Skip to main content

About Sanskrit

After the Constitution, the next and perhaps most important document to examine would be the Report of the Sanskrit Commission set up by the Government of India in 1956 under the Chairmanship of Dr. Suniti Kumar Chatterjee. An examination of the Report of this Commission shows that the status of Sanskrit in contemporary India has a lot to do with both the politics and policies of the State. It was this Commission’s report, along with Report of the Official Language Commission of the Government of India that led to Sanskrit being one of the languages taught in Indian schools all over the country. According to the three-language formula, which still works at least up to the 10th Standard in Indian secondary schools, each student has to learn three languages, the mother tongue, Hindi or another Indian language, and English. To this day, in many school, Sanskrit is the third language, taken in addition to English and Hindi. The Report of the Commission is probably the most extensive and impressive argument in favour of Sanskrit education in independent India. The Commission actually recommended that Sanskrit be made “an additional official language” of India:
       While for all administrative and ordinary day-to-day purposes, some pan-Indian form of Hindi may be used, it appears inevitable that, in course of time, the prospective All-India Language — Bharati Bhasa — at least in its written norm, which would be acceptable to all regions of India, especially in the higher reaches of education and literary activity, will be a form of simple and modernised Sanskrit.

Comments

Popular posts from this blog

छात्र-प्रतिज्ञा (संस्कृत) Student's Pledge (Sanskrit)

छात्र-प्रतिज्ञा (संस्कृत)  Student's Pledge (Sanskrit) भारतं अस्माकं देशः।  वयं सर्वे भारतीया:  परस्परं भ्रातरो भगिन्यश्च ।  अस्माकं देशः प्राणेभ्योsपि प्रियतर: ।  अस्य समृद्धौ विविध-संस्कृतौ च वयं गौरवम् अनुभवाम:।  वयं अस्य सुयोग्याः अधिकारिणो भवितुं सदा प्रयत्नं करिष्याम:।   वयं स्वमातापित्रो: शिक्षकाणां गुरुजनानां च सदैव सम्मानं करिष्याम:।  सर्वैः च सह शिष्टतया व्यवहारं करिष्याम:।  वयं स्वदेशं देशवासिनश्च प्रति विश्वासभाज: भवेम।  (वयं स्वदेशं  देशवासिनश्च प्रति कृतज्ञतया वर्तितुं प्रतिज्ञां कुर्म:।)  तेषां कल्याणे समृद्धौ च अस्माकं  सुखं निहितम् अस्ति। जयतु भारतम्। ------------------------------------------------------------  "भारत हमारा देश है!  हम सब भारतवासी भाई- बहन है!  हमें अपना देश प्राण से भी प्यारा है!  इसकी समृद्धि और विविध संस्कृति पर हमें गर्व है!  हम इसके सुयोग्य अधिकारी बनने का प्रयत्न सदा करते रहेंगे!  हम अपने माता पिता, शिक्षकों और गुरुजनों का सदा आदर करेंगे और  सबके साथ शिष्टता का व्यवहार करेंगे!  हम अपने देश और देशवासियों के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञ

संस्कृत-वाक्य-रचना (Sanskrit Vakya Rachna)

संस्कृत-वाक्य-रचना (Sanskrit Vakya Rachna)  This Table can be useful to teach Students, How to make/Translate Sentences in Sanskrit..  (click to Zoom)                       1.   प्रथम पुरुष   1.1 पुल्लिंग-   बालक जा रहा है।   (वर्तमान-काल) बालकः गच्छति।  बालक पढ़ता है। बालक: पठति।  दो बालक पढ़ते हैं। (द्विवचन)  बालकौ  पठत:।  सभी बालक पढ़ते हैं। (बहुवचन)  बालका: पठन्ति।  बालक पढ़ेगा। (भविष्य-काल) बालक: पठिष्यति।  ("लट् लकार" में " ष्य " जोड़ने पर "लृट् लकार" का रूप बनता है यथा- पठति+ ष्य=  पठिष्यति) बालक गया। (भूत-काल) बालकः गच्छति स्म।   स्म " का प्रयोग किया  बालकः अगच्छत्।   लंङ् लकार (भूतकाल के लिए "लंङ् लकार" के स्थान पर  " लट्  लकार" में " स्म " का प्रयोग किया जा सकता है।)  बालक ने पढ़ा। बालकः पठति स्म।  (भूतकाल के लिए "लंङ् लकार" के स्थान पर  " लट् लकार" में " स्म " का प्रयोग किया जा सकता है।)  सभी बालकों ने पढ़ा। बालकाः पठन्ति स्म।    वह पढ़ता है। सः पठति। कौन पढ़ता है। कः पठति।  आप पढ़ते

पिपासितः काकः (Thirsty Crow) Sanskrit Story

    पिपासितः  काकः (Thirsty Crow)  Sanskrit Story           एकदा एकः काकः  पिपासितः  आसीत्।  सः जलं पातुम्  इतस्ततः  अभ्रमत्। परं  कुत्रापि  जलं न प्राप्नोत्।  अन्ते सः एकं घटम् अपश्यत्।  घटे  स्वल्पम्  जलम् आसीत्।  अतः सः जलम्  पातुम्  असमर्थः अभवत्।  सः एकम्  उपायम्  अचिन्तयत्।  सः  पाषाणस्य  खण्डानि घटे अक्षिपत्। एवं क्रमेण घटस्य जलम्  उपरि  आगच्छत्।  काकः जलं पीत्वा  संतुष्टः  अभवत्।  परिश्रमेण एव  कार्याणि  सिध्यन्ति न तु मनोरथैः।