7.5.1 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम्
पञ्चम: पाठ: (पण्डिता रमाबाई )
Class-7th, Subject-Sanskrit, Lesson-5
(Pandita Ramabaai)
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नमो नमः।
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-2 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम्।
अद्य वयं पञ्चमं पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति - पण्डिता रमाबाई ।
अहं डॉ. विपिन:।
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इस पाठ में "पण्डिता रमाबाई" के जीवन और स्त्रीशिक्षा क्षेत्र में दिए गए उनके योगदान पर चर्चा की गई है।
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-पाठ अर्थ, संधि-विच्छेद सहित-
पञ्चम: पाठः
पण्डिता रमाबाई
(1) स्त्रीशिक्षाक्षेत्रे अग्रगण्या पण्डिता रमाबाई 1858 तमे खिष्टाब्द्रे जन्म अलभत।
सरलार्थ-
स्त्रियों की शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी पंडिता रमाबाई का जन्म 1858 ईसवी में हुआ।
तस्याः पिता अनन्तशास्त्री डोंगरे माता च लक्ष्मीबाई आस्ताम्।
उनके पिता का नाम अनंत शास्त्री डोंगरे तथा माता का नाम लक्ष्मीबाई था।
तस्मिन् काले स्त्रीशिक्षायाः स्थितिः चिन्तनीया आसीत्।
उस समय स्त्रियों की शिक्षा की स्थिति चिंतनीय थी।
स्त्रीणां कृते संस्कृतशिक्षणं प्रायः प्रचलितं नासीत्।
स्त्रियों के लिए संस्कृत का शिक्षण प्राय प्रचलित नहीं था।
किन्तु डोंगरे रूढिबद्धां धारणां परित्यज्य स्वपत्नीं संस्कृतमध्यापयत्। (संस्कृतम् + अध्यापयत्)
परंतु डोंगरे ने रूढियों में बंधी धारणा को छोडकर अपनी पत्नी को संस्कृत पढाई।
एतदर्थं सः समाजस्य प्रतारणाम् अपि असहत।
इसके लिए उनको समाज की ताड़ना भी सहनी पड़ी।
अनन्तरं रमा अपि स्वमातुः संस्कृतशिक्षां प्राप्तवती।
फिर रमा ने अपनी माता से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की।
(2) कालक्रमेण रमायाः पिता विपन्न: संजातः।
सरलार्थ-
कुछ समय बीतने के पश्चात रमा के पिता गरीब हो गए।
तस्याः पितरौ ज्येष्ठा भगिनी च दुर्भिक्षपीडिताः दिवङ्गगताः।
उसके माता-पिता और बड़ी बहन की अकाल से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गई।
तदनन्तरं (तद्+अनन्तरं) रमा स्व-ज्येष्ठभ्रात्रा सह पद्भ्यां समग्रं भारतम् अभ्रमत्।
उसके पश्चात रमा ने अपने बड़े भाई के साथ संपूर्ण भारत का पैदल यात्रा की ।
भ्रमणक्रमे सा कोलकातां प्राप्ता।
भ्रमण करते-करते वह कोलकाता पहुंची।
संस्कृतवैदुष्येण सा तत्र ‘पण्डिता’ ‘सरस्वती’ चेति (च+ इति) उपाधिभ्यां विभूषिता।
संस्कृत में विद्वत्ता के कारण वहां उन्हें 'पंडिता' और 'सरस्वती' उपाधियों से विभूषित किया गया।
तत्रैव सा ब्रह्मसमाजेन प्रभाविता वेदाध्ययनम् (वेद+अध्ययनम्) अकरोत्।
वहीं पर उन्होंने ब्रह्म समाज से प्रभावित होकर वेदों का अध्ययन किया ।
पश्चात् सा स्त्रीणां कृते वेदादीनां शास्त्राणां शिक्षायै आन्दोलनं प्रारब्धवती।
उसके पश्चात उन्होंने स्त्रियों के लिए वेद आदि शास्त्रों की शिक्षा के लिए आंदोलन आरंभ किया।
