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Showing posts from 2019

7.12 कक्षा - 7वीं, पाठ- 12, विद्याधनम् / Class 7, L-12, Vidyadhanam

7.12  कक्षा - 7वीं,  पाठ- 12, विद्याधनम्  (shalok) 1)  विद्या ऐसा धन है जो न तो चोरों  द्वारा चुराया  जा सकता है, न ही राजा द्वारा हरा (छीना) जा सकता है, न भाइयों में बांँटा जाता है और न ही इसका भार होता है, खर्च करने पर भी  बढ़ता ही जाता है इसलिए विद्या रूपी धन सभी धनों में प्रधान है। 2 ) विद्या ही मनुष्य का सच्चा रूप है, छुपा  हुआ धन है, विद्या से ही सभी प्रकार के भोग, प्रसिद्धि तथा सुख प्राप्त होते हैं, विद्या ही सबसे बड़ा गुरु है, विद्या ही विदेश जाने पर सच्चा मित्र है, विद्या ही सबसे बड़ा भगवान है। विद्या ( विद्वान) को राजा द्वारा भी पूजा जाता है, न कि धन को इसलिए विद्या के बिना मनुष्य पशु के समान है। 3)  मनुष्य को न तो बाजूबंद शोभित करता है, न चंद्र के समान उज्जवल हार, न स्नान, न चंदन आदि का लेप, न ही फूल और न ही सजाए हुई चोटी। केवल सुसंस्कृत वाणी ही मनुष्य को सुशोभित करती है क्योंकि अन्य सभी आभूषण नष्ट हो जाते हैं अतः वाणी रूपी आभूषण ही सच्चा आभूषण है। 4) विद्या ही मनुष्य की अतुलनीय कीर्ति है, भाग्य के नष्ट होने पर आश्रय है, कामधेनु गाय के समान है, अकेले में  रती के सम

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सूक्तिः / सुवचनानि (Sukti/ Suvachanani)

      सूक्तिः / सुवचनानि    (Sanskrit Sukti / Suvachanaani)- 1. ज्ञानं तृतीयं पुरुषस्य नेत्रम्। अ र्थ- ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है । ----- 2. विद्यायाश्च फलं ज्ञानं विनयश्च। (शुक्रनीतिः) अ र्थ-  विद्या का फल ज्ञान और विनय (विनम्रता) है । ------ 3. हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः। अ र्थ- हितकारी बातें, मन को भी अच्छी लगे ऐसा दुर्लभ ही होता है। ----- 4. आत्मज्ञानं परं ज्ञानम् । (महाभारतम्) अ र्थ-   आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है। ------ 5. ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन। आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है। ------ 5. ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन। आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है। ------ 5. ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन। अ र्थ-   ज्ञान से मुक्ति प्राप्त होती है, आभूषणों से नहीं। ----- 6. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। (गीता - ३/३८) अ र्थ- ज्ञान के समान अन्य कोई भी वस्तु इस संसार में पवित्र नहीं है। ----- 7. अविवेकः परमापदां पदम्। अ र्थ- अज्ञान ही सभी समस्याओं की जड़ है। ----- 8. अविद्या-जीवनं शून्यम्। अ र्थ- अविद्यापूर्ण जीवन सूना है। ----- 9. क्षणशः कणशश्चैव विद्याम् अर्थं च साधयेत्। अ र्थ- एक

#2 सुविचार: (Thought)

सुविचार: (Thought) आदरात् संगृहीतेन शत्रुणा शत्रुमुद्धरेत्। पादलग्नं करस्थेन कण्टकेनैव कण्टकम्। अर्थ-  आदर देकर वश में किये हुए शत्रु से शत्रु को नष्ट करना चाहिए| जैसे यदि पाँव में काँटा चुभ जाए, तो उसे हाथ में पकड़े काँटे से ही निकाला जाता है। व्यक्ति को चाहिए कि वह शत्रु को भी आदर दें इससे शत्रुता स्वयं ही नष्ट हो जाती है।

