गुरु पूर्णिमा (GURU POORNIMA)
गुरु/आचार्य/शिक्षक/अध्यापक संबंधित श्लोक/दोहे-
ऊँ श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः ||
अखण्डमण्डलाकारं
व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
English pronunciation-
akhaNDamaNDalaakaara.n vyaapta.n yena charaacharam
tatpada.n darshita.n yena tasmai shriigurave namaH
Meaning-
Salutation to the noble Guru,, who has made it possible to realise the state which pervades the entire cosmos, everything animate and inanimate.
....... ॐ .......
अज्ञानतिमिरान्धस्य
ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
adnyaanatimiraandhasya dnyaanaaJNjanashalaakayaa
chakshurunmiilita.n yena tasmai shriigurave namaH
अर्थ -
अज्ञान रूपी अंधकार से अंधी हुई आंखों को अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से खोलने वाले गुरु को हम प्रणाम करते हैं।
Salutation to the noble Guru, who has opened the eyes blinded by darkness of ignorance with the collyrium-stick of knowledge.
....... ॐ .......
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः
गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म
तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भावार्थ :
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।
gururbrahmaa gururviShNuH gururdevo maheshvaraH
gurureva para.nbrahma tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, who is Brahma, Vishnu and Maheswara, the direct Parabrahma, the Supreme Reality.
....... ॐ .......
सदाशिव समारम्भां शंड्कमराचार्यमध्यमाम् | अस्मदाचार्यपर्यन्तां वन्दे गुरुपरम्पराम् ||
अर्थ-
भगवान शिव जो हमारे आदि गुरु हैं उनसे प्रारम्भ करके, शंकराचार्य जो मध्य काल के उत्तम गुरु तथा अपने गुरुजी के साथ मैं इस गुरु-शिष्य परंपरा को प्रणाम करता हूँ।
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गुरुं विद्येश्वरं वन्दे सर्वशास्त्रविशारदाम् |
यत्कृपालवमादाय मूको याति प्रवीणताम् ||
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स्थावरं जंगमं व्याप्तं
यत्किंचित्सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
sthaavara.n ja.ngama.n vyaapta.n yatki.nchitsacharaacharam
tatpada.n darshita.n yena tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, who has made it possible to realise Him, by whom all that is - sentient and insentient, movable and immovable is pervaded.
....... ॐ .......
चिन्मयं व्यापियत्सर्वं
त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
chinmaya.n vyaapiyatsarva.n trailokya.n sacharaacharam
tatpada.n darshita.n yena tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, who has made it possible to realise Him pervades everything, sentient and insentient, in all three worlds.
....... ॐ .......
त्सर्वश्रुतिशिरोरत्न
विराजित पदाम्बुजः ।
वेदान्ताम्बुजसूर्योयः
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
tsarvashrutishiroratnaviraajita padaambujaH
vedaantaambujasuuryoyaH tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, whose lotus feet are radient with (the luster of) the crest jewel of all Srutis and who is the sun that causes the Vendanta Lotus (knowledge) to bloosom.
....... ॐ .......
चैतन्यः शाश्वतःशान्तो
व्योमातीतो निरंजनः ।
बिन्दुनाद कलातीतः
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
chaitanyaH shaashvataHshaanto vyomaatiito nira.njanaJ
bindunaada kalaatiitaH tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru,who is the ever effulgent, eternal, peaceful, beyond space, immaculate, and beyond the manifest and unmanifest.
....... ॐ .......
ज्ञानशक्तिसमारूढः
तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
dnyaanashaktisamsasuuDhaH tattvamaalavibhuuShitaH
bhuktimuktipradaataa cha tasmai shriigurave namaH
Salutation to that noble Guru, who is established in the power of knowledge, adorned with the garland of various principles and is the bestower of prospority and liberation.
....... ॐ .......
अनेकजन्मसंप्राप्त
कर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
anekajanmasa.nprapta karmabandhavidaahine
aatmadnyaanapradaanena tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, who by bestowing the knowledge of the Self burns up the bondage created by accumulated actions of innumerable births.
