6.7.1 कक्षा- षष्ठी, विषय:- संस्कृतम्,
सप्तमः पाठ: (बकस्य प्रतीकारः)
Class-6th, Subject-Sanskrit,
Lesson- 7 (Bakasya Pratikaar)
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नमो नमः।
षष्ठकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-1 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अधुना वयं सप्तम-पाठं पठामः ।
पाठस्य नाम अस्ति
बकस्य प्रतीकारः
अहं डॉ. विपिन:।
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सप्तमः पाठः - बकस्य प्रतीकारः
(1) एकस्मिन् वने शृगालः बकः च निवसतः स्म।
सरलार्थ-
एक जंगल में सियार और बगुला रहते थे।
तयोः मित्रता आसीत्।
दोनों मित्र थे।
एकदा प्रातः शृगालः बकम् अवदत्- मित्र! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।
एक बार सुबह सियार ने बगुले से कहा- 'हे मित्र! कल तुम मेरे साथ भोजन करो।
शृगालस्य निमन्त्रणेन बकः प्रसन्नः अभवत्।
सियार के निमंत्रण से बगुला प्रसन्न हो गया।
अग्रिमे दिने सः भोजनाय शृगालस्य निवासम् अगच्छत्।
अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के घर गया।
कुटिलस्वभावः शृगालः स्थाल्यां बकाय क्षीरोदनम् अयच्छत्।
कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले के लिए खीर परोसी।
(2) बकम् अवदत् च- मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादावः।
और बगुले से कहा- 'हे मित्र! इस पात्र में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं।'
भोजनकाले बकस्य चञ्चुः स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्।
भोजन के समय बगुले की चोंच थाली से भोजन लेने में समर्थ नहीं थी।
अतः बकः केवलं क्षीरोदनम् अपश्यत्।
इसलिए बगुले ने केवल खीर को देखा।
शृगालः तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत्। शृगालेन वञ्चितः बकः अचिन्तयत्-
सियार तो सारी खीर खा गया। सियार द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा-
(3) यथा अनेन मया सह व्यवहारः कृतः तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि।
'जैसा इसके द्वारा मेरे साथ व्यवहार किया गया है वैसा मैं भी उसके साथ व्यवहार करूंगा।'
एवं चिन्तयित्वा सः शृगालम् अवदत्-मित्र! त्वम् अपि श्वः सायं मया सह भोजनं करिष्यसि।
इस प्रकार सोच कर उसने सियार से कहा- 'हे मित्र! तुम भी कल शाम को मेरे साथ भोजन करोगे।'
बकस्य निमन्त्रणेन शृृगालः प्रसन्नः अभवत्।
बगुले के निमंत्रण से सियार प्रसन्न हो गया।
(4) यदा शृृगालः सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्,
जब सियार शाम को बगुले के घर भोजन के लिए गया,
तदा बकः सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्, शृगालं च अवदत्- मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव (सह+एव) भोजनं कुर्वः।
तब बगुले ने संकुचित मुंह वाले घड़े में खीर परोसी और सियार से बोला- 'हे मित्र! हम दोनों इस पात्र में साथ ही भोजन करते हैं।'
बकः कलशात् चञ्च्वा क्षीरोदनम् अखादत्।
बगुला घड़े से चोंच द्वारा खीर खा गया।
परन्तु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्।
परंतु सियार का मुंह घड़े में नहीं पहुंच सका।
(5) अतः बकः सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्।
इसलिए बगुला सारी खीर खा गया।
शृगालः च केवलम् ईर्ष्यया अपश्यत्।
और सियार ने केवल ईर्ष्या से देखा।
शृृगालः बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्।
सियार ने बगुले के प्रति जैसा व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के प्रति वैसा व्यवहार करके बदला ले लिया।
उक्तमपि (उक्तम्+अपि)-
आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम्।
तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा।।
पदविभागः-
आत्म-दुर्-व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम्।
तस्मात् सद्-व्यवहर्तव्यं मानवेन सुख-एषिणा।।
सरलार्थ-
कहा भी गया है-
अपने बुरे व्यवहार का फल दुखदायी होता है, इसलिए सुख चाहने वाले मानव के द्वारा अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
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गृहकार्यम् -
*पाठात् अव्यय पदानि चित्वा अर्थ-सहितम् लिखत -
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धन्यवादाः।
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(1) पठनाय ( NCERT Book in PDF)
(2) श्रवणाय (Audio)-
(3) दृश्य-श्रव्य (Video)
6.1 पाठ-वाचनं विवरणं च
डॉ. विपिनः
पाठ-वाचनं विवरणं च
(OnlinesamskrTutorial)
अभ्यासः
(OnlinesamskrTutorial)
भूतकाल
https://youtu.be/1l9zZ1lvhoA
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(4) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि
(Lesson Exercise )
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(5) अभ्यासाय (B2B Worksheet)
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संस्कृत-प्रभा
6.7.2 अभ्यासः
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