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संस्कृत-प्रश्नोत्तराणि


संस्कृतम्
१) sanskrit संस्कृत पढ़कर नौकरी नहीं मिलने वाली है तो संस्कृत क्यों पढ़ें? उत्तर: क्या नौकरी पाना ही जीवन का लक्ष्य है, या आनन्द पाना ??? आनंद तभी मिलेगा जब अविद्या का नाश होकर पवित्रता आएगी.
विद्या तपोभ्याम भूतात्मा शुध्यति (विद्या और तप से ही जीवात्मा पवित्र होता है.) - मनुस्मृति
संस्कृत पढने से अपनी संस्कृति से जुड़ेंगे. जो ज्ञान पाना चाहते हैं उन्हें संस्कृत पढना ही चाहिए, जिन्हें केवल धन से मतलब है वे कुछ भी करें.
"विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता (Deserveness) आती है, पात्रता से धन आता है, धर्म द्वारा अर्जित धन से सुख की प्राप्ति होती है." - आचार्य चाणक्य
सभी सत्य-विद्याओं का मूल वेद में है. वेद से ही संस्कृत भाषा की उत्पत्ति हुई है. अतः संस्कृत पढना चाहिए.
२) संस्कृत भाषा बहुत कठिन है? रटने से क्या फायदा?
उत्तर: रूचि (interest) एवं पुरुषार्थ (continuous effort) हो तो कुछ भी कठिन नहीं.
धन कमाने एवं अन्य व्यर्थ के कार्यों से अवकाश मिले तब तो संस्कृत सीखेंगे. Excuses (बहानों) की कमी नहीं है.
उद्यमेन ही सिद्ध्यन्ति कार्याणि ना मनोरथै: | न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगा: ||
उद्यम (पुरुषार्थ) से ही कार्य सिद्ध होते हैं. केवल सोचने से नहीं. सोये हुए शेर के मुंह में हिरन प्रवेश नहीं करते.
यदि आपको बता दिया जाए की वेद के अमुक मंत्र में Mercury से Gold बनाने की विधि का वर्णन है, तो ढेर सारा समय (leisure) निकल आवेगा.
बचपन में आपने ABCD... एवं गणित का पहाड़ा (Table) क्यों रटा ? कुछ मौलिक बातों को, सुविधा के लिए रटना पड़ता है.
३) संस्कृत मृतभाषा है, इसका कोई प्रयोग अब नहीं है। इसे पढ़कर क्या लाभ होगा?
उत्तर: संस्कृत से जीवन्त तो कोई भाषा ही नहीं है. 
जो परलोक को नहीं मानते अर्थात् जो पुनर्जन्म (Reincarnation) को नहीं मानते, वे संस्कृत कभी नहीं पढ़ सकते.
चूँकि संस्कृत शब्द अनेक अर्थों के वाचक होते है, इसीलिए एक को जानने से अनेकों का ज्ञान हो जाता है.
वेद के गागर में सागर भरा है.
वेद के एक मंत्र में अनेक अर्थ छिपे होते हैं. उदाहरण के लिए, महामृत्युन्जय मंत्र: "त्रयम्बकं यजामहे..." मंत्र का देवता(context) "रूद्र" है. इस मन्त्र के निम्नलिखित अर्थ होते हैं:
अ) प्राणों का हवन करें (प्राणायाम करें)
आ) तीनो काल में वर्त्तमान ईश्वर की उपासना करें
etc...
विस्तृत वर्णन के लिए पढ़ें: "मृत्युन्जय सर्वस्व" - स्वामी दीक्षानन्द
आजकल लोगों को केवल Fruit का ध्यान रहता है, Root का नहीं. जिस प्रकार जड़ों में पानी देने से पूरा वृक्ष हरा-भरा हो जाता है. उसी प्रकार संस्कृत के अध्ययन से
मानव-जीवन सम्पन्न हो जाता है.

४) संस्कृत देवभाषा है अर्थात् पूजा-पाठ की भाषा ही है। विज्ञान के युग में इसे पढेगा कौन? उत्तर: निरुक्त के अनुसार निम्नलिखित को देव कहा जाता है.
अ) दान करने वाले को
आ) दीपन करने वाले को (जैसे सूर्य, विद्युत् आदि)
इ) द्योतन (सत्य-उपदेश) करने वाले को
विद्वान् ही दान, दीपन, द्योतन करते हैं, मूर्ख तो अन्धकार ही फैलाया करते हैं. संस्कृत विद्वानों की भाषा है, मूर्खों की नहीं.
अतः विचारशील व्यक्ति विद्वान् बनने के लिए संस्कृत पढ़ेगा.
५) संस्कृत केवल ब्राह्मणों की भाषा है और यह साम्प्रदायिक भाषा है। इसे पढ़कर क्या लाभ?
उत्तर: इस वचन का कोई प्रमाण नहीं.
