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संस्कृत-साहित्यस्य (वांग्मय:) परिचय:/ इतिहास Sanskrit Literature Introduction/ History


संस्कृत-साहित्यस्य (वाङ्मय) परिचय:/ इतिहास  

Sanskrit Literature Introduction/ History 



1. रामायणम् 

2. महाभारत/   गीता  (700 श्लोक) 

3. कालीदास:  (7  रचनाएं)

----------  

रामायणम् = राम + आयणम्  

राम की जीवन-यात्रा


मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।

यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥ 


अर्थात्: हे निषाद ! तुमको अनंत काल तक शांति न मिले, क्योंकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन (असावधान) क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी।



आदिकाव्य, आदिकवि , इतिहास ग्रंथ। 

7 कांड, २४,००० श्लोक, 

              राजा दशरथ 

1. कौशल्या  1. राम 

2. कैकेयी  2. भरत 

3. सुमित्रा - 3.  लक्ष्मण और 4. शत्रुघ्न। 


---  details 

रामायण (संस्कृत : रामायणम् = राम + आयणम् ; शाब्दिक अर्थ : 'राम की जीवन-यात्रा'), वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है जिसमें श्रीराम की गाथा है। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। संस्कृत साहित्य परम्परा में रामायण और महाभारत को इतिहास कहा गया है और दोनों सनातन संस्कृति के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रन्थ हैं। 


रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। इसमें कुल लगभग २४,००० श्लोक हैं। सातवां उत्तरकांड प्रक्षिप्त है, तत्वमार्तंड में भी उत्तरकांड को प्रक्षिप्त माना गया है । उसके बाद की संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य पर इस महाकाव्य का बहुत अधिक प्रभाव है तथा रामकथा को लेकर अनेकों 'रामायण' रचे गये।


रामायण में सात काण्ड हैं - 

1. बालकाण्ड,

2. अयोध्यकाण्ड,

3. अरण्यकाण्ड, 

4. सुन्दरकाण्ड, 

5. किष्किन्धाकाण्ड, 

6. लङ्काकाण्ड और 

7. उत्तरकाण्ड।




अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये जिनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक पत्नियाँ थीं। सन्तान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति दशरथ ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की आज्ञा से यज्ञ किया। 


भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र (खीर, पायस) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों में बाँट दिया।



कौशल्या के गर्भ से राम का, 

कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा

 सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।



----------- महाभारत  

व्यास जी बोले,गणेश जी लिखें बिना रुके यह शर्त, 

कठिन श्लोक ताकि समय मिलें,  नए अर्थ समझने में।



1,0000 shlok ,

24,000 shalok  

महाभारत का १८ पर्वो और १०० उपपर्वो में विभाग


विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर के अनुसार महाभारत युद्ध २४४९ ईसा पूर्व हुआ था।


विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध १८ फ़रवरी ३१०२ ईसा पूर्व में हुआ था।


महाभारत ग्रंथ का आरम्भ निम्न श्लोक के साथ होता है:

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।


यह महाकाव्य 'जय संहिता', 'भारत' और 'महभारत' इन तीन नामों से प्रसिद्ध हैं। वास्तव में वेद व्यास जी ने सबसे पहले १,००,००० श्लोकों के परिमाण के 'भारत' नामक ग्रंथ की रचना की थी, इसमें उन्होने भारतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों सहित कई अन्य धार्मिक उपाख्यान भी डाले। इसके बाद व्यास जी ने २४,००० श्लोकों का बिना किसी अन्य ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों का केवल भारतवंशियों को केन्द्रित करके 'भारत' काव्य बनाया। इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय होने के कारण इन्हें 'जय' भी कहा जाने लगा।


 महाभारत में एक कथा आती है कि जब देवताओं ने तराजू के एक पासे में चारों "वेदों" को रखा और दूसरे पर 'भारत ग्रंथ' को रखा, तो 'भारत ग्रंथ' सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ। अतः 'भारत' ग्रंथ की इस महत्ता (महानता) को देखकर देवताओं और ऋषियों ने इसे 'महाभारत' नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यों में भी यह काव्य 'महाभारत' के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।



