मंगलाचरणम् (केंद्रीय विद्यालय संगठन से संबंधित मंत्र) MANTRAS Related to Kendriya Vidyalaya Sangathan
मंगलाचरणम् (केंद्रीय-विद्यालय-संगठन-संबद्ध-मंत्राः)
MANTRAS / SHALOK Related to
Kendriya Vidyalaya Sangathan
(मन्त्र: -पदविभाग: -शब्दार्थ: - सरलार्थ:)
(1) ॐ असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्माsमृतं गमय ।।
पदविभाग:-
असतो मा सद्-गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्-गमय ।
मृत्यो:-मा अमृतं गमय ।।
शब्दार्थाः-
असतो - असत्य, मा- मुझे, सद्- सच्चाई, गमय - ले चलें।
तमसो- अंधकार, मा- मुझे, ज्योति:- प्रकाश, गमय- ले चलें।
मृत्यो:- मृत्यु, मा- मुझे, अमृतम्- अमरता की तरफ, गमय- ले चलें।
सरलार्थ-
हे प्रभु! हमें असत्य से सत्य की ओर ले जाएं।
अज्ञान रूपी अंधकार से, ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाएं। मृत्यु के भय से, अमरत्व के ज्ञान की ओर ले जाएं।
लिप्यंतरण (Transliteration) :
Om Asato Maa Sad-Gamaya |
Tamaso Maa Jyotir-Gamaya |
Mrtyor-Maa Amrtam Gamaya |
Meaning:
1: Om, Lead us from Unreality (of Transitory Existence) to the Reality (of the Eternal Self),
2: Lead us from the Darkness (of Ignorance) to the Light (of Spiritual Knowledge),
3: Lead us from the Fear of Death to the Knowledge of Immortality.
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(2) ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु
मा विद्विषावहै ।।
पदविभाग:-
ॐ सह नौ अवतु । सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि-नौ-अवधीतम् अस्तु
मा विद्विषावहै ।।
शब्दार्थाः-
सह-साथ, नौ- हम दोनों की, अवतु- रक्षा करें ।
सह-साथ, नौ- हम दोनों की, भुनक्तु -पालन पोषण करें।
सह-साथ, वीर्यं -शक्ति, करवावहै- कार्य करें।
तेजस्वि-ज्ञान वर्धक, नौ- दोनों, अवधीतम् - पढ़ा हुआ ज्ञान, अस्तु- हो।
मा-नहीं, विद्विषावहै- ईर्ष्या न करें।।
सरलार्थ-
हे प्रभु हम दोनों गुरु तथा शिष्य की रक्षा करें, दोनों का पालन पोषण करें, हमें ऊर्जा से पूर्ण करें, हमारी पढ़ी हुई विद्या तेजोमय हो, तथा हम किसी से भी द्वेष/ घृणा न करें।
लिप्यंतरण (Transliteration) :
Om Saha Nau-Avatu |
Saha Nau Bhunaktu |
Saha Viiryam Karavaavahai |
Tejasvi Nau-Adhiitam-Astu
Maa Vidvissaavahai |
Meaning:
1: Om, May Gus Both (the Teacher and the Student),
2: May God Nourish us Both,
3: May we Work Together with Energy and Vigour,
4: May our Study be Enlightening and not give rise to Hostility,
5: Om, Peace, Peace, Peace.
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(3) हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥
(ईशोपनिषद् मंत्र-15)
पदविभाग:-
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य-अपिहितं मुखम्।
तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्य-धर्माय दृष्टये ॥
अन्वय (Anvaya)
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य मुखम् अपिहितम् अस्ति। पूषन् तत् सत्यधर्माय दृष्टये त्वम् अपावृणु ॥
शब्दार्थाः-
हिरण्मयेन-स्वर्णमय, पात्रेण-पात्र से, सत्यस्य-सत्य का, मुखम्-मुख, अपिहितम्-ढका हुआ, अस्ति-है।
पूषन् - सूर्य देव, तत्-वह, सत्यधर्माय- सत्यधर्म के, दृष्टये- दर्शन के लिए, त्वम्- तुम (आप), अपावृणु- हटा दें ॥
सरलार्थ- (Hindi Meaning)
स्वर्णमय पात्र से, सत्य का मुख ढका हुआ है। हे पोषक
सूर्यदेव! आप उस अज्ञानता को दूर कर सत्य धर्म (ज्ञान) की पहचान कराएं।
लिप्यंतरण (Transliteration) :
hiraṇmayena pātreṇa
satyasyāpihitaṁ mukham |
tat tvaṁ pūṣannapāvṛṇu
satyadharmāya dṛṣṭaye ||
अर्थ (English Meaning)
The face of Truth is covered with a brilliant golden lid; that do thou remove, O Fosterer, for the law of the Truth, for sight.
शब्दार्थ (Glossary)-
हिरण्मयेन पात्रेण - hiraṇmayena pātreṇa - a brilliant golden lid |
सत्यस्य - satyasya - of Truth |
मुखम् - mukham - the face |
अपिहितम् - apihitam - is covered |
पूषन् - pūṣan - O Fosterer! |
तत् - tat - that |
सत्यधर्माय - satyadharmāya - for the law of the Truth |
दृष्टये - dṛṣṭaye - for sight |
त्वम् - tvam - do thou |
अपावृणु - apāvṛṇu - remove ।
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संकलनकर्ता-
डॉ. विपिन शर्मा
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