7.8.1 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम् पाठः -8, हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः Class- 7th, Subject - Sanskrit, Lesson-8, Hitam Manohari Ch Durlabham Vach NCERT - दीपकम् / Deepakam
7.8.1 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम्
पाठः -8, हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः
Class- 7th, Subject - Sanskrit,
Lesson-8, Hitam Manohari Ch Durlabham Vach
NCERT - दीपकम् / Deepakam
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सूक्ति’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- ‘सुंदर कथन’। यह दो शब्दों ‘सु’ और ‘उक्ति’ के मेल से बना है। यह पाठ हमें संस्कृत की विभिन्न सूक्तियों के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों की शिक्षा देता है। इसमें बताया गया है कि स्वस्थ शरीर धर्म-पालन का पहला साधन है, इसलिए इसकी रक्षा करना आवश्यक है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।’ इसी प्रकार की अन्य महत्वपूर्ण सूक्तियाँ यहाँ दी गयी हैं। ये सूक्तियाँ विद्यार्थियों को सदाचार, स्वस्थ जीवन, मूल्य-आधारित व्यवहार और समाज में सच्चे संबंधों की ओर प्रेरित करती हैं। संस्कृत की इन सूक्तियों में गहन ज्ञान, सरलता और जीवनोपयोगी संदेश छिपा है।
सूक्ति शब्द सु + उक्ति से बना है, जिसका अर्थ है – सुंदर वचन या कथन । सूक्तियों में जीवन के विभिन्न मूल्यों को बताया गया है। हमें इन सूक्तियों में कही गई बातों को अपने आचरण में लाने का प्रयास करना चाहिए। इससे हमारा भला होता है । आइए, ऐसे कुछ मूल्यपरक एवं हितकारी सूक्तियों को पढ़ते हैं ।
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एका छात्रा – आचार्य! अद्य मम माता माम् एकां सूक्तिं पाठितवती, ‘सत्यं वद, धर्मं चर’ इति ।
द्वितीया छात्रा – आचार्य ! ‘सूक्ति:’ इत्युक्ते कः अभिप्रायः ?
आचार्यः – सूक्तिः इत्युक्ते ‘सुन्दरं वचनम् ‘ । सूक्तिषु जीवनमूल्यानि निहितानि भवन्ति।
एकः छात्रः – महोदय! सूक्तयः अस्मान् सन्मार्गं प्रति नयन्ति इति अहं श्रुतवान् ।
आचार्यः – सत्यम्। सूक्तयः जीवने अस्माकं मार्गदर्शनं कुर्वन्ति । संस्कृतसाहित्ये सूक्तीनां भाण्डागारः अस्ति ।
द्वितीया छात्रा – आचार्य! अस्मासु कुतूहलं वर्धते । वयम् एताः सूक्तीः पठामः ।
आचार्यः – न केवलं पठामः अपितु स्मरामः, जीवने आचरामः च।
शब्दार्था: (Word Meanings):
अद्य – आज (Today),
पाठितवती – पढ़ाई (Taught),
चर – आचरण करो [(May you) follow)],
सूक्तिं – (सु + उक्ति) सुन्दर वचन (Aphorism),
इत्युक्ते – अर्थात् (It means),
सन्मार्ग – श्रेष्ठ मार्ग (Best way),
भाण्डागारः – कोष, खजाना, भण्डार (Treasure-trove),
कुतूहलम् – उत्सुकता (Curiosity),
आचराम: – आचरण करते हैं (Behave)।
सरलार्थ-
एक छात्रा – गुरुजी ! आज मेरी माता ने मुझे एक सूक्ति ‘सत्यं वद, धर्मं चर’ पढ़ाई ।
द्वितीया छात्रा – गुरुजी !, ‘सूक्ति’ यह कहने का क्या मतलब (अर्थ) है?
