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6.11.2 कक्षा/ Class- VI/6 संस्कृतम्/ Sanskrit पाठ / Lesson- 11 पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि / Prithivyaam Trini Ratnaani वयम् अभ्यासं कुर्म:

 6.11.2 कक्षा/ Class- VI/6 

   संस्कृतम्/ Sanskrit   

    पाठ  /  Lesson- 11

  पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि  / Prithivyaam Trini Ratnaani


वयम् अभ्यासं कुर्म:   


1. एतानि सर्वाणि सुभाषितानि उच्चैः पठन्तु पठन्ति स्मरन्तु लिखन्तु च।


2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन

लिखन्तु।

( निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक पद में लिखें)

(क) पृथिव्यां कति रलानि सन्ति?

(ख) अयं निजः: परो वा इति गणना केषां भवति?

(ग) कार्याणि केन सिध्यन्ति?

(घ) विद्या कि ददाति?

ङ) जननी जन्मभूमिश्च कस्मात् गरीयसी?

(च) लडका कीदूशी आसीत्?

उत्तरम्-

(क) त्रीणि।

(ख) लघुचेतसाम्।

(ग) उद्यमेन।

(घ) विनयम।

(ङ) स्वर्गात्।

(च) स्वर्णमयी।


3. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकवाक्येन उत्तराणि

लिखन्तु'

(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखो)

(क) पृथिव्यां त्रीणि रलानि कानि सन्ति?

(ख) उदारचरितानां भाव: क: भवति?

(ग) मृगा: स्वयमेव कस्य मुखे न प्रविशन्ति?

(घ) अभिवादनशीलस्य नित्यं कानि वर्धन्ते?

(ङ) मनुष्यः धनात् किम् आप्नोति? 

(च) उत्पन्नेषु कार्येषु कीदृशं धनम् उपयोगाय न

भवति?

उत्तरम्-

(क) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि-जलम् अन्नं सुभाषितं च सन्ति।

(ख) उदारचरितानां वसुधा एव कुटुम्बकम् अस्ति।

(ग) मृगा: स्वयमेव सुप्तस्य संहस्य मुखे न प्रविशन्ति।।

(घ) अभिवादनशीलस्य नित्यं चत्वारि आयु-र्विद्या-यशो-बलं वर्धन्ते।

(ऊ) मनुष्यः धनात् धर्मं प्राप्नोति। 

(च) उत्पन्नेषु कार्येषु परहस्त गत धनम्  उपयोगाय न भवति।


4. चित्रं दृष्ट्वा वाक्यानि रचयन्तु। 

 (चित्र देखकर वाक्यों की रचना करो)




उदाहरणम्- वृक्ष: फलानि यच्छति।

त्वं फलानि स्वीकरोषि।

अहं फलानि स्वीकरोमि।

उत्तरम्-

(क) वृक्षः छायां यच्छति। 

छाया शीतला भवति। 

वयं छायायाम् विश्रामम् कुर्म:।


(ख) वृक्षः कर्दम् यच्छति।

 कर्गद: उपयोगाय भवति। 

वयम् कगदेषु लिखामः।


(ग) वृक्ष: काष्ठं यच्छति। 

काष्ठम् इन्धनाय  भवति।

 भवननिर्माणे काष्ठस्य आवश्यकता भवति।


(घ) वृक्षः शुद्धं वायुं यच्छति। 

अनेन पर्यावरणस्य शुद्धिः भवति। 

शुद्धेन वायुना वयं स्वस्था: भवामः।


(ङ) वृक्षः पुष्षाणि यच्छति।

 पुष्पाणि सुगन्धं प्रसारयन्ति। 

पुष्पाणां माला भवति।


5. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा 'आम्' अथवा  'न' इति लिखन्तु!

(अधोलिखित वाक्यों को पढ़कर 'हाँ' अथवा 'नहीं में लिखो।)

चथा- कि पृथिव्यां त्रीणि रलानि सन्ति? (आम्)

(क) त्रीणि रलनानि जलम् अन्नं पाषाण: च सन्ति?

(ख) किं धर्मेण सुखं प्रप्यते?

(ग) कि विद्या विनयं ददाति?

(घ) किम् अभिवादनशीलस्य विद्या वर्धते?

(ङ) किम् उद्यमेन कार्याणि नश्यन्ति?

(च) किं जन्मभूमि: स्वर्गात् गरीयसी भवति? 

उत्तरम्

(क) न

(ख) आम्

(ग)आम्

(घ) आम्

(ङ) न

(च) आम्



6. चित्रे दशितस्य नाम लिड़गं च निर्दिशन्तु। 

(चित्र में दर्शाए गए का नाम और लिङ्ग लिखो।) 

यथा- 

पुष्पम्        नपुंसकलिडन्गम्



सिहः       पु. 

फलम्      नपुं. 

महिला     स्त्री.

छाया        स्त्री.

पुस्तकानि  नपु. 



7. वलये पदानि विलिख्य सुभाषितं पूरयन्तु। 

( घेरे में पदों को लिख कर सुभाषित पूरा करो।)


विद्या

ददाति 

वनयम् 

वनयात्

याति

पात्रताम्

पात्रत्वात् 

धनम्

आप्नोति 

धनात्  

धर्मम् 

ततः

सुखम् 


8. पट्टिकातः पदानि चित्वा निर्वेशानुसारं पदानि लिखन्तु।

पट्टी से पदों को चुनकर निर्देशानुसार पद लिखो।)


जनी धैर्यम् विद्या विनयः निजः पत्रम

बुद्ध: मूलम् पराक्रम: शक्तिःधनम् उद्यमः 


(क) प्रथमान्त-पुलिङ्गपदानि सन्ति

1. उद्यमः 


(ख) प्रथमान्त-स्त्रीलिङ्गपदानि सन्ति - 

वसुधा 


(ग) प्रथमान्त-नपुंसकलिङ्गपदा


1. साहसम्



उत्तरम्- 

(क) 1. उद्यमः

2. विनयः

3. निजः 

4. पराक्रमः



(ख) 

1. वसुधा

2. जननी 

3. विद्या

4. बुद्धिः

5. शक्तिः  

 

(ग)

 1. साहसम्

2. धैर्यं

3. पत्रम्

4. मूलम्

5. धनम्


9. पाठगतानि सुभाषितानि स्तृत्वा रिक्तस्थानानि

पूरयन्तु। 

( पाठ आए सुभाषितों को याद करके रिक्तस्थानों 

को पूरा करें)


उत्तराणि- 

(क) पृथिव्यां त्रींणि रत्नानि जलम् अन्नम् सुभाषितम्।

(ख) उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकं भवति।

(ग) उद्यमेन हि कार्याणि सिद्ध्यन्ति।

(घ) अभिवादनशीलस्य वृद्धोपसेबिन: चत्वारि आयुर्िद्या-यशोबलं वरधन्ते।

(ङ) उद्यमः साहसं धैर्य बुबदध: वर्ते, त् देवः सहायकृत् पराक्रम

(च) विद्या विनयं ददाति।

(छ) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गावदपि गरीयसी भवति।


10. चित्राणि दृष्द्वा उचितान् शलोकांशान् लिखन्तु।

 ( चित्र देखकर उचित शलोकों का अंश लिखो)




उत्तरम्- 

(क) उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि।

(ख) पृथिव्यां त्रीणि  रत्नानि जलम् अन्नम् सुभाषितम्।

(ग) जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

(घ) पात्रत्वाद् धनम् आप्नोति।

(ङ) उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।    




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