8.8.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:-संस्कृतम्, अष्टमः पाठ: (संसारसागरस्य नायकाः ) Class- 8th, Subject- Sanskrit, Lesson- 8 (SansaarSaagarasya NaayakaaH)
8.8.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:-संस्कृतम्,
अष्टमः पाठ: (संसारसागरस्य नायकाः )Class- 8th, Subject- Sanskrit, Lesson- 8(SansaarSaagarasya NaayakaaH)
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नमो नमः।
अष्टमकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-3 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अधुना वयं सप्तम-पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति
संसारसागरस्य नायकाः
अहं डॉ. विपिन:।
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अष्टमः पाठ: (संसारसागरस्य नायकाः )हिंदी-सरलार्थम्
के आसन् ते
अज्ञातनामानः?
सरलार्थ-
वे अज्ञात नाम वाले कौन थे?
शतशः सहस्रशः तडागाः सहसैव शून्यात् न
प्रकटीभूताः।
सैकड़ों हज़ारों तालाब अचानक ही शून्य से प्रकट नहीं हुए हैं।
इमे एव तडागाः अत्र संसारसागराः इति।
ये ही तालाब यहाँ संसार रूपी सागर हैं।
एतेषाम् आयोजनस्य नेपथ्ये
निर्मापयितृृणाम् एककम्, निर्मातृणां च दशकम् आसीत्।
इनकी आयोजना के पीछे बनवाने वालों की इकाई और बनाने वालों की दहाई थी।
एतत् एककं
दशकं च आहत्य शतकं सहस्रं वा रचयतः स्म।
यह इकाई और दहाई मिलकर सैकड़ों अथवा हज़ारों को बनाते थे।
परं विगतेषु द्विशतवर्षेषु नूतनपद्धत्या समाजेन यत्किञ्चित पठितम्।परन्तु पिछले दो सौ वर्षों में नई पद्धति से समाज ने जो कुछ पढ़ा है।
पठितेन तेन समाजेन एककं दशकं सहस्रञ्च इत्येतानि शून्ये एव परिवर्तितानि।उस पढ़े हुए समाज से इकाई, दहाई और सैकड़ा (तलाब) ये शून्य में ही बदल गए हैं।
अस्य नूतनसमाजस्य मनसि इयमपि जिज्ञासा नैव उद्भूता यद् अस्मात्पूर्वम् एतावतः तडागान् के रचयन्ति स्म।
इस नए समाज के मन में यह जानने की इच्छा भी नहीं पैदा हुई कि इससे पहले इन तालाबों को किसने बनाया था।
एतादृशानि कार्याणि कर्तुं ज्ञानस्य यो नूतनः प्रविधिः विकसितः, तेन प्रविधिनाSपि पूर्वं सम्पादितम् एतत्कार्यं मापयितुं न केनापि प्रयतितम्।ऐसे कार्य करने के लिए ज्ञान की जो नई तकनीक विकसित हुई उस तकनीक से भी पहले किए गए इस कार्य को नापने के लिए किसी ने भी प्रयत्न नहीं किया।
अद्य ये अज्ञातनामानः वर्तन्ते, पुरा ते बहुप्रथिताः आसन्।आज जो अपरिचित नाम वाले हैं, पहले वे बहुत प्रसिद्ध थे।
अशेषे हि देशे तडागाः निर्मीयन्ते स्म,निश्चय ही सम्पूर्ण देश में तालाब बनाए जाते थे।
निर्मातारोSपि अशेषे देशे निवसन्ति स्म।बनाने वाले भी सम्पूर्ण देश में रहते थे।
गजधरः इति सुन्दरः शब्दः तडागनिर्मातृृणां सादरं स्मरणार्थम्। गजधर यह सुन्दर शब्द तालाब बनाने वालों के सादर स्मरण के लिए है।
राजस्थानस्य केषुचिद् भागेषु शब्दोSयम् अद्यापि प्रचलति। (अद्य+अपि)राजस्थान के कुछ भागों में यह शब्द आज भी प्रचलित है।
कः गजधरः? यः गजपरिमाणं धारयति स गजधरः।गजधर कौन होता है, जो गज के माप को धारण करता है,वह गजधर होता है।
गजपरिमाणम् एव मापनकार्ये उपयुज्यते। गज का माप ही नापने के काम में उपयोगी होता है।