विभिन्न भाग एवं रूपान्तर

महाभारत के कई भाग हैं जो आमतौर पर अपने आप में एक अलग और पूर्ण पुस्तकें मानी जाती हैं। मुख्य रूप से इन भागों को अलग से महत्व दिया जाता है:-


*भगवद गीता* श्री कृष्ण द्वारा *भीष्मपर्व* में अर्जुन को दिया गया उपदेश।


*दमयन्ती अथवा नल दमयन्ती, अरण्यकपर्व में एक प्रेम कथा।

कृष्णवार्ता : भगवान श्री कृष्ण की कहानी।

राम रामायण का अरण्यकपर्व में एक संक्षिप्त रूप। 

विष्णुसहस्रनाम विष्णु के १००० नामों की महिमा शान्तिपर्व में।




          ------- कविकुलगुरु कालिदास 

कालिदास  पहली शताब्दी ई.पू. के संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं।



अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत प्रयोग इस खंडकाव्य में दिखता है।


कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी *अलंकार युक्त (उपमा) किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। 


उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं। साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है।


जन्मस्थान- 

कालिदास के जन्मस्थान के बारे में  विवाद है। मेघदूतम् में उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए कुछ लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं।



बहुत सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के *नवरत्नों में एक थे। कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे।


विवाह - विद्योतमा  

बदला, मुर्ख पेड़ की टहनी काटना। 

एक अंगुली ब्रह्म / दो अंगुली ब्रह्म  और जगत

हाथ पांच माह भूत/ उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है। 


काली देवी उपासना 


कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि! (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)।


अनावृतं कपाटं देहि।  


 विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा --

 अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (कोई विद्वान लगता है)।


अस्तिकश्चिद् वाग्विशेषः? 


https://grahrasi.com/%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A4%83/


1. कुमारसंभवम् - 

अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।

पुर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥

– कुमारसम्भवम्



2. मेघदूतम् का पहला शब्द है- *कश्चित्कांता… और  

कश्चित् कान्ता विरहगुरुणा स्वाधिकारात् प्रमत्तः

शापेनास्तङ्गमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः।

यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु

स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।

– मेघदूतम् 


3. रघुवंशम्- 

वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।

जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥





                       रचना 

40 के लगभग रचनाएं कही जाती है, परंतु केवल 

*सात (७)* ही ऐसी हैं जो निर्विवाद रूप से कालिदासकृत मानि जाती हैं:


 तीन नाटक(रूपक): अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्;

 दो महाकाव्य: रघुवंशम् और कुमारसंभवम्; और

 दो खण्डकाव्य: मेघदूतम् और ऋतुसंहार।


1. मालविकाग्निमित्रम् (5 अंक) 

 कालिदास की पहली रचना है,

मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है। 


 अग्निमित्र एक निर्वासित नौकर की बेटी मालविका के चित्र से प्रेम करने लगता है। जब अग्निमित्र की पत्नी को इस बात का पता चलता है तो वह मालविका को जेल में डलवा देती है। मगर संयोग से मालविका राजकुमारी साबित होती है और उसके प्रेम-संबंध को स्वीकार कर लिया जाता है।

पुष्यमित्र शुंग एवं उसके पुत्र अग्निमित्र के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा शुंग एवं यवन संघर्ष का उल्लेख मिलता है। यह श्रृंगार रस प्रधान 5 अंकों का नाटक है। 


2. अभिज्ञान शाकुन्तलम् (7 अंक) 

 कालिदास की दूसरी रचना है जो उनकी जगतप्रसिद्धि का कारण बना। इस नाटक का अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन के अलावा दुनिया के अनेक भाषाओं में हुआ है। इसमें राजा दुष्यंत* की कहानी है जो वन में एक परित्यक्त ऋषि पुत्री शकुन्तला* (विश्वामित्र और मेनका की बेटी) से प्रेम करने लगता है। दोनों जंगल में गंधर्व विवाह कर लेते हैं। राजा दुष्यंत अपनी राजधानी लौट आते हैं। इसी बीच ऋषि दुर्वासा शकुंतला को शाप दे देते हैं कि जिसके वियोग में उसने ऋषि का अपमान किया वही उसे भूल जाएगा। काफी क्षमाप्रार्थना के बाद ऋषि ने शाप को थोड़ा नरम करते हुए कहा कि राजा की अंगूठी उन्हें दिखाते ही सब कुछ याद आ जाएगा। लेकिन राजधानी जाते हुए रास्ते में वह अंगूठी खो जाती है। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब शकुंतला को पता चला कि वह गर्भवती है। शकुंतला लाख गिड़गिड़ाई लेकिन राजा ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया। जब एक मछुआरे ने वह अंगूठी दिखायी तो राजा को सब कुछ याद आया और राजा ने शकुंतला को अपना लिया। शकुंतला *शृंगार रस से भरे सुंदर काव्यों का एक अनुपम नाटक है। कहा जाता है 


काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला।

तत्रापि च चतुर्थोऽकस्तत्र श्लोकचतुष्टयम्॥



(कविता के अनेक रूपों में अगर सबसे सुन्दर नाटक है तो नाटकों में सबसे अनुपम शकुन्तला है।)  

उसमें भी चतुर्थांक तथा चतुर्थांक में भी श्लोक चतुष्ट्य (चार श्लोक)। 




3. विक्रमोर्वशीयम् (5 अंक) 

एक रहस्यों भरा नाटक है। इसमें पुरूरवा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी से प्रेम करने लगते हैं। पुरूरवा के प्रेम को देखकर उर्वशी भी उनसे प्रेम करने लगती है। इंद्र की सभा में जब उर्वशी नृत्य करने जाती है तो पुरूरवा से प्रेम के कारण वह वहां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है। इससे इंद्र गुस्से में उसे शापित कर धरती पर भेज देते हैं। हालांकि, उसका प्रेमी अगर उससे होने वाले पुत्र को देख ले तो वह फिर स्वर्ग लौट सकेगी। विक्रमोर्वशीयम् काव्यगत सौंदर्य और शिल्प से भरपूर है। 



                            महाकाव्य


4. कुमारसंभवम् (17 सर्ग) ( कुमार कार्तिक्य का जन्म)

में शिव-पार्वती की प्रेमकथा, तारकासुर वध के निमित्त , और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।

17 सर्ग (८ सर्ग कालीदास, 9 अन्य)   

कक्षा 7. पाठ 6.  सङ्कल्पः सिद्धिदायकः 




5. रघुवंशम् (19 सर्ग )

 में कालिदास ने रघुकुल के राजाओं का वर्णन किया है। यथा राजा दिलीप  


                          खण्डकाव्य

6. ऋतुसंहारम् (6 सर्ग) 

ऋतुओं का संघात या समूह। 


प्रथम काव्य रचना मानी जाती है, जिसके छह सर्गों में ग्रीष्म से वसंत तक की छह ऋतुओं का सुंदर प्राकृतिक चित्रण किया गया है। 

में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है। 


कवि ने ऋतु-चक्र का वर्णन 1. ग्रीष्म से आरंभ कर 2.  प्रावृट् (वर्षा), 3. शरद्, 4.  हेमन्त व 5. शिशिर ऋतुओं का क्रमशः दिग्दर्शन कराते हुए प्रकृति के सर्वव्यापी सौंदर्य माधुर्य एवं वैभव से सम्पन्न 6. वसंत ऋतु के साथ इस कृति का समापन किया है।




7. मेघदूतम् (5 अंक) 

 एक गीतिकाव्य है जिसमें यक्ष द्वारा मेघ से सन्देश ले जाने की प्रार्थना और उसे दूत बना कर अपनी प्रिय के पास भेजने का वर्णन है।

 मेघदूत के दो भाग हैं - पूर्वमेघ एवं उत्तरमेघ।



       संस्कृत-साहित्य में यह सूक्ति प्रसिद्ध है : 

उपमा कालिदासस्य, भारवेरर्थगौरवम् ।  

दण्डिनः पदलालित्यं, माघे सन्ति त्रयो गुणाः।।

 अर्थात् उपमा कालिदास की सुख्यात है , भारवि अपने अर्थगौरव के लिए लब्धप्रतिष्ठ हैं , दण्डी के पास पदलालित्य की सम्पदा है , लेकिन माघ के पास तीनों गुण हैं। 

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