महेश्वर सूत्राणि (Maheshwar sutrani ) उच्चारण-अभ्यासार्थंम्

उच्चारण-अभ्यासार्थं  संस्कृत-व्याकरण-ज्ञानार्थं च-            महेश्वर सूत्राणि (Maheshwar sutrani )      माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि)  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।  इनका उललेख पाणिनि कृत अष्टाध्यायी में किया है।  इसमें लगभग ४००० सूत्र  है , जो आठ अध्यायों में विभाजित हैं।  पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। इन्हें ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहा जाता है। प्रत्याहार का अर्थ होता है – संक्षिप्त कथन । स्वर वर्णों को अच् एवं व्यंजन वर्णों को हल् कहा जाता है। माहेश्वर सूत्रों को उच्चारण अभ्यास हेतु प्रयोग में लाया जा है। इन सूत्रों की कुल संख्या १४ है जो निम्नलिखित हैं: १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।               ------------------------- कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति भगवान शिव ( नटराज) के नृत्य के समय हुई थी जो इस श्लोक में स्पष्ट है।

वेदों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारी (Knowledge About VED )

वेदों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रश्नोत्तरों के माध्यम से- प्र.1- वेद किसे कहते है ? उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है। प्र.2- वेद-ज्ञान किसने दिया ? उत्तर- ईश्वर ने दिया। प्र.3- ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ? उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया। प्र.4- ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ? उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए। प्र.5- वेद कितने है ? उत्तर- चार प्रकार के । 1-ऋग्वेद 2 - यजुर्वेद 3- सामवेद 4 - अथर्ववेद प्र.6- वेदों के ब्राह्मण । वेद ब्राह्मण 1 - ऋग्वेद - ऐतरेय 2 - यजुर्वेद - शतपथ 3 - सामवेद - तांड्य 4 - अथर्ववेद - गोपथ प्र.7- वेदों के उपवेद कितने है। उत्तर - वेदों के चार उप वेद है । वेद उपवेद 1- ऋग्वेद - आयुर्वेद 2- यजुर्वेद - धनुर्वेद 3 -सामवेद - गंधर्ववेद 4- अथर्ववेद - अर्थवेद प्र 8- वेदों के अंग हैं कितने होते है । उत्तर - वेदों के छः अंग होते है । 1 - शिक्षा 2 - कल्प 3 - निरूक्त 4 - व्याकरण 5 - छंद 6 - ज्योतिष प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन -किन ऋषियों को दिया ? उत्तर- वेदों का ज्ञान चार ऋषि

उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)

             उच्चारण-स्थानानि (Uccharan Sthaan)                                                क्रम /  संस्कृत-सूत्राणि / वर्ण / उच्चारण स्थान/ श्रेणी   १) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः।  २) इ-चु-य-शानां तालु।  ३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा।  ४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: ।  ५) उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ ।  ६) ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च ।  ७) एदैतौ: कण्ठ-तालु ।  ८) ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् ।  ९) ‘व’ कारस्य दन्तोष्ठम् ।  १) अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठः। -अकार (अ, आ), कु= कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार (ह्), और विसर्जनीय (:) का उच्चारण स्थान कंठ और जीभ का निचला भाग  "कंठ्य"  है। २) इ-चु-य-शानां तालु।  -इकार (इ, ई ) , चु= चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार (य) और शकार (श) इनका “ तालु और जीभ / तालव्य ” उच्चारण स्थान है।   ३) ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा।  -ऋकार (ऋ), टु = टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ (र) और षकार (ष) इनका “ मूर्धा और जीभ / मूर्धन्य ” उच्चारण स्थान है।  ४) लृ-तु-ल-सानां दन्ता: । -लृकार (लृ), तु = तवर्ग ( त, थ, द, ध, न ), लकार (ल) और सकार (स) इनका उच्चारण स्थान “दाँत और जीभ / दंत्य ” है। ५) उ-पु-उपध्मानीयानाम्

संस्कृत इंटरनेट रेडियो" इति श्रोतुम्- (To listen sanskrit Radio)

        "संस्कृत इंटरनेट रेडियो" इति 01 श्रोतुम्-           (To listen sanskrit Radio) https://divyavani.org /      Divyavani Sanskrit Radio is an initiative of Sri Aurobindo Foundation for Indian Culture (SAFIC), Sri Aurobindo Society, Puducherry, India. This is the first ever 24 hours online Sanskrit Radio which was started on 15th of August 2013.   Through this, SAFIC globally broadcasts a variety of programmes in Sanskrit. ----------------------------------------                "संस्कृत इंटरनेट रेडियो" इति 02 श्रोतुम्-      सुनिल खांडबहाले द्वारा संस्कृत भारती, नासिक स्थाने। https://tinyurl.com/sanskritradio अथवा https://radio.garden/listen/radio-sanskrit/R0xtFLW0 -----------------------