आचार्य – सूक्तिः यह कहने का अर्थ है ‘सुन्दर वचन’। सूक्तियों में जीवनमूल्य निहित होते हैं।
एक छात्र – श्रीमान जी, सूक्तियाँ हमें श्रेष्ठ मार्ग की तरफ़ ले जाती हैं, ऐसा मैंने सुना है।
आचार्य – सच है। सूक्तियाँ जीवन में हमारा मार्गदर्शन करती हैं। संस्कृत साहित्य में सूक्तियों का भण्डार है ।
द्वितीया छात्रा – गुरुजी ! हममें जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। हम यह सूक्तियाँ पढ़ते हैं।
आचार्य – न केवल पढ़ते हैं, बल्कि याद करते हैं और जीवन में आचरण करते हैं।
1 माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः । ॥ १ ॥
पदच्छेदः – माता भूमिः पुत्रः अहम् पृथिव्याः ।
अन्वयः – भूमि: माता (अस्ति) अहं पृथिव्याः पुत्रः (अस्मि) ।
भावार्थ: – पृथ्वी अस्मान् माता इव लालयति पालयति च । अतः भूमिः अस्माकं सर्वेषां माता अस्ति । वयं सर्वे अस्याः पृथिव्याः सन्तानाः स्मः। एषा सर्वदा पूज्या अस्ति ।
शब्दार्था: (Word Meanings) :
पृथिव्या: – पृथ्वी की (Of earth),
लालयति – प्यार करती है (Nurtures),
पालयति – पालन करती है (Takes care),
सर्वदा – हमेशा (Always ) ।
अर्थ – भूमि माता है और मैं इस पृथ्वी का पुत्र हूँ।
सरलार्थ-
पृथ्वी (भूमि) हमारा माता के समान प्यार और पालन करती है (लालन पालन करती है) । इसलिए भूमि हम सबकी माता है। हम सब इस पृथ्वी की सन्तान (बच्चे) हैं। यह हमेशा पूजा के योग्य है।
न रत्नमन्विष्यति, मृग्यते हि तत् ॥ २ ॥
पदच्छेदः – न रत्नम् अन्विष्यति मृग्यते हि तत् ।
अन्वयः – रत्नं न अन्विष्यति, तत् मृग्यते हि ।
भावार्थ: – हीरकादीनि रत्नानि ग्राहकस्य अन्वेषणं न कुर्वन्ति अपितु ग्राहकाः एव रत्नानाम् अन्वेषणं कुर्वन्ति । तथैव अस्मासु यदि गुणाः सन्ति तर्हि गुणज्ञाः स्वयमेव अस्मान् अन्विष्य आगच्छन्ति ।
शब्दार्था: (Word Meanings) :
रत्नम् – रत्न (Jewellery),
अन्विष्यति – खोजता है, ढूँढ़ता है (Searches),
मृग्यते – ढूँढ़ा जाता है (Searched),
ग्राहकस्य – खरीदने वाले को (Buyer),
गुणज्ञाः – गुणों के जानकार (Knowledgeable),
अन्विष्य – ढूँढकर (Sought after) ।
अर्थ – रत्न स्वयं नहीं खोजता है, उसे खोजा जाता है।
सरलार्थ-
हीरे आदि रत्नों के ग्राहकों (खरीदने वाले की) की खोज नहीं की जाती बल्कि ग्राहक ही रत्नों की खोज करते हैं। वैसे ही हममें यदि कोई गुण हैं तो गुणों के जानने वाले हमें आकर ढूँढ़ ही लेते हैं।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्॥३॥
पदच्छेदः – शरीरम् आद्यम् खलु धर्मसाधनम्।
अन्वयः – शरीरं खलु आद्यं धर्मसाधनम्।
भावार्थ: – यदि अस्माकं शरीरं स्वस्थम् अस्ति तर्हि वयं स्वकर्तव्यस्य पालनं कर्तुं शक्नुमः, अतः अस्माभिः स्वशरीरस्य रक्षा सर्वथा करणीया यतः शरीरम् एव धर्मपालनस्य प्रथमं साधनम् अस्ति ।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
आद्य – पहला (First),
खलु – निश्चित ही (Definitely),
धर्मसाधनम् – धर्म सिद्धि का साधन (Instrument for performing dharma),
स्वकर्तव्यस्य – अपने कर्तव्य का (Of ones duty),
स्वशरीरस्य – अपने शरीर की (Of own body),
करणीया – करनी चाहिए (Should perform)।
अर्थ- निश्चित ही शरीर, धर्म का सबसे पहला (प्रथम) साधन है।
सरलार्थ- यदि हमारा शरीर स्वस्थ (तंदुरस्त) है तो हम सब अपने कर्तव्य का पालन कर सकते हैं। हमें अपने शरीर की रक्षा हर प्रकार से करनी चाहिए क्योंकि शरीर ही धर्म (कर्तव्य) का पालन करने का सबसे पहला साधन है। अर्थात् यदि हमारा शरीर स्वस्थ होगा तब ही हम अपने कर्तव्य का निर्वाह उचित प्रकार से कर सकेंगे।
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