(3) 1880 तमे ख्रिष्टाब्दे सा विपिनबिहारीदासेन सह बाकीपुर-न्यायालये विवाहम् अकरोत्।
सन 1880 में उन्होंने विपिन बिहारी दास के साथ बाकीपुर न्यायालय में विवाह किया।
सार्धैकवर्षात् (सार्ध+एकवर्षात्) अनन्तरं तस्याः पतिः दिवङ्गगतः।
डेढ़ वर्ष के पश्चात उनके पति की मृत्यु हो गई ।
तदनन्तरं (तद्+अनन्तरं) सा पुत्र्या मनोरमया सह जन्मभूमिं महाराष्ट्रं प्रत्यागच्छत्।
इसके बाद वह पुत्री मनोरमा के साथ अपनी जन्मभूमि महाराष्ट्र लौट आई ।
नारीणां सम्मानाय शिक्षायै च सा स्वकीयं जीवनम् अर्पितवती।
स्त्रियों के सम्मान व शिक्षा के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया।
हण्टर-शिक्षा-आयोगस्य समक्षं नारीशिक्षाविषये सा स्वमतं प्रस्तुतवती।
हंटर शिक्षा आयोग के सामने उन्होंने नारी की शिक्षा के विषय में अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
सा उच्चशिक्षार्थम् इंग्लैण्डदेशं गतवती।
वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गई।
तत्र ईसाई-धर्मस्य स्त्रीविषयकैः उत्तमविचारैः प्रभाविता जाता।
वहाँ ईसाई धर्म के स्त्रियों के विषय में उत्तम विचारों से बहुत प्रभावित हुई।
(4) इंग्लैण्डदेशात् रमाबाई अमरीकादेशम् अगच्छत्।
सरलार्थ-
इंग्लैंड देश से वह अमेरिका गई ।
तत्र सा भारतस्य विधवास्त्रीणां सहायतार्थम् अर्थसंचयम् अकरोत्।
वहां पर उन्होंने भारत की विधवा स्त्रियों की सहायता के लिए धन एकत्रित किया ।
भारतं प्रत्यागत्य मुम्बईनगरे सा ‘शारदा-सदनम्’ अस्थापयत्।
भारत लौटकर उन्होंने मुंबई शहर में शारदा सदन की स्थापना की ।
अस्मिन् आश्रमे निस्सहायाः स्त्रियः निवसन्ति स्म।
इस आश्रम में बेसहारा स्त्रियों रहती थी।
तत्र स्त्रियः मुद्रण-टंकण-काष्ठकलादीनाञ्च
(काष्ठकलादीनाम्+च) प्रशिक्षणमपि लभन्ते स्म।
वहाँ स्त्रियां छपाईए टाइप तथा लकड़ी की कलाकारी आदि का प्रशिक्षण लेती थी।
परम् इदं सदनं पुणेनगरे स्थानान्तरितं जातम्।
किंतु यह आश्रम (मुंबई शहर से) पुणे शहर में स्थानांतरित हो गया।
ततः पुणेनगरस्य समीपे केडगाँव- स्थाने ‘मुक्तिमिशन’ नाम संस्थानं तया स्थापितम्।
उसके पश्चात पुणे नगर के पास केडगाँव स्थान पर उन्होंने मुक्ति मिशन नामक संस्थान स्थापित किया ।
अत्र अधुना अपि निराश्रिताः स्त्रियः ससम्मानं जीवनं यापयन्ति।
यहां आज भी बेसहारा स्त्रियां सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत करती हैं।
(5) 1922 तमे ख्रिष्टाब्दे रमाबाई-महोदयायाः निधनम् अभवत्।
सरलार्थ-
सन 1922 में रमाबाई महोदया का निधन हो गया।
सा देश-विदेशानाम् अनेकासु भाषासु निपुणा आसीत्।
वह देश-विदेश की अनेक भाषाओं में निपुण थी।
समाजसेवायाः अतिरिक्तं लेखनक्षेत्रे अपि तस्याः महत्त्वपूर्णम् अवदानम् अस्ति।
समाज सेवा के अतिरिक्त लेखन के क्षेत्र में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
‘स्त्रीधर्मनीति’ ‘हाई कास्ट हिन्दू विमेन’ इति तस्याः प्रसिद्धं रचनाद्वयं वर्तते।
"स्त्रीधर्म नीति" "हाई कास्ट हिंदू विमेन" यह उनकी दो प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
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