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7.4 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम् चतुर्थ: पाठ: (हास्यबालकविसम्मेलनम् ) Class 7th, Subject - Sanskrit (Hasya-Baal-Kavi-SammelanaM)

         7.4 कक्षा - सप्तमी,  विषय: - संस्कृतम्
            चतुर्थ: पाठ:  (हास्यबालकविसम्मेलनम् )
       Class 7th,   Subject - Sanskrit
         (Hasya-Baal-Kavi-SammelanaM)

       ************************************
नमो नमः। 
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-2 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम्। 
अद्य वयं चतुर्थं पाठं पठामः। 
पाठस्य नाम अस्ति -   हास्यबालकविसम्मेलनम्
अहं डॉ. विपिन:।
       ************************************
हास्यबालकविसम्मेलनम् =  हास्य+बाल+कवि+सम्मेलनम्।

"हास्यबालकविसम्मेलनम्" का अर्थ हुआ-
   बाल कवियों की हास्य (कविताओं का) सम्मेलन।
    
      इस पाठ में हास्य बाल कविताओं (श्लोकों) के माध्यम से मनोरंजक दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
     इस पाठ में अव्यय का विशेष रूप से प्रयोग किया गया है। 
सभी लिंग, विभक्ति, वचन में जो शब्द एक समान रहे उस पद/शब्द को अव्यय कहा जाता है । 

 यथा- उपरि, अधः, अलं, उच्चैः इत्यादि। 

       ************************************         
           -पाठ अर्थ और संधि-विच्छेद सहित-

                        चतुर्थः पाठः
               हास्यबालकविसम्मेलनम् 

(विविध-वेशभूषाधरिणः चत्वारः बालकवयः मञ्चस्य उपरि उपविष्टाः सन्ति।

(यहां रेखांकित  (Underline) शब्द अव्यय शब्द हैं।) 


अर्थ-
अनेक प्रकार की  वेेेशभूषा  धारण किए हुए चार बाल कवि मंच के ऊपर बैठे हुए हैं।

अधः श्रोतारः हास्य-कविता-श्रवणाय उत्सुकाः सन्ति कोलाहलं च कुर्वन्ति।) 
अर्थ- 
नीचे श्रोतागण (सुनने वाले) हास्य कविता सुनने के लिए उत्सुक हैं और शोर कर रहे हैं।

 






सञ्चालकः - अलं कोलाहलेन।
अर्थ-
संचालक - शोर करना बंद करें। 

अद्य परं हर्षस्य अवसरः यत् अस्मिन् कविसम्मेलने
काव्यहन्तारः कालयापकाश्च (कालयापकाः+च)  भारतस्य हास्यकविधुरन्धराः समागताः सन्ति।
अर्थ- 
आज बहुत खुशी का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन में काव्य को नष्ट करने वाले, समय बर्बाद करने वाले, भारत के हास्य कवि धुरंधर (अग्रणी, श्रेष्ठ) आए हुए हैं।

एहि, करतलध्वनिना वयम् एतेषां स्वागतं कुर्मः।
अर्थ-
आयें, तालियों की आवाज से हम इनका स्वागत करतें हैं।

गजाधरः - सर्वेभ्योsरसिकेभ्यो नमो नमः
अर्थ- 
गजाधर - सभी नीरस जनों को नमस्कार। 

प्रथमं तावद् अहम् आधुनिकं वैद्यम् उद्दिश्य स्वकीयं काव्यं श्रावयामि- 
अर्थ-
तो सबसे पहले मैं आधुनिक वैद्य पर अपना काव्य सुनाता हूँ।

            वैद्यराज! नमस्तुभ्यं यमराजसहोदर ।
          यमस्तु हरति प्राणान् वैद्यः प्राणान् धनानि च ।।

अनवयः- 

वैद्यराज! यमराजसहोदर तुभ्यं नमः यमः तु प्राणान् हरति  वैद्यः प्राणान् धनानि च (हरति)।

अर्थ- 
हे वैद्यों के राजा, हे यमराज के सगे भाई तुम्हें नमस्कार है। यम तो केवल प्राण हरता है, (परंतु) वैद्य प्राण और धन दोनों को हर लेता है।   

