रामनवमी ( Raam Navmi)
भारतीय पंचांग (हिन्दू कैलेंडर) के चैत्र मास (प्रथम माह) (March-April) के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को प्रत्येक वर्ष राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था।
चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ ।
उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥
मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटकाह्वये ।
आविरसीत्सकलया कौसल्यायां परः पुमान् ॥
(निर्णयसिन्धु)
इस श्लोक के अनुसार श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।
भगवान श्री राम के जन्म की कथा काफी रोचक है और उनके जन्म के उद्देश्य के पीछे बहुत बड़ी एक पौराणिक घटना थी। वह घटना लंका के राजा रावण के वध की है। भगवान श्रीहरि विष्णु ने लंकापति रावण के सर्वनाश के लिए त्रेतायुग में प्रभु राम के रूप में सातवां अवतार लेकर पृथ्वी पर आए।
श्रीराम जन्म कथा/ Shri Raam Janm Katha
अयोध्या के महाराजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की योजना बनाई। यज्ञ प्रारंभ के समय उन्होंने अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ श्यामकर्ण नामक घोड़ा छोड़ दिया। अब उनका यज्ञ प्रारंभ हुआ। उनके यज्ञ में सभी ऋषि-मुनि, तपस्वी, विद्वान, राजा-महाराजा, मित्र और उनके गुरु वशिष्ठ जी भी शामिल हुए। सभी लोगों की उपस्थिति में यज्ञ प्रारंभ हो गया।
मंत्रोच्चार से चारों दिशाएं गूंज उठीं और यज्ञ की आहुति से महकने लगीं। यज्ञ के लिए विशेष खीर बनाया गया। यज्ञ के समापन के समय महाराज दशरथ ने अपने सभी अतिथियों, ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों आदि को दान देकर सकुशल विदा किया।
यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ने दशरथ की तीनों पत्नियों को प्रसाद रूप में एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने राम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।
गुरु विश्वामित्र ने ही भगवान राम को धनुर्विद्या और शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया। वहीं, ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम को राज-पाट और वेदों की शिक्षा दी। उन्होंने ही श्रीराम का राज्याभिषेक कराया था।
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💫 श्रीराम वंदना 💫
आपदामपहर्तारं दातारां सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो-भूयो नामाम्यहम्॥१॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥ २।।
💫 एक श्लोकी रामायण 💫
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
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संकलनकर्ता-
डॉ. विपिन शर्मा,
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