कृत्वा नव दृढ संकल्पं (Sanskrit Song- Kritva Nav)

कृत्वा नव दृढ संकल्पं (Sanskrit Song- Kritva Nav) कृत्वा नव दृढ संकल्पं  वितरन्तो नव संदेशम् घटयामो नव संघटनं रचयामो नवमितिहासम् || धृ || नवमन्वन्तर शिल्पिन: राष्ट्रसमुन्नति कांक्षिण: | त्यागधना: कार्येकरता: कृतिनिपुण: वयं विषण्ण: || १ || कृत्वा नव दृढ संकल्पम्.... || धृ || भेदभावनां  निरासयन्त: दीनदरिद्रान् समुद्धरन्त: | दु:ख वितप्तान् समाश्वसन्त: कृतसंकल्पा सदास्मरन्त: || २  || कृत्वा नव दृढ संकल्पम्.... || धृ || प्रगतिपथान्नहि विचलेम परम्परां  संरक्षेम | समोत्साहिनो निरुद्वेगीनो नित्य निरंतर गतिशीला: || ३ || कृत्वा नव दृढ संकल्पम्.... || धृ || श्रवनाय- https://drive.google.com/file/d/0B4UJNc1YSXweRzV2eFZlb0FyWjA/view?usp=drivesdk

सागरं सागरीयं नमामो वयम् (Sanskrit Song - Sagaram Sagariyam..)

सागरं सागरीयं नमामो वयम् (Sanskrit Song - Sagaram Sagariyam..) सागरं सागरीयं नमामो वयम्, काननं काननीयं नमामो वयम्। पावनं पावनीयं नमामो वयम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ पर्वते सागरे वा समे भूतले, प्रस्तरे वा गते पावनं संगमे। भव्यभूते कृतं सस्मरामो वयम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ १॥ वीरता यत्र जन्माश्रिता संगता, संस्कृति मानवीया कृता वा गता। दैवसम्मानितं पावनं सम्पदम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ २॥ कोकिलाकाकली माधवामाधवी, पुष्पसम्मानिता यौवनावल्लरी। षट्पदानामिह मोददं गुञ्जनम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ ३॥ पूर्णिमा चन्द्रिका चित्तसम्बोधिका, भावसंवर्धिका चास्ति रागात्मिका। चञ्चलाचुम्बितं पावनं प्राङ्गणम्, भारतं भारतीयं नमामो वयम्॥ ४॥

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् (Chal Chal Puruto- Sanskrit Song)

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् (Chal Chal Puruto- Sanskrit Song) चल चल पुरतो निधेहि चरणम् सदैव पुरतो निधेहि चरणम् ॥ध्रु॥ गिरीशिखरे तव निज निकेतनम् समारोहणं विनैव यानम् आत्मबलं केवलं साधनम् ॥१॥ पथिपाषाणा विषमा प्रखरा तिर्यन्चोपि च परितो घोरः सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम् ॥२॥ जहीहि भीतिं ह्रिदि भज शक्तिम् देहि देहि रे भगवती भक्तिम् कुरु कुरु सततं धेयस्मरणम् ॥३॥ सुनने के लिए (click to listen) - https://drive.google.com/file/d/0B4UJNc1YSXweUmxWUktqZ092eFk/view?usp=drivesdk    cala cala purato nidhehi caraṇam sadaiva purato nidhehi caraṇam ||dhru|| girīśikhare tava nija niketanam samārohaṇaṁ vinaiva yānam ātmabalaṁ kevalaṁ sādhanam ||1|| pathipāṣāṇā viṣamā prakharā tiryancopi ca parito ghoraḥ suduṣkaraṁ khalu yadyapi gamanam ||2|| jahīhi bhītiṁ hridi bhaja śaktim dehi dehi re bhagavatī bhaktim kuru kuru satataṁ dheyasmaraṇam ||3|| Meaning Go ahead, keep your feet forward Always place the feet forward. Your home is at the top of the mountain. Climb

कथा-वाचन (Sanskrit story/ katha)

