 3-पा, 4-षा, 5-ण, 6-ख, 7-ण्डे, 8-षु
रत्न-संज्ञा विधीयते।। 1-र, 2-त्न, 3सं, 4-ज्ञा, 5-वि, 6-धी, 7-य, 8-ते।।
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