सूक्तिः / सुवचनानि
(Sanskrit Sukti / Suvachanaani)-
1. ज्ञानं तृतीयं पुरुषस्य नेत्रम्।
अर्थ-
ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है ।
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2. विद्यायाश्च फलं ज्ञानं विनयश्च। (शुक्रनीतिः)
अर्थ-
विद्या का फल ज्ञान और विनय (विनम्रता) है ।
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3. हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
अर्थ-
हितकारी बातें, मन को भी अच्छी लगे ऐसा दुर्लभ ही होता है।
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4. आत्मज्ञानं परं ज्ञानम् । (महाभारतम्)
अर्थ-
आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है।
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5. ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन।
आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है।
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5. ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन।
आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है।
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5. ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन।
अर्थ-
ज्ञान से मुक्ति प्राप्त होती है, आभूषणों से नहीं।
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6. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। (गीता - ३/३८)
अर्थ-
ज्ञान के समान अन्य कोई भी वस्तु इस संसार में पवित्र नहीं है।
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7. अविवेकः परमापदां पदम्।
अर्थ-
अज्ञान ही सभी समस्याओं की जड़ है।
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8. अविद्या-जीवनं शून्यम्।
अर्थ-
अविद्यापूर्ण जीवन सूना है।
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9. क्षणशः कणशश्चैव विद्याम् अर्थं च साधयेत्।
अर्थ-
एक-एक क्षण का उपयोग कर विद्या का और एक-एक कण का उपयोग कर धन का संचय करना चाहिए ।
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10. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
अर्थ-
जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता रमते हैं।
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11. शठे शाठ्यं समाचरेत्।
अर्थ-
दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना उचित है।
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12. मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव।
अर्थ-
माता, पिता और गुरु को देवता मानो।
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13. सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम्।
अर्थ-
सन्तोष ही मनुष्य का श्रेष्ठ धन है।
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14. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थ-
हमारी माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है।
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15. संघे शक्तिः कलौयुगे।
अर्थ-
कलियुग में संघ में ही शक्ति होती है।
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16. शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।
अर्थ-
शरीर को स्वस्थ रखो क्योंकि यही धर्म का साधन है।
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17. परोपकाराय सतां विभूतयः।
अर्थ-
सज्जनों के सभी कार्य परोपकार के लिये ही होते हैं।
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18. उद्योगिनं पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मीः।
अर्थ-
लक्ष्मी सिंह के समान उद्योगी पुरुष के पास जाती है।
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19. सत्यमेव जयते नानृतम्।
अर्थ-
सत्य की ही जीत होती है । झूठ की नहीं।
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20. विद्या विहीनः पशुः।
अर्थ-
विद्याहीन व्यक्ति पशु है।
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21. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः।
अर्थ-
आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
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22. पुराणमित्येव न साधु सर्वम्।
अर्थ-
सब पुराना ही अच्छा नहीं होता।
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23. परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ।
अर्थ-
परोपकार करना पुण्य होता है और
दूसरों को (मन, वचन, कर्म से) दुःख देना पाप होता है।
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24. सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम् ।
अर्थ-
अचानक (आवेश में आ कर बिना सोचे समझे ) कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि
विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है ।
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25. वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ।।
अर्थ-
जो व्यक्ति सोच-समझकर कार्य करता है;
गुणों से आकृष्ट होने वाली लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।
सूक्तिय:
1- उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।।
अर्थात- कार्य परिश्रम करने से पूर्ण होता है , मनोरथ करने से नहीं ।
2- दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ।।
अर्थात- भाग्य के भरोसे कायर पुरुष रहते हैं ।
3- यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः ।।
अर्थात- यदि प्रयत्न करने पर भी सफलता न मिले ता देखना चाहिए कि दोष कहाँ है ?
4- नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।।
अर्थात- ज्ञान के समान इस संसार में और कुछ पवित्र नही
5- भोगो भूषयते धनम् ।।
अर्थात- धन की शोभा उसका उपभोग करने से है ।
6- सन्तोष एव पुरुषस्य परमनिधानम् ।।
अर्थात- सन्तोष मनुष्य का सबसे बड़ा धन है ।
7- यस्तु क्रियावान् पुरुषः स एव ।।
अर्थात- जो क्रियाशील है , वही पुरुष है ।
8- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।।
अर्थात- जननी तथा जन्मभूमि स्वर्ग से भी बड़ी होती हैं या ' जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान् ' है ।
9- उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
अर्थात- उदार चरित्रवाले के लिए संसार ही परिवार है ।
10- अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति ।।
अर्थात- बिना परिश्रम शक्तिमान् भी कुछ नहीं कर सकता ।
11- शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् ।।
अर्थात- शरीर ही धर्म का सबसे पहला साधन है ।
12- अहिंसा परमो धर्मः ।।
अर्थात- अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है ।
13- सुलभा रम्यता लोके दुर्लभो हि गुणार्जनम् ।।
अर्थात- संसार में सुन्दरता तो सरलता से मिल जाती है , किन्तु गुण - ग्रहण करना कठिन है ।
14- महाजनो येन गतः स पन्थाः ।।
अर्थात- महापुरुष जिस मार्ग से जाएँ , वही श्रेष्ठ मार्ग है ।
15- आत्मज्ञानं परमज्ञान ।।
अर्थात- अपने को पहचानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है ।
16- ज्ञानमेव परमो धर्मः ।।
अर्थात- ज्ञान ही सबसे बड़ा धर्म है ।
17- स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।।
अर्थात- स्वाध्याय में आलस्य मत करो ।
18- अति सर्वत्र वर्जयेत ।।
अर्थात- किसी भी प्रकार की अति का परित्याग कर देना चाहिए ।
19- मानो हि महतां धनम् ।।
अर्थात- मान ही पुरुषों का धन है ।।
20- वचने का दरिद्रता ।।
अर्थात- मधुर बोलने में क्या गरीबी ।
21- नास्ति क्रोधसमो रिपुः ।।
अर्थात- क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं ।
22- गतस्य शोचनं नास्ति ।।
अर्थात- बीती ताहि बिसार दे ।
23- विनाशकाले विपरीत बुद्धिः ।।
अर्थात- बुरे दिन आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है ।
24- आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।।
अर्थात- भोजन तथा व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए ।
25- सत्यमेव जयते नाऽनृतम् ।।
अर्थात- सत्य की जीत होती है , झूठ की नहीं ।
26- परोपकाराय सतां विभूतयः ।।
अर्थात- सज्जनों का धन दूसरों की भलाई के लिए होता है ।
27- विद्यारत्नं महाधनम् ।।
अर्थात- विद्यारूपी रत्न सबसे बड़ा धन है ।
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