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नवरात्रि - दुर्गा सप्तशती- पूजन विधि (Navratri - Durga Saptshati - Poojan Vidhi)

            नवरात्रि - दुर्गा सप्तशती- पूजन विधि

     Navratri - Durga Saptshati - Poojan Vidhi 


       सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
      शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।


          "नवरात्रि" संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "नौ रातें"।  आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना को समर्पित नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है-  चैत्र, आषाढ़,  आश्विन तथा पौष मास में। जिसमें वासंतिक /चैत्र ( March-April) नवरात्रि और दूसरा शारदीय/ अश्विन (September - October) नवरात्रि विशेष रूप से मनायी जाता है ।
       भारतीय पंचांग (हिन्दू कैलेंडर) के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है। 

      चैत्र मास की नवमी को ''राम नवमी" तथा 
     अश्विन मास की दशमी तिथि को "विजयादशमी/ दशहरा" मनाया जाता है। 


   "नवरात्रि"  मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व है।    इन नौ दिनों में मां दुर्गा के निम्नलिखित स्वरूप की पूजा की जाती है- 


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।। 


१) नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री (पहाड़ों की पुत्री) की पूजा की जाती है।

२) दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।

३) तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा (चंद्र के समान चमकने वाली)  स्वरूप की पूजा की जाती है।

४) चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा (पूरा जगत जिनके पैरों में है) स्वरूप की जाती है।

५) पांचवे दिन स्कंदमाता (भगवान कार्तिक की माता) की पूजा की जाती है।

६) छठे दिन कात्यायनी (कात्यायन आश्रम में जन्मी) माता की पूजा की जाती है।

७) सातवें दिन को महा सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन माता कालरात्रि (काल का नाश करने वाली) की पूजा की जाती है।

८) आठवे दिन दुर्गा अष्टमी होती है। इस दिन महागौरी (सफ़ेद रंग वाली माँ)  की पूजा की जाती है।

९) नौवें दिन मां सिद्धिदात्री (सर्व सिद्धि देने वाली) की पूजा की जाती है।


      नवरात्रि के 10वें दिन हवन आदि करने का विधान भी है। ब्राह्मण को दान करने के बाद व्रत करने वाले व्यक्ति को भोजन ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करना चाहिए।

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       नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। नवरात्रि में पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा और दुर्गा आरती के अलावा दुर्गा सप्तशती का पाठ भी महत्वपूर्ण होता है। नवरात्रि के विशेष अवसर पर यदि हम दुर्गा सप्तशती के  मंत्रों का जाप करेंगे, तो हमे माता की विशेष कृपा प्राप्त होगी।


                           दुर्गा सप्तशती 

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष आशीर्वाद प्राप्ति के लिए किया जाता है। मार्कण्डेय पुराण से संकलित दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय,  700 श्लोक है तथा  कुछ सिद्ध सम्पुट मंत्र दिए गए हैं। हर मनोकामना के लिए अलग मंत्र है। मां दुर्गा की पूजा के समय इन मंत्रों का जाप करके हम अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकते हैं। विशेष पाठ में इस मंत्रों का सम्पुट लगाकर प्रत्येक श्लोक से पहले तथा बाद में उच्चारित किया जाता है।

 आइए जानते हैं इन मंत्रों के बारे में -

 

         1. रोग नाश के लिए मंत्र

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा

रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।


        2. आरोग्य एवं सौभाग्य का मंत्र

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।


         3. विपत्ति नाश और शुभता के लिए मंत्र

करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी

शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।


         4. शक्ति प्राप्ति के लिए मंत्र

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तु ते।।


         5. अपने कल्याण के लिए मंत्र

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते।।


        6. रक्षा पाने के लिए मंत्र

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।

घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।


        7. प्रसन्नता के लिए मंत्र

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।

त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।


        8. स्वर्ग और मोक्ष के लिए मंत्र

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।


      9. महामारी नाश के लिए-

जयन्ती मंङ्गला काली, भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोsस्तु ते।। 


    ध्यान रखने वाली बात यह है कि आप जब भी इन मंत्रों का जाप करें तो मन को शांत तथा एकाग्र रखें और मंत्रों का सही  उच्चारण करें।

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                        कलश स्थापना 
                        

          नवरात्रि में नौ देवियों की आराधना से पूर्व घट स्थापना या कलश स्थापना किया जाता है। कलश स्थापना मुख्यत: नौ दिन तक व्रत रखने वाले लोग करते हैं, लेकिन कई जगहों पर जो लोग नवरात्रि में प्रतिपदा और अष्टमी के दिन व्रत रखते हैं, वे भी कलश स्थापना करते हैं। कलश स्थापना शुभ मुहूर्त में किया जाता है, ऐसा करना फलदायी माना जाता है। यदि आप नवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपको भी  कलश स्थापना करनी चाहिए । 

        कलश स्थापना की सामग्री, विधि आदि इस प्रकार हैं -                

       कलश स्थापना के लिए  मिट्टी का कलश उपयोग करें तो उत्तम होगा, यदि संभव नहीं है तो ताम्र लोटे को कलश बना सकते हैं। कलश स्थापना में आपको एक कलश, स्वच्छ मिट्टी, थाली, कटोरी, जल, ताम्र कलश, आचमन हेतु ताम्र चम्मच,  मिट्टी का पात्र, दूर्वा, इत्र, चन्दन, चौकी, लाल वस्त्र, रूई, नारियल, चावल, सुपारी, रोली, मौली, जौ, धूप, दीप, फूल, नैवेद्य (मिठाई आदि)  गुलाल, केसर, सिन्दूर, लौंग, इलायची, पान, सिंगार सामग्री , वस्त्र, आभूषण, बिल्ब पत्र, यज्ञोपवीत, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर, गंगाजल  आदि। 


                 कलश स्थापना विधि

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूर्व की और मुख कर बैठ जाएं।  फिर कलश स्थापना के लिए सामग्री पूजा स्थल पर एकत्र कर लें। अब एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित कर दें। इसके पश्चात मां दुर्गा के बाईं ओर सफेद वस्त्र पर 9 कोष्ठक नौ ग्रहों के लिए तथा लाल वस्त्र पर 16 कोष्ठक षौडशामृत/ षोडशमातृ (16 माता)  के लिए बना लें।  तत्पश्चात कलश के गले में मौली /  रक्षा सूत्र बांधें और उस पर रोली (सिंधुर) से स्वास्तिक बनाएं।

        इसके पश्चात कलश स्थापना करें और  पास गेहूं तथा चावल रख दें। फिर कलश में जल भरें तथा आम की पत्तियां डाल दें। इसके बाद एक मिट्टी/ ताम्र आदि के पात्र (कटोरी आदि) में चावल लें और उस पर नारियल के गोले में रक्षा सूत्र (मौली) लपेट कर रखें। उस पात्र को कलश के मुख पर रख दें। अब एक अखंड दीपक जलाकर वहां रखें। इसके अलावा मिट्टी के पात्र में जौ को मिट्टी के साथ भर लें और उसे जल से सिंचित करें। अब उस पात्र को माता रानी की चौकी के बाईं ओर स्थापित करें।


 कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की विधिपूवर्क पूजा करें।

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                                                      संकलन कर्ता-

                                                       डॉ. विपिन शर्मा



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