Skip to main content

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् (Chal Chal Puruto- Sanskrit Song)


चल चल पुरतो निधेहि चरणम्
(Chal Chal Puruto- Sanskrit Song)


चल चल पुरतो निधेहि चरणम्
सदैव पुरतो निधेहि चरणम् ॥ध्रु॥

गिरीशिखरे तव निज निकेतनम्
समारोहणं विनैव यानम्
आत्मबलं केवलं साधनम् ॥१॥

पथिपाषाणा विषमा प्रखरा
तिर्यन्चोपि च परितो घोरः
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम् ॥२॥

जहीहि भीतिं ह्रिदि भज शक्तिम्
देहि देहि रे भगवती भक्तिम्
कुरु कुरु सततं धेयस्मरणम् ॥३॥

सुनने के लिए (click to listen) -
https://drive.google.com/file/d/0B4UJNc1YSXweUmxWUktqZ092eFk/view?usp=drivesdk
  
cala cala purato nidhehi caraṇam
sadaiva purato nidhehi caraṇam ||dhru||
girīśikhare tava nija niketanam
samārohaṇaṁ vinaiva yānam
ātmabalaṁ kevalaṁ sādhanam ||1||
pathipāṣāṇā viṣamā prakharā
tiryancopi ca parito ghoraḥ
suduṣkaraṁ khalu yadyapi gamanam ||2||
jahīhi bhītiṁ hridi bhaja śaktim
dehi dehi re bhagavatī bhaktim
kuru kuru satataṁ dheyasmaraṇam ||3||
Meaning
Go ahead, keep your feet forward
Always place the feet forward.
Your home is at the top of the mountain.
Climb it without any vehicle
The only instrument is one's own strength, always place...
[Here 'home' is not to be taken literally. In this context, it means the final goal or aim]
The roads are strewn with sharp-edged stones
Terrible beasts hover around the way
Even though the movement [travel] is difficult, always place...........
With effort everything is possible
With right knowledge and skills society can be organized
Thus protecting the goodness in the society
Continue to march forward
Remove the fear; meditate on strength in the heart
Give devotion to GOD
Always think of the goal, always place .....



    ***********अन्य प्रकार ****************

        “सदैव पुरतो निधेहि चरणम्” इति गीतं राष्ट्रवादिकविना श्रीधरभास्करवर्णेकर-महोदयेन विरचितम् अस्ति। जीवने अनेकाः समस्याः भवन्ति धैर्येण आत्मविश्वासेन च तासां समाधानं कृत्वा सर्वदा अग्रे गन्तुम् इदम् गीतं प्रेरयति। अनेन गीतेन कविना जनजागरणस्य कर्मठतायाः च सन्देश: प्रदत्तः  अस्ति। 
  
       ************************************
                   सदैव पुरतो निधेहि चरणम्                

        हमें सदा आगे ही कदम रखना चाहिए 

                          अथवा

        सदा आगे बढ़ते रहना चाहिए।

        श्रीधरभास्कर वर्णेकर द्वारा विरचित प्रस्तुत गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है। इसके प्रणेता राष्ट्रवादी कवि हैं और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का सन्देश दिया है। 

     

                      सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
                     

   चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।


१) गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्। 
विनैव यानं नगारोहणम्। 
 बलं स्वकीयं भवति साधनम्। 
       सदैव पुरतो .......................।।




२) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंंस्राः पशवः परितो घोराः।। 
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
     सदैव पुरतो .......................।।



३) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाsनुरक्तिम्।।
  कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्। 
          सदैव पुरतो .......................।।


Comments

Popular posts from this blog

छात्र-प्रतिज्ञा (संस्कृत) Student's Pledge (Sanskrit)

