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7.6.2 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम् षष्ठः पाठः ( सदाचारः) Class- 7th, Subject - Sanskrit, Lesson-6 (Sadachaar) Abhyaas

7.6.2 कक्षा- सप्तमी,  विषय:- संस्कृतम् 

षष्ठः पाठः ( सदाचारः) 

Class- 7th,  Subject - Sanskrit,  Lesson-6
(Sadachaar) Abhyaas 

       ************************************

नमो नमः। 
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-2 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम्। 
अद्य वयं षष्ठ-पाठस्य अभ्यासकार्यं कुर्म: ।  
पाठस्य नाम अस्ति -   
                          सदाचारः । 
अहं डॉ. विपिन:। 

       ************************************  
षष्ठः पाठः ( सदाचारः) 
अभ्यासः (Exercise)

प्रश्नः 1 सर्वान् श्लोकान् सस्वरं गायत।

विद्यार्थी श्लोकों को सस्वर गाएंगे।

2-उपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘आम्’ अनुपयुक्तकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत।
(क) प्रातः काले ईश्वरं स्मरेत्।      आम्
(ख) अनृतं ब्रूयात्।                       
(ग) मनसा श्रेष्ठजनं सेवेत।      आम्
(घ) मित्रेण कलहं कृत्वा जनः सुखी भवति।         
(घ) श्वः कार्यम् अद्य कुर्वीत।      आम्

3-एकपदेन उत्तरत-
(क) कः न प्रतीक्षते? 
उत्तरम् - मृत्युः ।

(ख) सत्यता कदा व्यवहारे स्यात्?
उत्तरम् -  सर्वदा ।

(ग) किं ब्रूयात्?
उत्तरम् - सत्यम् / प्रियम् । 

(घ) केन सह कलहं कृत्वा नरः सुखी न भवेत्? 
उत्तरम् - मित्रेण। 

(ङ) कः महारिपुः अस्माकं शरीरे तिष्ठति? 
उत्तरम् - आलस्यम् । 

3-रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- 
(क) मृत्युः न प्रतीक्षते। 
उत्तरम् - कः न प्रतीक्षते?                                पुल्लिंग - प्रथमा विभक्ति - एकवचनम्

(ख) कलहं कृत्वा नरः दुःखी भवति।
उत्तरम् - किं कृत्वा नरः दुःखी भवति?            पुंसकलिंग. - प्रथमा विभक्ति- एकवचनम्


(ग) पितरं कर्मणा सेवेत।
उत्तरम् - कम् कर्मणा सेवेत?                        पुल्लिंग - द्वितीया विभक्ति - एकवचनम्

(घ) व्यवहारे मृदुता श्रेयसी।
उत्तरम् - व्यवहारे का श्रेयसी?                        स्त्रीलिंग - प्रथमा विभक्ति - एकवचनम् 

(ङ) सर्वदा व्यवहारे ऋजुता विधेया। 
उत्तरम् - कदा व्यवहारे ऋजुता विधेया?             अव्यय पद (कदा- कब) 


5- प्रश्नमध्ये त्रीणि क्रियापदानि सन्ति। तानि प्रयुज्य सार्थक वाक्यानि रचयत। 

ब्रुयात् -     बोलें
सेवेत-     सेवा करें
स्यात्-      हो / होना चाहिए


(क) अनृतं प्रियं च न ब्रूयात्।  
(ख) मनसा मातरं पितरं च सेवेत। 
(ग) सत्यं प्रियं च ब्रूयात्। 
(घ) वाचा गुरुं सेवेत
(ङ) सत्यमं अप्रियं च न ब्रूयात्
(च) व्यवहारे कदाचन कौटिल्यं न स्यात्। 
(छ) श्रेष्ठजनं कर्मणा सेवेत। 
(ज) व्यवहारे सर्वदा औदार्यं स्यात्। 


6-मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-

तथा   न   कदाचन   सदा  च   अपि

[तथा- और,     च-और,    न-नहीं,     कदाचन- कभी भी,     सदा-हमेशा,   अपि- भी/ क्या] 

(क) भक्त: सदा ईश्वरं स्मरति।
(ख) असत्यं  वक्तव्यम्।
(ग) प्रियं तथा सत्यं वदेत्।
(घ) लता मेधा  विद्यालयं गच्छतः।
(ङ) अपि कुशली भवान्? 
(च) महात्मागान्धी कदाचन अहिंसां न अत्यजत्।


7- चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत- 

      लिखति,       कक्षायाम्,          श्यामपट्टे,     लिखन्ति,
       सः,              पुस्तिकायाम् ,       शिक्षकः ,          छात्रः ,
        उत्तराणि,        प्रश्नम्,                  ते ,
 कर्ता    सः, शिक्षकः,  छात्रः , ते 
क्रिया-     लिखति, लिखन्ति 
 

कर्ता                         कर्म                 क्रिया (धातु) 


(क) शिक्षकः कक्षायाम् श्यामपट्टे प्रश्नम् लिखति। 
(ख) स: कक्षायाम् श्यामपट्टे प्रश्नम् लिखति। 
(ग) छात्राः उत्तराणि  लिखन्ति। 
(घ) ते उत्तराणि  लिखन्ति।  

अथवा/ Or 

(क) सः शिक्षकः कक्षायाम् श्यामपट्टे प्रश्नम् लिखति। 
(ख) ते छात्राः पुस्तिकायाम् उत्तराणि लिखन्ति
(ग) शिक्षकः बालकान् पाठयति। 
(घ) ते छात्राः पुस्तकानि पश्यन्ति
(ङ) शिक्षकः छात्रान् प्रश्नं पृच्छति। 




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