यजुर्वेद अध्याय-26, मन्त्र-2 के अनुसार, जब वेद को पढने का अधिकार ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी को है, तो वेद से उत्पन्न संस्कृत भाषा को पढ़ने का अधिकार स्वतः सबको
मिल जाता है.
६) संस्कृत पढ़ने से वैज्ञानिक सोच कैसे आएगी?
उत्तर: वेद संक्षिप्त रूप से सभी विद्याओं का भण्डार है, बिना संस्कृत पढ़े आप वेद में निहित विद्या को नहीं प्राप्त कर सकते.
आयुर्वेद, गणित, भौतिकी, रसायन-विद्या, विमान-विद्या, तार-विद्या, राज-प्रजाधर्म, ज्योतिष, शिल्प-विद्या, गान-सन्गीत-विद्या, ब्रह्म-विद्या आदि विज्ञान का भण्डार वेदों में भरा है.
[विस्तृत विवरण के लिए पड़ें: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका - महर्षि दयानन्द सरस्वती
यह पुस्तक विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, नई सड़क, दिल्ली में उपलब्ध है.]
७) संस्कृत को स्कूल में क्यों पढ़ाया जाए? शोधस्तर पर ही पढ़ाना काफी नहीं है क्या?
उत्तर: स्कूल में संस्कृत को निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पढ़ाया जाए:
अ) बच्चों के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक (सर्वांगीण) विकास के लिए
आ) भारत की संस्कृति से जोड़ने के लिए
इ) पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए
ई) स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम का बीज रोपने के लिए
उ) देशभक्ति एवं स्वराज के लिए एवं विदेशी मानसिकता से मुक्त करने के लिए
ऊ) स्वावलम्बी बनाने के लिए
८) संस्कृत की तुलना में विदेशी भाषा पढ़ाने से क्या नुकसान है? उत्तर: विदेशी वस्तुओं का उपभोग करने से देश में गरीबी आती है - आचार्य चरक
यदि आप देश को गरीबी और भ्रष्टाचार से पूर्णतः मुक्त करना चाहते हैं तो विदेशी भाषा का प्रयोग बंद कर देना चाहिए.
देखें जापान, रूस एवं चीन को केवल स्वदेशी भाषाओँ के द्वारा कितनी उन्नति कर ली है. वे विकसित देशों की श्रेणी में हैं, जबकि भारत 67 वर्षों से विकासशील देश ही बना पड़ा है.
किसी देश को विकसित होने के लिए कितने वर्ष लगते हैं??? चीन, जापान, रूस आदि को कितने वर्ष लगे ???
९) १५ से अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय होने पर भी संस्कृत की स्थिति क्यों खराब है?
उत्तर: सरकार की उपेक्षा से स्थिति ख़राब है, कांग्रेस इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है.
मदरसों एवं गिरिजाघरों को सरकार द्वारा अनेक सुविधायें प्रदान की जाती हैं. जितनी भूमि भारत में Christian oraganisations के हाथ है, उनका क्या गुरुकुल एवं
गोशाला में उपयोग नहीं हो सकता ???
१०) विभिन्न राज्यों में संस्कृत अकादमी भी है, वे संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए क्या कर रही हैं?
उत्तर: संस्कृत संस्थान शिथिल पडे हैं. Demand ke according Supply होती है.
सरकार को मुस्लिम-तुष्टिकरण से अवकाश ही नहीं है. बिहार में उर्दू को द्वितीय राजभाषा घोषित कर दिया गया. सरकार संस्कृत विभागों में नियुक्तियों की घोषणा करे, देखिये कैसे
प्रचार-प्रसार तेज हो जाता है.
११) संस्कृत के पाठ्यक्रम में नवीनता और वैज्ञानिकता का समावेश करके इस विषय को रुचिकर क्यों नहीं बनाते हैं?
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१२) संस्कृत को कम्प्यूटर के लिए उपयोगी भाषा कहते हैं। यह क्म्प्यूटर के लिए कैसे उपयोगी है?
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१३) संस्कृत में अब क्या नये शोध हो रहे हैं?
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१४) यदि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है तो उसकी वैज्ञानिकता सामने क्यों नहीं आती?
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१५) क्या संस्कृत कभी जनभाषा थी? उत्तर: विश्व के सभी मनुष्यों के पूर्वज कभी संस्कृत में वार्तालाप किया करते थे. संस्कृत विश्व के सभी भाषाओँ की माता है.
कालान्तर में वेद नहीं पढने से, व्याकरण के नियमों का पालन नहीं करने से एवं उच्चारण की अशुद्धता से नयी भाषाओँ का जन्म हुआ.
महर्षि पाणिनि व्याकरण (अष्टाध्यायी) के प्रारम्भ में कहते हैं: "अथ शब्द अनुशासनम् "
English => कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनवा जोड़ा. Letter silent hona (किसी अक्षर का उच्चारण ना होना) words ke Sanskrit
Root hone ko hide karne ka षड्यन्त्र है.