छात्र-प्रतिज्ञा (संस्कृत)  Student's Pledge (Sanskrit) भारतं अस्माकं देशः।  वयं सर्वे भारतीया:  परस्परं भ्रातरो भगिन्यश्च ।  अस्माकं देशः प्राणेभ्योsपि प्रियतर: ।  अस्य समृद्धौ विविध-संस्कृतौ च वयं गौरवम् अनुभवाम:।  वयं अस्य सुयोग्याः अधिकारिणो भवितुं सदा प्रयत्नं करिष्याम:।   वयं स्वमातापित्रो: शिक्षकाणां गुरुजनानां च सदैव सम्मानं करिष्याम:।  सर्वैः च सह शिष्टतया व्यवहारं करिष्याम:।  वयं स्वदेशं देशवासिनश्च प्रति विश्वासभाज: भवेम।  (वयं स्वदेशं  देशवासिनश्च प्रति कृतज्ञतया वर्तितुं प्रतिज्ञां कुर्म:।)  तेषां कल्याणे समृद्धौ च अस्माकं  सुखं निहितम् अस्ति। जयतु भारतम्। ------------------------------------------------------------  "भारत हमारा देश है!  हम सब भारतवासी भाई- बहन है!  हमें अपना देश प्राण से भी प्यारा है!  इसकी समृद्धि और विविध संस्कृति पर हमें गर्व है!  हम इसके सुयोग्य अधिकारी बनने का प्रयत्न सदा करते रहेंगे!  हम अपने माता पिता, शिक्षकों और गुरुजनों का सदा आदर करेंगे और  सबके साथ शिष्टता का व्यवहार करेंगे!  हम अपने देश और देशवासियों के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञ

संस्कृत-वाक्य-रचना (Sanskrit Vakya Rachna)

संस्कृत-वाक्य-रचना (Sanskrit Vakya Rachna)  This Table can be useful to teach Students, How to make/Translate Sentences in Sanskrit..  (click to Zoom)                       1.   प्रथम पुरुष   1.1 पुल्लिंग-   बालक जा रहा है।   (वर्तमान-काल) बालकः गच्छति।  बालक पढ़ता है। बालक: पठति।  दो बालक पढ़ते हैं। (द्विवचन)  बालकौ  पठत:।  सभी बालक पढ़ते हैं। (बहुवचन)  बालका: पठन्ति।  बालक पढ़ेगा। (भविष्य-काल) बालक: पठिष्यति।  ("लट् लकार" में " ष्य " जोड़ने पर "लृट् लकार" का रूप बनता है यथा- पठति+ ष्य=  पठिष्यति) बालक गया। (भूत-काल) बालकः गच्छति स्म।   स्म " का प्रयोग किया  बालकः अगच्छत्।   लंङ् लकार (भूतकाल के लिए "लंङ् लकार" के स्थान पर  " लट्  लकार" में " स्म " का प्रयोग किया जा सकता है।)  बालक ने पढ़ा। बालकः पठति स्म।  (भूतकाल के लिए "लंङ् लकार" के स्थान पर  " लट् लकार" में " स्म " का प्रयोग किया जा सकता है।)  सभी बालकों ने पढ़ा। बालकाः पठन्ति स्म।    वह पढ़ता है। सः पठति। कौन पढ़ता है। कः पठति।  आप पढ़ते

पिपासितः काकः (Thirsty Crow) Sanskrit Story

    पिपासितः  काकः (Thirsty Crow)  Sanskrit Story           एकदा एकः काकः  पिपासितः  आसीत्।  सः जलं पातुम्  इतस्ततः  अभ्रमत्। परं  कुत्रापि  जलं न प्राप्नोत्।  अन्ते सः एकं घटम् अपश्यत्।  घटे  स्वल्पम्  जलम् आसीत्।  अतः सः जलम्  पातुम्  असमर्थः अभवत्।  सः एकम्  उपायम्  अचिन्तयत्।  सः  पाषाणस्य  खण्डानि घटे अक्षिपत्। एवं क्रमेण घटस्य जलम्  उपरि  आगच्छत्।  काकः जलं पीत्वा  संतुष्टः  अभवत्।  परिश्रमेण एव  कार्याणि  सिध्यन्ति न तु मनोरथैः।