               (सर्वे उच्चैः हसन्ति)
अर्थ-         सभी जोर से हंसते हैं। 

कालान्तकः - अरे! वैद्यास्तु (वैद्याः+तु) सर्वत्र परन्तु न ते मादृशाः कुशलाः जनसंख्यानिवारणे।

अर्थ- 
कालान्तक - अरे वैद्य मेरे जैसे कुशल नहीं है जो जनसंख्या को कम करने में।

ममापि (मम+अपि) काव्यम् इदं शृण्वन्तु भवन्तः-

अर्थ- 
आप सब मेरा भी यह काव्य सुने।

          चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा वैद्यो विस्मयमागतः ।
         नाहं गतो न मे भ्राता कस्येदं हस्तलाघवम् ।।

अनवयः- 

वैद्यः चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा विस्मयम् आगतः। न अहं गतः न मे भ्राता (गतः)।  इदं कस्य हस्तलाघवम् (अस्ति)। 

अर्थ-
चिता को जलता हुआ देखकर (कोई) वैद्य चकित हो गया। (वह सोचने लगा) न तो मैं गया न हीं मेरा भाई, तो यह हाथ की सफाई किसकी है?

                     (सर्वे पुनः हसन्ति)
अर्थ-            सभी फिर हंसते हैं। 
                  
तुन्दिलः - (तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन्) तुन्दिलोsहं भोः।
अर्थ- 
तुन्दिल - (अपने पेट के ऊपर हाथ फेरते हुए)  अरे मैं मोटू  हूँ।

ममापि इदं काव्यं श्रूयताम्, जीवने धार्यतां च-
अर्थ- 
मेरा भी यह काव्य  सुनें, और जीवन में धारण करें (अपनाइये)।  

            परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे! मा शरीरे दयां कुरु ।

            परान्नं दुर्लभं लोके शरीराणि पुनः पुनः ।।

अनवयः- 

 दुर्बुद्धे ! परान्नं प्राप्य  शरीरे दयां मा कुरु ।  (यतो हि)   लोके परान्नं दुर्लभं (अस्ति)  शरीराणि (तु) पुनः पुनः (भवन्ति)

अर्थ-
हे मूर्ख!  दूसरे का भोजन खाओ, शरीर पर दया मत करो।  (क्योंकि इस संसार में)  दूसरे का भोजन बहुत मुश्किल से मिलता है, परंतु यह शरीर तो बार-बार मिलता है।

        
                      (सर्वे पुनः अट्टहासं कुर्वन्ति)
अर्थ-              सभी पुनः ज़ोर से हंसते हैं।

चार्वाकः - आम्, आम्। शरीरस्य पोषणं सर्वथा उचितमेव।
अर्थ-
चार्वाक - हां, हां।  शरीर का पोषण तो उचित ही है।

यदि धनं नास्ति (+अस्ति),
अर्थ-
यदि धन नहीं है, 

तदा ऋणं कृत्वापि (कृत्वा+अपि) पौष्टिकः पदार्थः एव भोक्तव्यः। 

अर्थ-
तब ऋण लेकर भी पौष्टिक पदार्थ ही खाने चाहिए।

तथा कथयति चार्वाककविः-
अर्थ-
और चार्वाक कवि  कहते हैं- 

           यावज्जीवेत् सुखं जीवेद् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
अर्थ-
         जब तक जियो, सुख से जियो, (चाहेे) कर्ज लेकर घी पियो।

श्रोतारः - तर्हि ऋणस्य प्रत्यर्पणं कथम्?
अर्थ-
श्रोता  - तो  कर्ज़ को वापस कैसे करेंगे? 

