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7.3.1 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम् तृतीय: पाठ: (स्वावलम्बनम् ) Class 7th, Subject - Sanskrit Lesson-3 (Svaavlambanam)


       7.3 कक्षा - सप्तमी,  विषय: - संस्कृतम्
            तृतीय: पाठ:  (स्वावलम्बनम् )
       Class 7th,   Subject - Sanskrit
       Lesson-3 (Svaavlambanam)

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नमोनमः। 
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-2 इति
पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् । 
अद्य वयं तृतीयं पाठं पठामः। 
पाठस्य नाम अस्ति - 

                   स्वावलम्बनम् 

       ************************************ 

स्वावलम्बनम् =  स्व+अवलम्बनम्।
स्व               - आत्म
अवलम्बनम्   -  निर्भर / स्वामित्व

इस प्रकार स्वावलम्बनम् का अर्थ हुआ आत्मनिर्भता।

 आत्मनिर्भरता स्वस्य  कार्यं स्वयं करणेन भवति।
    
      इस पाठ में संख्यावाचक शब्द,  समय सूचक शब्द (वादनम्),  तत् (वह) और एतत् (यह) शब्दों के विषय में बताया गया है
        तथा हम आत्मनिर्भर होने के लाभ के विषय में भी जानेंगे। यदि हम आत्म निर्भर रहें तो हमें अन्य लोगों पर निर्भर नहीं रहना होगा तथा आवश्यकता के समय पर हम अपना कार्य स्वयं कर सकते हैं। 
       यथा- विद्यार्थी विद्यालय आने के समय पर अपने कपड़े स्वयं पहन सकते हैं, अपनी पुस्तकें अपने बैग में स्वयं डाल सकते हैं तथा अपने जूते पॉलिश कर स्वयं धारण कर सकते हैं।
     --------------------------------------------------------- 
           -पाठ अर्थ और संधि-विच्छेद सहित-

कृष्णमूर्तिः श्रीकण्ठश्च मित्रे आस्ताम्।
अर्थ-
कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ मित्र थे।

श्रीकण्ठस्य पिता समृद्धः आसीत्।
अर्थ-
श्रीकण्ठ के पिता धनी थे।

अतः तस्य भवने सर्वविधानि सुख-साधनानि आसन्।
अर्थ-
इसलिए उसके घर में सभी प्रकार के सुख-साधन थे।

तस्मिन् विशाले भवने चत्वारिंशत् स्तम्भाः आसन्।
अर्थ-
उसके विशाल घर में चालीस (40) खम्बे थे।

तस्य अष्टादश-प्रकोष्ठेषु पञ्चाशत् गवाक्षाः,
अर्थ-
उसके अठारह (18) कमरों में पचास (50) खिड़कियां,

चतुश्चत्वारिंशत् द्वाराणि,
अर्थ-
चवालीस (44) दरवाजे,

षट्त्रिंशत् विद्युत्-व्यजनानि च आसन्।
अर्थ-
और छत्तीस (36) बिजली के पंखे थे।

तत्र दश सेवकाः निरन्तरं कार्यं कुर्वन्ति स्म।
अर्थ-
वहां दस (10) सेवक निरंतर कार्य करते रहते थे।







परं कृष्णमूर्तेः माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती।
अर्थ-
परंतु कृष्णमूर्ति के माता-पिता निर्धन किसान पति- पत्नी (दंपति) थे।

तस्य गृहम् आडम्बरविहीनं साधरणञ्च (साधरणम्+ च) आसीत्।
अर्थ-
उसका घर आडंबर रहित और साधारण था।

एकदा श्रीकण्ठः तेन सह प्रातः नववादने तस्य
गृहम् अगच्छत्।
अर्थ-
एक बार श्रीकण्ठ उसके साथ सुबह 9:00 बजे उसके घर गया। 

तत्र कृष्णमूर्तिः तस्य माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। 
अर्थ-
वहां कृष्णमूर्ति और उसके माता-पिता पूरी शक्ति से श्रीकण्ठ का अतिथि-सत्कार करते हैं।







एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठः अकथयत्- ‘‘मित्र! अहं भवतां सत्कारेण सन्तुष्टोsस्मि।
अर्थ-
यह देखकर श्रीकंठ ने कहा - "मित्र! मैं आपके सत्कार से संतुष्ट हूँ।

