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6.5.1 कक्षा *षष्ठी*, विषय:-संस्कृतम्, पञ्चम: पाठ: (वृक्षा: ) Class-6th, Subject-Sanskrit, Lesson-5 ( VrikshaH )

           6.5.1  कक्षा *षष्ठी*,  विषय:-संस्कृतम्, 
                   पञ्चम: पाठ:  (वृक्षा: )
     Class-6th,  Subject-Sanskrit, Lesson-5
                     ( VrikshaH )

       ************************************ 
नमो नमः। 
षष्ठीकक्ष्यायाः  "रुचिरा भाग- 1" इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् । 
अद्य वयं पञ्चमं पाठं पठामः। 
पाठस्य नाम अस्ति-
                           वृक्षा:। 
अहं डॉ. विपिन:।

      ************************************
    प्रस्तुत पाठ में वृक्षों के विषय चर्चा की गयी है। 

        --------------------------------------------  

 

वने वने निवसन्तो वृक्षाः।
वनं वनं रचयन्ति वृक्षाः ।।1।।
 

शाखादोलासीना विहगाः।
तैः किमपि कूजन्ति वृक्षाः ।।2।।
 

पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्।
साधुजना इव सर्वे वृक्षाः ।।3।।
 
स्पृशन्ति पादैः पातालं च।
नभः शिरस्सु वहन्ति वृक्षाः ।।4।।
 
पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम्
कौतुकेन पश्यन्ति वृक्षाः ।।5।।
 

प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम्।  
कुर्वन्ति सत्कारं वृक्षाः। ।।6।।

                                       डाॅ. हर्षदेवमाधवः
      ************************************
1)  वने वने निवसन्तो वृक्षाः।
     वनं वनं रचयन्ति वृक्षाः ।।
अन्वय- वृक्षा: वने वने निवसन्त:। वृक्षाः वनं-वनं रचयन्ति।

सरलार्थप्रत्येक वन में वृक्ष रहते हैं। वृक्ष (ही) वनों का निर्माण करते हैं अर्थात् वनों को वृक्ष ही बनाते हैं।


2) शाखा-दोला-सीना विहगाः।
     तैः किमपि कूजन्ति वृक्षाः ।।
अन्वय- विहगा: शाखादोलासीना। वृक्षा: तै: किमपि कूजन्ति।
सरलार्थपक्षीगण टहनी रूपी झूलों पर बैठे हुए हैं। वृक्ष उनके द्वारा कुछ भी कूकते (बोलते) रहते हैं।


3) पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्।
     साधुजना इव सर्वे वृक्षाः ।।
अन्वय- सर्वे वृक्षा: साधुजना इव पवनं जलं (च) सन्ततम् पिबन्ति।
सरलार्थसभी वृक्ष साधुजनों की तरह लगातार पवन और जल को पीते रहते हैं।


4) स्पृशन्ति पादैः पातालं च।
    नभः शिरस्सु वहन्ति वृक्षाः ।। 
अन्वय- वृक्षा: पादैः पातालं स्पृशन्ति शिरस्सु च नभ: वहन्ति। 
सरलार्थवृक्ष जड़ रूपी पैरों से पाताल को छूते हैं तथा सिर पर आकाश को ढोते हैं।


5) पयोदर्पणे स्व-प्रति-बिम्बम्
     कौतुकेन पश्यन्ति वृक्षाः ।।
अन्वय- वृक्षा: पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बं कौतुकेन पश्यन्ति।
सरलार्थवृक्ष जलरूपी दर्पण (शीशे) में अपनी परछाई को उत्सुकता से देखते हैं। 


6) प्रसार्य स्व-च्छाया-संस्तरणम्।
    कुर्वन्ति सत्कारं वृक्षाः। ।। 
अन्वय- वृक्षा: स्वच्छाया संस्तरणं प्रसार्य सत्कारं कुर्वन्ति। 
सरलार्थवृक्ष अपना छाया रूपी बिस्तर फैलाकर लोगों का आदर करते हैं। 

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- जिया हिमराल, केंद्रीय विद्यालय जतोग , वर्ष २०२२ - २३

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        (1) पठनाय ( NCERT Book in PDF)

        (2) श्रवणाय  (Audio)- 

        (3)  दृश्य-श्रव्य (Video) 
6.5.1.3   पाठ-वाचनं विवरणं च  

     डॉ. विपिनः       

      पाठ-वाचनं विवरणं च 
https://youtu.be/hdNv0tk2qMA
      (OnlinesamskrTutorial)

      अभ्यासः 
https://youtu.be/RdGLUAe57RM
(OnlinesamskrTutorial)

        विभक्ति-परिचयः 
https://youtu.be/gQekZOp8QG8
  
द्वितीया-विभक्तिः 
https://youtu.be/Sqn1AwzVTTo

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6.5.2
  

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