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6.5.1 कक्षा/ Class- VI/6 संस्कृतम्/ Sanskrit पञ्चम: पाठ:/ Lesson- 5 शूराः वयं धीराः वयम्/ ShuraH Vayam DheeraH Vayam

 6.5.1 कक्षा/ Class- VI/6

   संस्कृतम्/ Sanskrit   

  पञ्चम: पाठ:/  Lesson- 5

 शूराः वयं धीराः वयम्/ ShuraH Vayam DheeraH Vayam



     गीतकार ने अति सुन्दर एवं सरल विधि से कविता के माध्यम से भारतीयों के मूलभूत स्वभाव, संस्कार एवं दैवीय गुणों का वर्णन कर भारतीय बालकों को प्रेरित किया।

      हम भारतीय शूर, वीर, धीर, गुणवान्, बलशाली, ऊर्जायुक्त, निर्भय, तेजयुक्त यानि सर्व सद्गुणों से युक्त हो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे परमेश्वर ! सदा ही हमारा शुभ मंगल हो एवं युद्धक्षेत्र में विजयी हों।




शब्दार्थ

शूरा: – वीर, पराक्रमी ।

धीराः – धैर्यशाली ।

शोभनम् – बहुत अच्छा।

श्रुतवान् – सुना ।

अस्तु – ठीक है।

अद्य- आज ।

अहमपि – (अहम् + अपि) मैं भी ।

एतत् – यह ।

अत्र – यहाँ ।

वयम् – हम सब ।

केषाम् किसके ।

कृते – लिए ।

प्रयुक्त प्रयोग किया गया।

सरलार्थ:- श्रीमान् ! मैंने आज ‘वीर हम धीर हम’ गीत सुना।

अच्छा! बहुत अच्छा।

श्रीमान् ! मैंने भी यह गीत सुना । सुन्दर गीत है।

छात्रों ! ‘वीर हम धीर हम’ यहाँ ‘हम’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया।


भारतीयानां कृते – भारतीयों के लिए।

अस्ति – है।

चिन्तयामि – सोचती हूँ।

सस्वरं – स्वर सहित ।

मिलित्वा – मिलकर ।

गायाम: – गाते हैं।

च – और।

एव- ही। 

शूरा वयं धीरा वयं वीरा वयं सुतराम् ।

गुणशालिनो बलशालिनो जयगामिनो नितराम् ॥१॥

शूरा वयम् ...॥

अन्वयः – वयम् शूराः वयं धीराः सुतराम वयं नितराम् गुणशालिनो बलशालिनों जयगामिनो

शब्दार्था: –

गुणशालिनो गुणशाली ।

जयगामिनो – विजयेता ।

नितराम् – पूर्णरूप से / सम्पूर्ण |

सुतराम्-अतः। 

सरलार्थ:- 

हम पराक्रमी, हम धीर / (धैर्यशाली) अतः हम पूर्ण रूप से गुणशाली, बलशाली (और) विजयेता (हैं) ।


दृढमानसा गतलालसाः प्रियसाहसाः सततम् ।

जनसेवका अतिभावुकाः शुभचिन्तका नियतम् ॥२॥

शूरा वयम्... ॥

अन्वयः – सततम् दृढ़मानसाः, गतलालसाः प्रियसाहसा:, नियतम् अतिभावुका, शुभचिन्तकाः जनसेवकाः । 

शब्दार्था:-

दृढ़मानसाः- दृढ़ मन वाले |

गतलालसा :- लोभरहित ।

प्रियसाहसा:- साहसी ।

सततम् – निरन्तर ।

नियतम् – निश्चित | 

सरलार्थ:- 

(हम शूर वीर) दृढ़ मन वाले लोभरहित, साहसी निश्चित ही अत्यधिक भावुक, शुभचिन्तक जनसेवक हैं।


धनकामना सुखवासना न च वञ्चना हृदये ।

ऊर्जस्वला वर्चस्वला अतिनिश्चला विजये ॥ ३ ॥

शूरा वयम्... ॥

अन्वयः-

हृदये धनकामना सुखवासना वञ्चना च न ।

ऊर्जस्वला, वर्चस्वला विजये अतिनिश्चला ।। 

शब्दार्था:-

धनकामना- धन की इच्छा।

सुखवासना – सुख की वासना ।

वञ्चना – कपट ।

ऊर्जस्वला – स्फूर्ति से युक्त (फुर्तीले) ।

वर्चस्वला – तेजस्वी ।

अतिदृढ़निश्चला – दृढ़ निश्चय वाले।

विजये – विजय में।


सरलार्थ:- 

धन की इच्छा और सुख की चाह नहीं है। हृदय में कपट नहीं है। स्फूर्ति से युक्त और तेजस्वी विजय में दृढ़ निश्चय वाले हैं।


