चार तरह के भक्त ( 4 Types of Bhakt)
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:-
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। (७।१६)
अर्थात :-
हे अर्जुन! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी- ये चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं। इनमें से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है। उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है।
1.आर्त :- आर्त भक्त वह है जो शारीरिक कष्ट आ जाने पर या धन-वैभव नष्ट होने पर, अपना दु:ख दूर करने के लिए भगवान को पुकारता है।
2.जिज्ञासु :- जिज्ञासु भक्त अपने शरीर के पोषण के लिए नहीं वरन् संसार को अनित्य जानकर भगवान का तत्व जानने और उन्हें पाने के लिए भजन करता है।
3.अर्थार्थी :- अर्थार्थी भक्त वह है जो भोग, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त करने के लिए भगवान का भजन करता है। उसके लिए भोगपदार्थ व धन मुख्य होता है और भगवान का भजन गौण।
4. ज्ञानी :- आर्त, अर्थार्थी और जिज्ञासु तो सकाम भक्त हैं परंतु ज्ञानी भक्त सदैव निष्काम होता है। ज्ञानी भक्त भगवान को छोड़कर और कुछ नहीं चाहता है। इसलिए भगवान ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है। ज्ञानी भक्त के योगक्षेम का वहन भगवान स्वयं करते हैं।
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