केवलम् इदमेव (इदम्+एव) मम दुःखं यत् तव गृहे एकोsपि भृत्यः नास्ति  (न+अस्ति)।
अर्थ-
मुझे केवल यही दुख है कि तुम्हारे घर में एक भी काम करने वाला (नौकर/सेवक) नहीं है।

मम सत्काराय भवतां बहु कष्टं जातम्।
अर्थ-
मेरे सत्कार  के लिए आपको बहुत कष्ट हुआ।

मम गृहे तु बहवः कर्मकराः सन्ति।’’
अर्थ-
मेरे घर में तो बहुत से सेवक हैं।"

तदा कृष्णमूर्तिः अवदत्-‘‘मित्र! ममापि  (मम+अपि) अष्टौ कर्मकराः सन्ति।
अर्थ-
तब कृष्णमूर्ति ने कहा - "मित्र! मेरे भी आठ सेवक हैं।

ते च द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रो, द्वे श्रोत्रे इति।
अर्थ-
वे  दो पैर, दो हाथ, दो आंखें और दो कान हैैं।

एते प्रतिक्षणं मम सहायकाः।
अर्थ-
ये हर समय मेरी सहायता करते हैं।

किन्तु तव भृत्याः सदैव सर्वत्र च उपस्थिताः भवितुं न शक्नुवन्ति।
अर्थ-
परंतु तुम्हारे सेवक  हर समय, हर जगह उपस्थित नहीं हो सकते हैं।

त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीनः (भृत्य+अधीनः)।
अर्थ-
तुम तो अपने कार्य के लिए अपने नौकरों के ही अधीन हो।

यदा यदा ते अनुपस्थिताः, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि।
अर्थ-
जब-जब वे अनुपस्थित  होंगे तब-तब तुम्हें कष्ट होगा।

स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति।’’
अर्थ-
स्वावलंबन अर्थात् अपना कार्य स्वयं करने में तो सदा  सुख ही है, कभी भी कष्ट नहीं होता है।"

श्रीकण्ठः अवदत्-‘‘मित्र! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता।
अर्थ-
श्रीकण्ठ ने कहा-  "मित्र! तुम्हारी बातें सुनकर मेरे मन को बहुत प्रसन्नता हुई है।

अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।’’
अर्थ-
अब मैं भी अपने कार्य स्वयं ही करना चाहता हूँ।

भवतु, सार्धर्द्वादशवादनमिदम् (सार्धद्वादश-वादनम्-इदम्)।
अर्थ-
ठीक है,  अब साढ़े बारह (12:30) बज गए हैं।

साम्प्रतं गृहं चलामि।
अर्थ-
अब घर चलता हूँ।

    -----------------------------------------------------
   
      (1) पठनाय (Lesson in PDF) - 
 https://drive.google.com/file/d/1dsSzmjWnHwdOSMrGBhq-5hn7ILwrs9eI/view?usp=drivesdk     
 
          ------------------------------------------   
      (2) श्रवणाय  (Audio )- 
      https://drive.google.com/file/d/1mPSWIRWUV7nRbgzOiMdm7OVal5knPJK6/view?usp=drivesdk

          ------------------------------------------   
             (3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video ) 
    1.1  पाठ: 
https://youtu.be/mniYAC5v9iU
OnlinesamskrTutorial

               पाठस्य कथा
    https://youtu.be/JfOcTMn3Srw
    By SANSKRIT PRAGAYAN (Pankaj ji)

         पाठ अर्थ सहित तथा अभ्यास अर्थ सहित
https://youtu.be/KAYtSoMKJLw
     By Kailash Sharma       

        1.2  अभ्यास:  
https://youtu.be/XCWuzwqj-p0
       OnlinesamskrTutorial

         -------------------------------------------- 
           (4) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि 
               (Lesson Exercise )  

7.3.2 अभ्यासः 


    https://drive.google.com/file/d/1b1lJIY3CfusB9JdfUvJx1_MppfXi2xqU/view?usp=drivesdk       

          ------------------------------------------ 
           (5)   अभ्यासाय  (B2B Worksheet)
 https://drive.google.com/file/d/1iFKUvR1ujTZvOVVuqIjGkzVRO9_rjijr/view?usp=drivesdk      

          ------------------------------------------  

             प्रेरणादायक गीत 
ये वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा (गीत)
https://youtu.be/Kshr8cDF9D0  


               7.3.2 अभ्यासः 

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