कथा-वाचनम् (Sanskrit story/ katha) कक्षा 6, पाठ- 7  बकस्य प्रतिकार:,  प्रश्न 5-    पिपासितः काकः एकदा एकः काकः पिपासितः आसीत्। सः जलं पातुम् इतस्ततः अभ्रमत्। परं कुत्रापि जलं न प्राप्नोत्। अन्ते सः एकं घटम् अपश्यत्। घटे स्वल्पम् जलम् आसीत्। अतः सः जलम् पातुम् असमर्थः अभवत्। सः एकम् उपायम् अचिन्तयत्। सः पाषाणस्य खण्डानि घटे अक्षिपत्। एवं क्रमेण घटस्य जलम् उपरि आगच्छत्। काकः जलं पीत्वा संतुष्टः अभवत्। परिश्रमेण एव कार्याणि सिध्यन्ति न तु मनोरथैः।   ------- कक्षा 7, पाठ- 2  दुर्बुद्धि विनश्यति, प्रश्न 7    काकः सर्पः कथा   एकस्य वृक्षस्य शाखासु अनेके काकाः वसन्ति स्म। तस्य वृक्षस्य कोटरे एकः सर्पः अपि अवसत्। काकानाम् अनुपस्थितौ सर्पः काकानां शिशून् खादति स्म। काकाः दुःखिताः आसन्। तेषु एकः वृद्धः काकः उपायम् अचिन्तयत्। वृक्षस्य समीपे जलाशयः आसीत्। तत्र एका राजकुमारी स्नातुं जलाशयम् आगच्छति स्म। शिलायां स्थितं तस्याः आभरणम् आदाय एकः काकः वृक्षस्य उपरि अस्थापयत्। राजसेवकाः काकम् अनुसृत्य वृक्षस्य समीपम् अगच्छन्। तत्र ते तं सर्पं च अमारयन्। अतः एवोक्तम् -उपायेन सर्वं सिद्धयति।  -------

संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय

                   संस्कृत वाक्य रचना- धातु/लकार परिचय वाक्य के मुख्यतः दो भाग होते हैं। 1.कर्ता 2. क्रिया संस्कृत भाषा के वाक्यों  में *क्रिया (Verb)* के लिए *धातु* का प्रयोग की जाती है। यथा- रामः फलं *खादति।*  राम फल *खा रहा है।* Ram is *Eating* an Apple. उपर्युक्त वाक्य में *खादति* क्रिया है जो धातु के रूप में प्रयोग की जाती है। धातुओं के दस लकार होते हैं- " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् ,  लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " । •• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)। •• इन दस लकारों में से ~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और ~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है। •• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से  पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध (बनाए) किये जाते हैं

8 संस्कृत-अर्धवार्षिक-परीक्षायाःः प्रश्नपत्र-प्रारूपम् (8 MidTerm Sanskrit-BluePrint)

7 संस्कृतम् । अर्धवार्षिक-परीक्षायाः प्रश्नपत्र-प्रारूपम् (7th class Sanskrit Blue Print for Half Yearly Exam 2019-20)

6 संस्कृतम् । अर्धवार्षिक-परीक्षायाः प्रश्नपत्र-प्रारूपम् (6th class Sanskrit Blue Print for Half Yearly Exam 2019-20)

दीप-प्रज्वलन-श्लोका: (Lamp Ignition Shaloks)

दीप-प्रज्वलन-श्लोका: (Lamp Ignition Shaloks) वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।। शुभं करोति कल्याणम्  आरोग्यं धनसंपदाम् । आत्मबुद्धि प्रकाशाय दीपज्योतिर्   नमोऽस्तुते ॥ दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्   जनार्दनः । दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्  नमोऽस्तुते ॥            ----

संस्कृत-पाठ्यक्रमः कक्षा 6त: 8पर्यन्तमम् ( Sanskrit SPLIT UP Syllabus- Winter Session)

संस्कृत-पाठ्यक्रमः कक्षा 6त: 8पर्यन्तमम्   ( Sanskrit SPLIT UP Syllabus- Winter Session)

