शिक्षक दिवस भाषण (Teacher Day Speech)
परम आदरणीय प्राचार्य महोदय,
विद्वत शिक्षक साथी और प्रिय विद्यार्थियों
महान शिक्षाविद्, दार्शनिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म दिवस के उपलक्ष में मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं सभी को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
शिक्षक ज्ञान, चरित्र और संस्कार से अलंकृत कर एक विद्यार्थी के समग्र विकास को सुनिश्चित करते हैं।
जीवन में अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर करने वाले गुरु के विषय में कहां गया है-
अज्ञानतिमिरान्धस्य
ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
समस्त् भारत देश में पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। आज का दिन हम सभी के लिए बहुत विशेष है क्योंकि शिक्षक का हम सभी के जीवन में अत्यंय विशिष्ट स्थान है।
कहते हैं व्यक्ति के जीवन की पहली शिक्षिका उसकी अपनी ही माता होती है, अतः हम सभी सर्व प्रथम अपनी माताश्री को भी शिक्षक दिवस की बधाई देते हैं।
भारतीय संस्कृति के अनुसार आदि काल के प्रथम गुरु भगवान शिव को माना गया है, अतः उन्हें हम प्रणाम करते हैं,
मध्य काल के गुरु शंकराचार्य जी को हम प्रणाम करता हूँ
और हमारे जीवन में जितने भी गुरुओं ने हमें शिक्षा प्रदान की है, सही मार्ग दिखाया है उन्हें हम कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।
इस संदर्भ में एक श्लोक मुझे स्मरण आ रहा है-
सदाशिव समारम्भां शंड्कमराचार्यमध्यमाम् |
अस्मदाचार्यपर्यन्तां वन्दे गुरुपरम्पराम् ||
अर्थ-
भगवान शिव जो हमारे आदि गुरु हैं उनसे प्रारम्भ करके, शंकराचार्य जो मध्य काल के उत्तम गुरु तथा अपने गुरुजी के साथ मैं इस गुरु-शिष्य परंपरा को प्रणाम करता हूँ।
यह जड़ और चेतन समस्त संसार ईश्वर के द्वारा ही व्याप्त है, और गुरु ही है जो उन्हें प्राप्त करने के लिए सन्मार्ग दिखाते हैं अतः गुरु को कोटि कोटि प्रणाम।
अखण्डमण्डलाकारं
व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
गुरु का महत्त्व हमारे जीवन में विशेष रहता है वह न केवल हमें ज्ञान प्रदान करते हैं, सही मार्ग भी दिखते हैं, अतः भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर के समान ही माना गया है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः
गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म
तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थात :
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि महादेव शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।
गुरु केवल वह नहीं जो विद्यालय में हमें पढ़ते हैं, 6 प्रकार के गुरु बताए गए हैं, इस विषय को एक श्लोक के माध्यम से स्पष्ट करना चाहूंगा -
*प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा*
*शिक्षकोबोधकश्चैव षडेतेगुरवःस्मृताः*
अर्थात :
प्रेरणा देनेवाले, सूचना देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है।
शिक्षक के गुणों के विषय में कहा गया है-
विद्वत्वं दक्षता शीलं संकान्तिरनुशीलनम् ।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्न्ता।।
1) विद्वत्व (Scholary),
2)दक्षता, (Efficiency),
3) शील, (Modesty),
4) संक्रान्ति (Solstice),
5) अनुशीलन, (Persuasion),
6) सचेतत्व (Mindfulness) और
7) प्रसन्न्ता (Delight) ये सात शिक्षक के गुण है।
अपनी वक्तव्य को मै इस श्लोक के साथ पूर्ण करना चाहूंगा।
देवो रूष्टे गुरुस्त्राता,*
*गुरो: रुष्टे न कश्चन।*
*गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता,*
*गुरुस्त्राता न संशयः।।*
अर्थात- देवता के रुष्ट हो जाने पर गुरु रक्षक होते हैं किन्तु गुरु के रुष्ट हो जाने पर कोई भी रक्षक नही होता अतः गुरु को कभी रुष्ट न करें। आपके पूरे जीवन मे गुरु ही रक्षक हैं, गुरु ही रक्षक हैं, गुरु ही रक्षक हैं इसमे कोई संशय नही।
अंत में मैं ................ जी को और प्राचार्य महोदय को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्हने मुझे इस विशेष अवर पर बोलने का अवसर प्रदान किया।
शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति और शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को मेरा पुनः नमन है जिनका जीवन शिक्षकों के महात्म्य को सुनिश्चित कराने में समर्पित रहा।
मुझे विश्वास है कि इस दिन से प्रेरणा लेकर हम सभी शिक्षक गण राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में अपना अमूल्य योगदान देते रहेंगे।
धन्यवाद।
....... ॐ .......
- आचार्य विपिन शर्मा
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*शिक्षकदिवसस्य शुभषया:*
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