7.10.1 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम् दशम पाठः (विश्वबन्धुत्वम्) Class- 7th, Subject- Sanskrit, Lesson- 10 ( VishvBandhutvam)
7.10.1 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम्
दशम पाठः (विश्वबन्धुत्वम्)
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नमो नमः।
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-2 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम्।
अद्य वयं दशम-पाठं पठामः ।
पाठस्य नाम अस्ति -
विश्वबन्धुत्वम्
अहं डॉ. विपिन:।
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दशम पाठः (विश्वबन्धुत्वम्)
(विश्व के प्रति भाईचारा)
(1) उत्सवे, व्यसने, दुर्भिक्षे, राष्ट्रविप्लवे, दैनन्दिनव्यवहारे च यः सहायतां करोति सःबन्धुः भवति। यदि विश्वे सर्वत्र एतादृशः भावः भवेत् तदा विश्वबन्धुत्वं सम्भवति।
सरलार्थ-
उत्सव में व्यक्तिगत संकट पर अकाल पड़ने पर राष्ट्र पर आपदा आने पर और दैनिक व्यवहार में जो सहायता करता है वह भाई होता है यदि विश्व में सभी ओर ऐसा भाव हो तो विश्व के प्रति बंधुत्व संभव होता है।
(2) परन्तु अधुना निखिले संसारे कलहस्य अशान्तेः च वातावरणम् अस्ति। मानवाः परस्परं न विश्वसन्ति। ते परस्य कष्टं स्वकीयं कष्टं न गणयन्ति। अपि च समर्थाः देशाः असमर्थान् देशान् प्रति उपेक्षाभावं प्रदर्शयन्ति, तेषाम् उपरि स्वकीयं प्रभुत्वं स्थापयन्ति।
सरलार्थ-
परंतु अब सारे संसार में झगड़े और अशांति का वातावरण है। मानव आपस में विश्वास नहीं करते हैं। दूसरे के कष्ट को अपना कष्ट नहीं मानते हैं और भी समर्थ देश असमर्थ देशों के प्रति उपेक्षा का भाव प्रदर्शित करते हैंए उनके ऊपर अपना अधिकार स्थापित करते हैं ।
(3) संसारे सर्वत्र विद्वेषस्य, शत्रुतायाः, हिसायाः च भावना दृश्यते। देशानां विकासः अपि अवरुद्धः भवति। इयम् महती आवश्यकता वर्तते यत् एकः देशः अपरेण देशेन सह निर्मलेन हृदयेन बन्धुतायाः व्यवहारं कुर्यात्।
सरलार्थ-
संसार में सभी ओर विद्वेषण् शत्रुता और हिंसा की भावना देखी जाती है। देशों का विकास भी अवरुद्ध होता है। यह बहुत बड़ी आवश्यकता है कि एक देश दूसरे देश के साथ निर्मल हृदय से भाईचारे का व्यवहार करें।
(4) विश्वस्य जनेषु इयं भावना आवश्यकी। ततः विकसिताविकसितयोः देशयोः मध्ये स्वस्था स्पर्धा भविष्यति। सर्वे देशाः ज्ञानविज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृद्धिं प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति।
सरलार्थ-
विश्व के लोगों में यह भावना आवश्यक है।उसके बाद विकसित और अविकसित देशों के बीच में स्वस्थ मुकाबला हो जाएगा। सभी देश ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में मित्रता की भावना और सहयोग से समृद्धि को प्राप्त करने के लिए समर्थ हो सकेंगे।
(5) सूर्यस्य चन्द्रस्य च प्रकाशः सर्वत्र समानरूपेण प्रसरति। प्रकृतिः अपि सर्वेषु समत्वेन व्यवहरति। तस्मात् अस्माभिः सर्वैः परस्परं वैरभावम् अपहाय विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्। अतः विश्वस्य कल्याणाय एतादृशी भावना भवेत्-
सरलार्थ-
सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश सभी ओर समान रूप से फैलता है। प्रकृति भी सभी में समानता का व्यवहार करती है। इस कारण हमें भी सभी के साथ आपस में वैरभाव को छोड़कर विश्व भाईचारा स्थापित करना चाहिए। इसलिए विश्व के कल्याण के लिए ऐसी भावना होनी चाहिए।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
सरलार्थ-
यह मेरा है। यह तेरा है। ऐसा क्षुद्र हृदय वाले मानते हैंए लेकिन उदार चरित्र वाले लोगों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही परिवार के समान है।
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