गतभीतो धृतनीतयो दृढशक्तयो निखिला ।

यामो वयं समराङ्गणं विजयार्थिनो बालाः ॥ ४ ॥

शूरा वयम्... ॥ 

अन्वयः – वयम् बालाः गतभीतयः धृतनीतयां निखिला

दृढ़ शक्तयो विजयार्थिनो समराङ्गणं यामः । 

शब्दार्था:-

गतभीतयः – भयरहित ।

धृतनीतयो – नीतिमान् ।

निखिला – सम्पूर्ण |

दृढ़शक्त्यों – शक्तिमान्।

विजयार्थिनो – विजय चाहने वाले ।

समराङ्गणं – युद्धक्षेत्र में।

याम: – जाते हैं।


सरलार्थ:- 

हम बालक भयरहित नीतिमान्, सम्पूर्ण दृढ़ शक्तियों वाले, विजय को चाहने वाले युद्ध के मैदान में जाते हैं।


जगदीश हे! परमेश हे! सकलेश हे भगवन् ।

जयमङ्गलं परमोज्ज्वलं नो देहि परमात्मन् ॥५॥

शूरा वयम्... ॥

अन्वयः – हे जगदीश ! हे परमेश! हे सकलेश भगवन् ! परमात्मन् नो परमोज्ज्वलं जयमङ्गलं देहि ।

शब्दार्था:- 

सकलेश – सभी के ईश ।

नो – हमें

देहि – दो ।

परमोज्ज्वलं – परम उज्ज्वल ।

जयमङ्गलं – विजय और शुभ |


सरलार्थ: –  

हे जगदीश ! हे परमेश्वर ! हे सबके ईश भगवन्! हे परमात्मा ! हमें परम उज्ज्वल शुभ और विजय दो। 

------------------------ 

गीतस्य भावार्थ:  

वयं सर्वे भारतीयाः शूराः वीराः, धैर्यशालिनः च स्मः ।

सर्वे गुणशालिनः बलशालिनः विजेतारः च स्मः । वयं

दृढसंकल्पयुक्ता: लोभरहिताः साहसयुक्ताः हैं। हम

वयं सर्वे भारतवासिनः उत्तमभावेन जनानां सेवां सर्वेषां

शुभचिन्तनं च कुर्मः । अस्माकं हृदये धनस्य अधिककामनाः,

सुखस्य विषये वासना, कपटभावना च न सन्ति । तेजोयुक्ताः

वयं भारतीयाः ऊर्जापूर्वकं दृढतया च कार्यं कुर्मः । वयं

भारतीयाः निर्भयाः दृढशक्त्या च युक्ताः युद्धक्षेत्रे सर्वदा

नीतिपूर्वकं विजयम् इच्छामः । अतः इयं प्रार्थना अस्ति

यत् हे संसारस्य स्वामिन्! हे परमेश! हे सकलेश! हे

भगवन्! भवान् अस्माकं कृते सर्वेषु कार्येषु उज्ज्वलं शुभं

च विजयं प्रयच्छतु इति। 

अर्थ – 

     हम सब भारतीय पराक्रमी वीर और धैर्यशाली हैं। सभी गुणशाली, बलशाली और विजयेता हैं। हम दृढ़संकल्पों से युक्त, लोभरहित और साहसयुक्त सब भारतीय उत्तमभाव से लोगों की सेवा और सबका शुभ चिन्तन करते हैं। हमारे हृदय में धन की अधिक कामनाएँ. सुख के विषय में वासना और कपट भावना नहीं हैं। तेज से युक्त हम भारतीय ऊर्जापूर्वक और दृढ़ता से कार्य करते हैं। हम भारतीय निर्भय और दृढ़शक्ति से युक्त युद्धक्षेत्रे सर्वदा नीतिपूर्वक विजय चाहते हैं। इसलिए यह प्रार्थना है कि हे संसार के स्वामी! हे परमेश! हे सकलेश! आप हमारे लिए सब कार्यों में उज्ज्वल और शुभ विजय दो।





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