संस्कृत ओलयम्पियड्स- प्रश्न- पत्राणि

         संस्कृत ओलयम्पियड्स-  प्रश्न- पत्राणि      कक्षा षष्टी 6th https://drive.google.com/file/d/147sHmHLgEMKAsD6lv1pwLLCP7R_7Bh9I/view?usp=drivesdk     कक्षा सप्तमी 7th https://drive.google.com/file/d/148YO7-ZVWpIBBLobqLiHj0wlJ8Syd_cR/view?usp=drivesdk       कक्षा अष्टमी 8th https://drive.google.com/file/d/14FoV_bjX9dUdbYfwvqCZ-rgFw-OSl2t6/view?usp=drivesdk        कक्षा नवमी 9th https://drive.google.com/file/d/14J8fTJ3tmy5cT6TAWYjgoXnSyGzKAKoh/view?usp=drivesdk        कक्षा दशमी 10th https://drive.google.com/file/d/14KqFuSfnYh8PCaeEtFxlorJx__uZwFxm/view?usp=drivesdk

गायत्री मन्त्र व ओ३म् की महिमा

गायत्री मन्त्र व ओ३म् की महिमा शंख ऋषि कहते हैं- *सव्याहृतिकां सप्रणवां गायत्रीं शिरसा सह ।* *ये जपन्ति सदा तेषां न भयं विद्यते क्वचित् ।।*-(१२/१४) अर्थात् जो सदा गायत्री का जाप व्याहृतियों और ओंकार सहित करते हैं,उन्हें कभी भी कोई भय नहीं सताता। *शतं जप्त्वा तु सा देवी दिन-पाप-प्रणाशिनी ।* *सहस्रं जप्त्वा तु तथा पातकेभ्यः समुद्धरेत् ।।*-(१२/१५) गायत्री का सौ बार जाप करने से दिन भर के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा दिन भर पापों का प्राबल्य नहीं होने पाता और एक सहस्र बार जाप करने से यह गायत्री मन्त्र मनुष्य को पातकों से ऊपर उठा देता है और उसके मन की रुचि पातकों की और नहीं रहती।अर्थात् मनुष्य के मन में पाप की कोई मैल नहीं रहने पाती। *ओ३म् की महिमा* (१) *प्रश्नोपनिषद् मे*:-पिप्पलाद ऋषि सत्यकाम को कहते हैं- हे सत्यकाम ! ओंकार जो सचमुच पर और अपर ब्रह्म है (अर्थात्) उसकी प्राप्ति का साधन है जो उपासक उस सर्वव्यापक परमेश्वर का ओ३म् शब्द द्वारा ध्यान करता है,वह ब्रह्म को प्राप्त होता है।जो कृपासिन्धु,परमात्मा,अजर अमर अविनाशी सर्वश्रेष्ठ है,उस सर्वज्ञ अन्तर्यामी परमात्मा को सर्वसा

कक्षा-7 प्रश्नपत्र-प्रारूपम् (Blue Print)

सुवचनानि (Suvachanani)-

सुवचनानि   (Suvachanani)- ज्ञानम् / शिक्षा / विद्या- हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः हितकारी बातें मन को भी अच्छी लगे ऐसा दुर्लभ ही होता है। सूक्तिः १. ज्ञानं तृतीयं पुरुषस्य नेत्रम् । अर्थ -  ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है । श्लोकः २. अनन्तशास्त्रं बहु वेदितव्यमल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नाः ।  यत्सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमिश्रम् ।। (नराभरणम्-११९) अर्थ -  शास्त्रों का अन्त नहीं है, जानने को बहुत कुछ है, समय कम है, विघ्न बहुत हैं । जो सार है उसी का ग्रहण करना चाहिये जैसे कि हंस जल मिश्रित दूध में से केवल दूध ग्रहण कर लेता है । श्लोकः ३. सा विद्या या मदं हन्ति सा श्रीर्यार्थिषु वर्षति ।  धर्मानुसारिणी या च सा बुद्धिरभिधीयते ।। (दर्पदलनम्, ३/३) अर्थ -  विद्या वह है जो मद को दूर करे । लक्ष्मी वह है जो याचकों पर बरसे । बुद्धि वह है जो धर्मानुसारिणी हो । श्लोकः ४. प्रज्ञा प्रतिष्ठा भूतानां प्रज्ञा लाभः परो मतः ।  प्रज्ञा निःश्रेयसी लोके प्रज्ञा स्वर्गो मतः सताम् ।। (महाभा.शान्ति-.१८०/२) अर्थ -  बुद्धि ही प्राणियों का आधार है, बुद्धि की प्राप्ति ही सबसे उत्कृष