....... ॐ .......
शोषणं भवसिन्धोश्च
ज्ञापणं सारसंपदः ।
गुरोः पादोदकं सम्यक्
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
shoShaNa.n bhavasindhoshcha dnyaapaNa.n saarasa.npadaH
guroH paadodaka.n samyak tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, by washing whose feet, the ocean of transmigration, endless sorrows is completely dried up and the Supreme wealth is revealed.
....... ॐ .......
न गुरोरधिकं तत्त्वं
न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
na guroradhika.n tattva.n na guroradhika.n tapaH
tattvadnyaanaatpara.n naasti tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, beyond whom there is no higher truth, there is no higher penance and there is nothing higher attainable than the true knowledge.
....... ॐ .......
मन्नाथः श्रीजगन्नाथः
मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
mannaathaH shriijagannaathaH madguruH shriijagadguruH
madaatmaa sarvabhuutaatmaa tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, who is my Lord and the Lord of the Universe, my Teacher and the Teacher of the Universe, who is the Self in me and the Self in all beings.
....... ॐ .......
गुरुरादिरनादिश्च
गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति
तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
gururaadiranaadishcha guruH paramadaivatam
guroH paratara.n naasti tasmai shriigurave namaH
Salutation to the noble Guru, who is both the beginning and beginningless, who is the Supreme Deity than whom there is none superior.
....... ॐ .......
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
tvameva maataa cha pitaa tvameva, tvameva bandhushsha sakhaa tvameva
tvameva vidyaa draviNa.n tvameva, tvameva sarva.n mama deva deva
(Oh Guru!) You are my mother and father; you are my brother and companion; you alone are knowledge and wealth. O Lord, you are everything to me.
....... ॐ .......
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः । तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
भावार्थ :
धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं ।
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निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।
गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥
भावार्थ :
जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं ।
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नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ । गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत् ॥
भावार्थ :
गुरु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पे बैठना चाहिए । गुरु आते हुए दिखे, तब अपनी मनमानी से नहीं बैठना चाहिए ।
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किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥
भावार्थ :
बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।
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प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा । शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
भावार्थ :
प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।
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गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते । अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥
भावार्थ :
'गु'कार याने अंधकार, और 'रु'कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।
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शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च ।
नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम्
भावार्थ :
शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए ।
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कबीर दोहे -
(1)
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥
(2)
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥
(3)
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
(4)
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥
(5)
शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥
(6)
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।
(7)
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
(8)
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥
(9)
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
(10)
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥
(11)
करता करे ना कर सके,
गुरु करे सब होय।
सात द्वीप नौ खंड में,
गुरु से बड़ा ना कोय ।।
(12) सात संमुद्र की मसीह करु,
लेखनी सब वनराय।
सब धरती कागज करु पर,
गुरु गुण लिखा ना जाय ।।
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(13)
जाने क्या बात है गुरु चरणकमलों की. ...जितना झुकता हूँ उतना ही अधिक उठता है. ...
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ
*🎊Happy Guru Purnima🎊*
- आचार्य विपिन शर्मा
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*प्रेरकःसूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा*
*शिक्षकोबोधकश्चैव षडेतेगुरवःस्मृताः*
भावार्थ :
प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है
*शिक्षकदिवसस्य शुभषया:*
*देवो रूष्टे गुरुस्त्राता,*
*गुरो: रुष्टे न कश्चन।*
*गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता,*
*गुरुस्त्राता न संशयः।।*
अर्थात- देवता के रुष्ट हो जाने पर गुरु रक्षक होते हैं किन्तु गुरु के रुष्ट हो जाने पर कोई भी रक्षक नही होता अतः गुरु को कभी रुष्ट न करें। आपके पूरे जीवन मे गुरु ही रक्षक हैं, गुरु ही रक्षक हैं, गुरु ही रक्षक हैं इसमे कोई संशय नही।
*🙏🌻💐मङ्गलम् 💐🌻🙏*
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