समाजे त्रिहस्त-परिमाणात्मिकीं लौहयष्टिं हस्ते गृहीत्वा चलन्तः गजधराः इदानीं शिल्पिरूपेण नैव समादृताः सन्ति।समाज में तीन हाथ के बराबर लोहे की छड़ को हाथ में लेकर चलते हुए गजधर आजकल कारीगर के रूप में आदर नहीं पाते हैं।
गजधरः, यः समाजस्य गाम्भीर्यं मापयेत् इत्यस्मिन् रूपे परिचितः।
गजधर, जो समाज की गम्भीरता को नापे इसी रूप में जाने जाते हैं।
गजधराः वास्तुकाराः आसन्।गजधर वास्तुकार थे।
कामं ग्रामीणसमाजो भवतु नागरसमाजो वा तस्य नव-निर्माणस्य सुरक्षाप्रबन्धनस्य च दायित्वं गजधराः निभालयन्ति स्म।चाहे ग्रामीण समाज हो अथवा शहरी समाज, उसके नवनिर्माण की और सुरक्षा प्रबन्ध की जिम्मेदारी गजधर निभाते थे।
नगरनियोजनात् प्रस्तुवन्ति स्म, भाविव्ययम् आकलयन्ति स्म, उपकरणभारान् लघुनिर्माणपर्यन्तं सर्वाणि कार्याणि एतेष्वेव आधृतानि आसन्।
ते योजनां सघ्गृह्णन्ति स्म। नगर की योजना से लेकर छोटे से निर्माण तक सारे कार्य इन्हीं पर ही आधारित थे। वे योजना को प्रस्तुत करते थे, आने वाले खर्च का अनुमान करते थे। साधन सामग्री को इकट्ठा करते थे।
प्रतिदाने ते न तद् याचन्ते स्म यद् दातुं तेषां स्वामिनः असमर्थाः भवेयुः।बदले में वे वह (धन) नहीं माँगते थे जिसे देने में उनके मालिक असमर्थ हों।
कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य गजधरेभ्यः सम्मानमपि प्रदीयते स्म। काम के अन्त में वेतन के अतिरिक्त गजधरों को सम्मान भी दिया जाता था।
नमः एतादृशेभ्यः शिल्पिभ्यः।
ऐसे शिल्पियों को नमस्कार है।
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(1) पठनाय ( NCERT Book in PDF)
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(2) श्रवणाय (Audio)-
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(3) दृश्य-श्रव्य (Video)
8.6.1 पाठ-वाचनं विवरणं च
डॉ. विपिनः
पाठ-वाचनं विवरणं च
8.7.1 गीत
पाठस्य विवरणम्
(OnlinesamskrTutorial)
अभ्यासः
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(4) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि
(Lesson Exercise )
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(5) अभ्यासाय (B2B Worksheet)
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संस्कृत-प्रभा
8.8.2 अभ्यासः
के आसन् ते अज्ञातनामानः?
सरलार्थ-
वे अज्ञात नाम वाले कौन थे?
शतशः सहस्रशः तडागाः सहसैव शून्यात् न प्रकटीभूताः।
सैकड़ों हज़ारों तालाब अचानक ही शून्य से प्रकट नहीं हुए हैं।
इमे एव तडागाः अत्र संसारसागराः इति।
ये ही तालाब यहाँ संसार रूपी सागर हैं।
एतेषाम् आयोजनस्य नेपथ्ये निर्मापयितृृणाम् एककम्, निर्मातृणां च दशकम् आसीत्।
इनकी आयोजना के पीछे बनवाने वालों की इकाई और बनाने वालों की दहाई थी।
एतत् एककं
दशकं च आहत्य शतकं सहस्रं वा रचयतः स्म।
यह इकाई और दहाई मिलकर सैकड़ों अथवा हज़ारों को बनाते थे।
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8.7.1 गीत
पाठस्य विवरणम्
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8.8.2 अभ्यासः
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