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8.13.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:- संस्कृतम्, त्रयोदशः पाठः- क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Class- 8th (VIII), Subject- Sanskrit, Lesson- 13 (Shitau Rajte Bharat Swarn BhoomiH)- Arth

 8.13.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:- संस्कृतम्, 

त्रयोदशः पाठः- क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

Class- 8th (VIII),  Subject- Sanskrit, 

Lesson- 13  (Shitau Rajte Bharat Swarn BhoomiH)- Arth
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नमो नमः। 
अष्टमकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-3 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् । 
अधुना वयं त्रयोदशः-पाठं पठामः।  
 पाठस्य नाम अस्ति- 
                     क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः 

अहं डॉ. विपिन:। 
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 त्रयोदशः पाठः- क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

हिंदी-सरलार्थम् 

हिंदी सरलार्थम्
कक्षा- अष्टमी
त्रयोदशः पाठः- क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

(1) सुपूर्णं सदैवास्ति खाद्यान्नभाण्डम्

नदीनां जलं यत्र पीयूषतुल्यम्।

इयं स्वर्णवद् भाति शस्यैर्धरेयं

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥

सरलार्थ:- जहाँ खाद्यान्नों का भंडार सदा ही भरा रहता है, जहाँ नदियों का जल अमृत के तुल्य है। यह धरती फसलों से सोने की तरह शोभा पाती है। यह भारत की स्वर्णभूमि धरती पर सुशोभित होती है।

 

शब्दार्थ:- सुपूर्णम्-भरा हुआ।

सदैव-सदा ही।

अस्ति-है।

खाद्यान्नभाण्डम्-खाने योग्य अन्न का भंडार।

पीयूषतुल्यम्-अमृत के समान।

स्वर्णवद्-सोने की तरह।

भाति-शोभा देता है।

शस्यैः-फसलों से।

धरा-धरती।

इयम्-यह।

क्षितौ-धरती पर।

राजते-शोभा देती है।

भारतस्वर्णभूमिः- भारत की सोने जैसी धरती।



(2) त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः

अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्।

सदा राष्ट्ररक्षारतानां धरेयम् ।

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥2॥

सरलार्थ:- यह त्रिशूल, अग्नि, नाग, पृथ्वी और आकाश जैसी भयानक प्रक्षेपास्त्रों से युक्त, महान परमाणु शक्ति से भरी हुई है। यह धरती सदैव राष्ट्र की रक्षा में लगे रहने वालों (वीरों) की है। अतः यह भारत की स्वर्णभूमि धरती पर सुशोभित होती है।

 

शब्दार्थ:- इयम्-यह।

त्रिशूलाग्निनागैः–त्रिशूल, अग्नि, नाग (से)।

पृथिव्यस्त्रघोरैः -पृथ्वी, आकाश जैसे भयानक प्रक्षेपास्त्रों से।

अणूनाम्-अणुओं की।

महाशक्तिभिः-महाशक्तियों के द्वारा।

पूरिता–भरी हुई।

राष्ट्ररक्षारतानाम्-देश की रक्षा में लगे हुओं की।

धरा-धरती।



(3) इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या

जगद्वन्दनीया च भूः देवगेया।

सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयं

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥3॥

सरलार्थ:- यह वीरों के द्वारा भोगने योग्य तथा श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा सेवा के योग्य, संसार के द्वारा वन्दनीय और देवों द्वारा गाने योग्य भूमि है। यह धरती सदा पर्वो और उत्सवों की धरा रही है। अत: यह भारत की स्वर्णभूमि धरती पर सुशोभित होती है।

 

शब्दार्थ:- इयम्-यह।

वीरभोग्या-वीरों द्वारा भोगने योग्य।

कर्मसेव्या-श्रेष्ठ कर्मों से सेवा के योग्य।

जगद्वन्दनीया-संसार द्वारा वन्दना के योग्य।

भूः-धरती।

देवगेया-देवों द्वारा गाने योग्य।

पर्वणाम्-पर्वो की (त्योहारों की)।

उत्सवानाम्-उत्सवों की।

धरा-धरती।



(4) इयं ज्ञानिनां चैव वैज्ञानिकानां

विपश्चिज्जनानामियं संस्कृतनाम्।

बहूनां मतानां जनानां धरेयं

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥

सरलार्थ:- यह ज्ञानियों की, वैज्ञानिकों की, विद्वान लोगों की और सुसंस्कृत जनों की भूमि है। यह धरती बहुत से मतों (विचारों-सम्प्रदायों) के लोगों की है। अतः यह भारत की स्वर्णभूमि धरती पर सुशोभित होती है।

 

शब्दार्थ:- इयम्-यह।

ज्ञानिनाम्-ज्ञानियों की।

विपश्चित्-यन्त्रविद्या को जानने वाले।

जनानाम्-लोगों की।

संस्कृतानाम्-सुसंस्कारित लोगों की।

बहूनाम्-बहुत से।

मतानाम्-मतों (विचारों) के मानने वालों की।



 

 

(5) इयं शिल्पिनां यन्त्रविद्याधराणां

भिषक्शास्त्रिणां भूः प्रबन्धे युतानाम्।

नटानां नटीनां कवीनां धरेयं

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥

सरलार्थ:- यह भारत की भूमि कारीगरों, यन्त्रविद्या को जानने वालों (इंजीनियरों), वैद्यों (डॉक्टरों), शास्त्रों के ज्ञाताओं, प्रबन्धन (मैनेजमेंट) कार्यों में लगे हुए लोगों, अभिनेताओं, अभिनेत्रियों तथा कवियों की है। अतः यह भारत की स्वर्णभूमि धरती पर सुशोभित होती है।

 

शब्दार्थ:- शिल्पिनाम्-कारीगरों की।

यन्त्रविद्याधराणाम्-इंजीनियरों की।

भिषक्-डॉक्टरों की।

शास्त्रिणाम्-शास्त्रों के ज्ञाताओं की।

भूः- धरती।

प्रबन्धे युगानाम्-प्रबन्ध कार्य में लगे हुओं की।

नटानाम्-अभिनेताओं की।

नटीनाम्-अभिनेत्रियों की।

कवीनाम्-कवियों की।

धरा-धरती।

इयम्-यह।



(6) वने दिग्गजानां तथा केसरीणां

तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्।

शिखीनां शुकानां पिकानां धरेयं।

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥

सरलार्थ:- यह जंगल में दिग्गजों (हाथियों) की तथा सिंहों की, नदियों की, पहाड़ों की धरती है। यह धरती मोरों की, तोतों की और कोयलों की है। अत: यह भारत की स्वर्णभूमि धरती पर सुशोभित होती है।

 

शब्दार्थ:- वने- वन में।

दिग्गजानाम्- हाथियों की।

केसरीणाम्- सिंहों की।

तटीनाम्- नदियों की।

भूधराणाम्- पहाड़ों की।

शिखीनाम्- मोरों की।

पिकानाम्- कोयलों की।


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