8.7.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:-संस्कृतम्, सप्तमः पाठ: (भारतजनताsहम् ) Class-8th, Subject-Sanskrit, Lesson- 7 (BharatJantaAham )
8.7.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:-संस्कृतम्, सप्तमः पाठ: (भारतजनताsहम् )Class-8th, Subject-Sanskrit, Lesson- 7 (BharatJantaAham )
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नमो नमः।
अष्टमकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-3 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अधुना वयं सप्तम-पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति
भारतजनताsहम्
अहं डॉ. विपिन:।
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सप्तमः पाठः भारतजनताsहम् (गीतम्)
लक्षित-अधिगम-बिन्दवः (TLOs) -
1) भारतस्य महत्त्वम् विशेषतानां च विषये ज्ञानम्।
2) भारतस्य विविध-कौशलनां रुचीनां च विषये ज्ञानम्।
3) संस्कृत-गीत-पठनेन संस्कृत विषयस्य प्रति रुचि उत्पादनम्।
4) कठिन-पदानां उच्चारणं, नूतन-पदानां अर्थज्ञानम् च।
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(1) अभिमानधना विनयोपेता,
शालीना भारतजनताSहम्।
कुलिशादपि कठिना कुसुमादपि,
सुकुमारा भारतजनताSहम्।।
सरलार्थ-
स्वाभिमान रूपी धन वाली, विनम्रता से परिपूर्ण (भरी हुई) अच्छे स्वभाव वाली मैं भारत की जनता हूँ। वज्र से भी कठोर, फूल से भी अधिक कोमल मैं भारत की जनता हूँ।
(2) निवसामि समस्ते संसारे,
मन्ये च कुटुम्बं वसुन्धराम्।
प्रेयः श्रेयः च चिनोम्युभयं,
सुविवेका भारतजनताSहम्।।
(चिनोमि+ उभयं)
सरलार्थ-
मैं सारे संसार में निवास करती हूँ और पूरी धरती को परिवार मानती हूँ। रुचिकर और कल्याणकारी दोनों प्रकार की वस्तुओं को चुनती हूँ। मैं विवेकशील भारत की जनता हूँ।
(3) विज्ञानधनाSहं ज्ञानधना,
साहित्यकला-सङ्गीतपरा।
अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः,
परिपूता भारतजनताSहम्।।
सरलार्थ-
मैं विज्ञान रूपी धन वाली, ज्ञान रूपी धन वाली हूँ। मैं साहित्य, कला और संगीत में निपुण हूँ। मैं अध्यात्म रूपी अमृतमयी नदी में स्नान करने से पूर्ण पवित्र भारत की जनता हूँ।
(4) मम गीतैर्मुग्धं समं जगत्,
मम नृत्यैर्मुग्धं समं जगत्।
मम काव्यैर्मुग्धं समं जगत्,
रसभरिता भारतजनताSहम्।।
सरलार्थ-
मेरे गीतों से सारा संसार मोहित है। मेरे नृत्यों से सारा संसार मोहित है। मेरे काव्यों से सारा संसार मोहित है। मैं रस से भरी हुई भारत की जनता हूँ।
(5) उत्सवप्रियाSहं श्रमप्रिया,
पदयात्र-देशाटन-प्रिया।
लोकक्रीडासक्ता वर्धेSतिथिदेवा,
भारतजनताSहम्।।
सरलार्थ-
मैं उत्सवों से प्रेम करने वाली, परिश्रम से प्रेम करने वाली, पद यात्राओं तथा देश में भ्रमण से प्रेम करने वाली हूँ। मैं लोक के खेलों पर मोहित, अतिथियों को देवता की तरह समझने वाली भारत की जनता हूँ।
(6) मैत्री मे सहजा प्रकृतिरस्ति,
नो दुर्बलतायाः पर्यायः।
मित्रस्य चक्षुषा संसारं,
पश्यन्ती भारतजनताSहम्।।
सरलार्थ-
मित्रता मेरा सामान्य स्वभाव है, यह मेरी दुर्बलता का पर्याय नहीं है। मैं मित्र की दृष्टि से संसार को देखती हुई भारत की जनता हूँ।
(7) विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि,
विश्वस्मिन् जगति सदा दृश्ये।
विश्वस्मिन् जगति करोमि कर्म,
कर्मण्या भारतजनताSहम्।।
सरलार्थः-
मैं इस सम्पूर्ण विश्व में गई हुई हूँ। मैं इसे सम्पूर्ण विश्व को सदा देखती हूँ। मैं इस सम्पूर्ण विश्व में कर्म करती हूँ। मैं कर्मशील भारत की जनता हूँ।
(2) श्रवणाय (Audio)-
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(3) दृश्य-श्रव्य (Video)
8.6.1 पाठ-वाचनं विवरणं च
डॉ. विपिनः
पाठ-वाचनम्
8.7.1 गीत (डाॅ. रमाकान्त शुक्ल )
https://youtu.be/tcQRSOXmHPc
पाठस्य विवरणम्
https://youtu.be/mA8WlPaPYMg
(OnlinesamskrTutorial)
अभ्यासः
https://youtu.be/YAc7m5WpLvQ
(OnlinesamskrTutorial)
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(4) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि
(Lesson Exercise )
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(5) अभ्यासाय (B2B Worksheet)
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संस्कृत-प्रभा
8.7.2 अभ्यासः
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