१६) भाषा तो स्वेच्छा से सीखी जाती है संस्कृत सिखाने के लिये जबरदस्ती क्यों की जा रही है?
उत्तर: यातायात नियमों का पालन क्यों करवाया जाता है ??? जिसे मन हो दायी ओर या बायीं ओर Vehicles को चलावे.
क्यों Traffic Police चालान काटते हैं ??? दुर्घटना से बचाने के लिए, अनुशासन के लिए.
महर्षि पतंजलि के योगदर्शन का प्रथम सूत्र है: "अथ योग अनुशासनम् " बिना अनुशासन के भोग होता है, अनुशासन से ही योग होता है.
क्या बच्चे शिष्यकुल (School) अपनी इच्छा से जाते हैं, या माता-पिता के अनुशासन से ???
अच्छे कार्यों के प्रति प्रवृत्ति के लिए कई बार प्रयास करना पड़ता है, जबकि बुरे कार्यों के प्रति प्रवृत्ति के लिए अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता.
१७) क्या संस्कृत ने समाज को बाँटने का काम किया है। क्या भेदभाव, जातिव्यवस्था आदि सामाजिक बीमारियाँ संस्कृत की देन है।
उत्तर: भेदभाव निम्न-कोटि के मनुष्यों की देन है. संस्कृत की देन "वर्ण-व्यवस्था" है, जो की वैज्ञानिक थी, किन्तु आजकल विकृत हो चुकी है.
पहले कर्म के आधार पर वर्णों का विभाजन था, आजकल गुरुकुलों के अभाव में वंश/जन्म के आधार पर हो गयी है.
जाति एवं धर्म की धारणा अत्यन्त उत्तम थी, जो कालांतर में विकृत हो गयी.
जाति: मनुष्य, पशु, पक्षी एवं वनस्पति आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ हैं.
जाति का अर्थ "वर्ण" भी होता है. अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र.
ब्राह्मण = जो मुख्य रूप से अज्ञान (Ignorance) को दूर करे.
क्षत्रिय = जो मुख्य रूप से अन्याय (InJustice) को दूर करे.
वैश्य = जो मुख्य रूप से अभाव (Scarcity) को दूर करे.
शूद्र = जो उपर्युक्त तीनों कार्य न कर सके.
मनुस्मृति के अनुसार, जन्म से सभी मनुष्य शूद्र होते हैं, कर्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य बनते हैं. अतः ब्राह्मण का पुत्र भी शूद्र हो सकता है, एवं शूद्र का पुत्र भी ब्राह्मण बन सकता है.
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को द्विज भी कहते हैं. प्रथम जन्म माता के गर्भ से "शूद्र" के रूप में होती है. द्वितीय जन्म आचार्य के गर्भ (संरक्षण में ) से द्विज के रूप में होती है.
१८) आप कहते हैं कि जर्मन विदेशी भाषा है लेकिन संस्कृत भी तो विदेशी भाषा है क्योंकि आर्य भी तो विदेशी हैं। उत्तर: आर्य भारत देश के मूल निवासी हैं. हम सभी आर्यों की ही संतान हैं.
हिंदू नाम विदेशी (मुस्लिम आतंकवादियों) ने भारतवासियों को दिया.
हिंदू शब्द अरबी/फारसी भाषा से आया जिसमें इसका अर्थ काफ़िर एवं गुलाम होता है.
https://www.youtube.com/watch?v=fIDZlzPxLSA/
ऋषियों ने तो "आर्य" नाम दिया था. एवं आर्यों का धर्म "वैदिक-धर्म" है जो की 1,96,08,53,114 वर्ष पुराना है.
आर्यों के विषय में प्रमाण:
1) रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों में "हे आर्यपुत्र" कह कर संबोधित किया गया है.
2) भारत का सर्वाधिक प्राचीन नाम "आर्यावर्त्त" है.
3) आचार्य शब्द में भी "आर्य" समाहित है.
4) काशी विश्वनाथ मंदिर के द्वार पर लिखा है: "आर्य पुरुष इतराणाम् प्रवेशो निषिद्ध:" अर्थात् अनार्यों का प्रवेश वर्जित है.
5) कई वेद मन्त्रों में आर्य शब्द आया है, किन्तु "हिंदू" शब्द नहीं आया.
उदाहरणार्थ: ऋग्वेद 1|51|8 में लिखा है=> विजानीह्यार्या..... यह मंत्र मनुष्यों को तीन प्रकार का बताता है:
अ) आर्य = द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य)
आ) अनार्य = शूद्र (अनाड़ी/मूर्ख/अविद्वान)
इ) दस्यु = डाकू, दुष्ट
6) मनुस्मृति में कई स्थलों पर आर्यों के विषय में बताया गया है, पर हिंदुओं के बारे में कुछ नहीं.
7) अय्यर = आर्य
नय्यर = अनार्य
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