चार्वाकः - श्रूयतां मम अवशिष्टं काव्यम्-
अर्थ-
चार्वाक -  मेरी शेष काविता सुुनो।

घृतं पीत्वा श्रमं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत् जनः ।।
अर्थ-
घी पीकर, मेहनत करके, मानव ऋण को वापस करें।

        (काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालकोsपि आशुकवितां रचयति, हासपूर्वकं च श्रावयति )
अर्थ-
(काव्य पाठ को सुनने से प्रेरित एक बालक भी अपनी आशु कविता की रचना करता है और हंसते हुए सुनाता है)

बालकः - श्रूयताम्, श्रूयतां भोः! ममापि (मम+अपि) काव्यम्-
अर्थ-
बालक - अरे सुनो, सुनो। मेरा भी काव्य सुनो-

         गजाधरं कविं चैव तुन्दिलं भोज्यलोलुपम् ।
         कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमाम्यहम् ।।

अनवयः-  

अहम् गजाधरं कविं, तुन्दिलं च एव भोज्य-लोलुपम् कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमामि।। 

अर्थ-
 मैं गजाधर कवि, और भोजन के ही लालची मोटू , कालान्तक (यमराज), वैद्य और चार्वाक को नमस्कार करता हूं। 

(काव्यं श्रावयित्वा ‘हा हा हा’ इति कृत्वा हसति।
अर्थ- 
काव्य का सुना कर 'हा हा हा' यह करके हंसता है।

अन्ये चाsपि (च+अपि) हसन्ति।

अर्थ-
और अन्य भी हंसते हैं 

सर्वे गृहं गच्छन्ति।)
अर्थ-
सभी घर चले जाते हैं।


English Translation


       ************************************
                             शब्दार्था:

1. अधः              - नीचे - Downwards 

2. कोलाहलम्      - शोर - Noise 

3. काव्यहन्तारः    - काव्य को नष्ट करने वाले - Destroyers of poetry 

4. कालयापकाः   - समय बर्बाद करने वाले  - Whiling away the time 

5. धुरन्धराः.        - अग्रणी, श्रेष्ठ - The best 

6. एहि               - आयें, आइए - Please come 

7. करतलध्वनिना - तालियों से - With Clapping sound 

8. अरसिकेभ्यः.    - नीरस जनों को - To the disinterested (persons) 

9. स्वकीयम्         - अपने - Own

10. मादृशाः         - मेरे जैसे Like me

11. हस्तलाघवम्  - हाथ की सफाई  - Hand's work 

12. तुन्दस्य          - तोंद के - Enlarged belly 

13. आवर्तयन्       - फेरता हुआ - Putting hands all over 

14. धार्यताम्        - धारण करें - Please bear 

15. परान्नम् (परा+अन्नम्) - दूसरों के अन्न को Other's food

16. पौष्टिकः         - पुष्टि देने वाला - Nourishing 

17. प्रत्यर्पणम् (प्रति+अर्पणम्) - लौटाना - Repaying 

18. अवशिष्टम्      - बचा हुआ, शेष - Remaining 

19. उत्प्रेरितः         - प्रेरित होकर - Being inspired 

20. श्रावयति         - सुनाता है - Recites 

21. भोज्यलोलुपम्  - खाने का लोभी - Greedy for food


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      (1) पठनाय (Lesson in PDF) - 
      https://drive.google.com/file/d/113vwybn8OG4oQfgEo-WitksG6VcS6RG2/view?usp=drivesdk
 
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      (2) श्रवणाय  (Audio )- 
   
 (डॉ. विपिन:)     

  https://drive.google.com/file/d/15cWawNB4xN7f0B6OcASl56BbQkdset1E/view?usp=drivesdk

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             (3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video ) 
 

    पाठः शब्दार्थाः च - 

https://youtu.be/RyaaJBW-LJE
   (डॉ. विपिन:) 

          1.1  पाठ: 
https://youtu.be/0Emh8lXIQqY
  (OnlinesamskrTutorial)

           1.2  अभ्यास:  
https://youtu.be/7yhCrdAAhhs
        (OnlinesamskrTutorial)            

              

       ----------------------------------------
           (4) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि 
               (Lesson Exercise )  
           
https://drive.google.com/file/d/1b3OAXHne5YECW8zoHwwa2TqlF01m0dAd/view?usp=drivesdk

        --------------------------------------
           (5)   अभ्यासाय  (B2B Worksheet)      
https://drive.google.com/file/d/1iJm89niGlM-ZfFMhM-THEvGa_W-GIg4i/view?usp=drivesdk

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संस्कृत-प्रभा    

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