6.10.1 कक्षा- षष्ठी, विषय:- संस्कृतम्, दशमः पाठ: ( कृषिकाः कर्मवीराः) Class-6th, Subject-Sanskrit, Lesson- 10 (KrishakaH KarmveeraH)
6.10.1 कक्षा- षष्ठी, विषय:- संस्कृतम्,
दशमः पाठ: ( कृषिकाः कर्मवीराः)
Class-6th, Subject-Sanskrit,
Lesson- 10 (KrishakaH KarmveeraH)
षष्ठकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-1 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अधुना वयं दशम-पाठं पठामः ।
पाठस्य नाम अस्ति
कृषिकाः कर्मवीराः
अहं डॉ. विपिन:।पाठ-परिचयः
इस पाठ में हमारे अन्नदाता
किसानों की कर्मठता और उनके संघर्षमय जीवन के विषय में बताया गया है। सर्दी-गर्मी
के कष्टों को सहन करते हुए वे हम सब के लिए अन्न का उत्पादन करते हैं। अत्यधिक
परिश्रम करने के उपरांत भी उन्हें निर्धनता का जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
पाठस्य सारः
इस पाठ में बताया गया है कि
कृषक लोग ही सच्चे कर्मवीर हैं। सर्दी हो या गर्मी, कृषक कठोर परिश्रम करते हैं।
गर्मी की ऋतु में शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है और सर्दी में शरीर ठिठुरता है,
परन्तु कृषक लोग कभी हल से तो कभी कुदाल से खेत को जोतते रहते हैं।
कृषक लोगों का जीवन कष्टमय
होता है। वे स्वयं कष्ट उठाकर मानव मात्र की सेवा करते हैं। उनके पास न घर है, न
वस्त्र हैं और न भोजन है। फिर भी वे मनुष्यों को सुख देने के लिए तत्पर रहते हैं।
अतः कृषक ही सच्चे अर्थों में कर्मवीर हैं।
सूर्यस्तपतु मेघाः
वा वर्षन्तु विपुलं जलम्।
कृषिका
कृषिको नित्यं शीतकालेऽपि कर्मठौ॥
ग्रीष्मे
शरीरं सस्वेदं शीते कम्पमयं सदा।
हलेन
च कुदालेन तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः॥2॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) : सूर्यस्तपतु (सूर्य: + तपतु)-सूर्य
तपाये (the Sun
may burn), वर्षन्तु-बरसाएँ (may rain), विपुलम्-बहुत सारा (huge amount), कृषिका-किसान की स्त्री अथवा स्त्री
किसान (a
farmer’s wife or a lady farmer), कर्मठौ-काम
में लगे हुए (active),
सस्वेदम्-स्वेद (पसीने) से
युक्त (full of
sweat), कर्षत:-जुताई करते हैं (to plough), कृषिकः-किसान (farmer), कुदालेन-कुदाल से (with spade)
सरलार्थ
:चाहे, सूरज तपाये या बादल
अत्यधिक बरसें किसान तथा उसकी पत्नी सदा सरदी में भी काम में लगे रहते हैं। गरमी
में शरीर पसीने से भरा हुआ होता और ठंड में कंपनयुक्त अर्थात् काँपता रहता है
किंतु फिर भी वे दोनों हल से अथवा कुदाल से खेतों को जोतते रहते हैं।
पादयोर्न पदत्राणे शरीरे वसनानि नो।
निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति॥3॥
गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति॥4॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) : पदत्राणे-जूते (shoes), पादयोः-पैरों
में (on feet),
वसनानि-वस्त्र (clothes), तिष्ठति-रहता है ( stays), जीर्णम्-पुराना (old), वृष्टिम्-बारिश को (rain), वारयितुम्-रोकने के लिए (to ward off), क्षमम्-समर्थ (able/capable), कर्मवीरत्वम्-कर्मठता (activity/active nature), न नश्यति-नष्ट नहीं होता (is not destroyed/ does not stop)।
सरलार्थ : पैरों में जूते नहीं, शरीर पर कपड़े नहीं, निर्धन, कष्टमय
जीवन है, सुख सदा दूर ही रहता है। घर टूटा-फूटा (पुराना) है, वर्षा के समय बारिश
(अर्थात् बारिश का पानी अंदर आने से) रोकने में असमर्थ है। तो भी किसानों की
कर्मनिष्ठा नष्ट नहीं होती अर्थात् वे कृषि के काम में लगे रहते हैं।
तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि सर्वदा।
धरित्री सरसा जाता या शुष्का
कण्टकावृता॥5॥
शाकमन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा
सर्वेभ्य एव तौ।
क्षुधा-तृषाकुलौ नित्यं
विचित्रौ जन-पालकौ॥6॥
शब्दार्थाः (Word Meanings):तयोः-उन दोनों के (both of them), सस्यपूर्णानि-फसल से युक्त (full of crops), सर्वदा-हमेशा (always), धरित्री-धरा (earth/land), सरसा-रसपूर्ण। हरी-भरी (full of greenry), शुष्का-सूखी (dry), कण्टकावृता (कण्टक+आवृता)-काँटों से ढकी हुई (covered with thorns), शाकमन्नम् (शाकम्+अन्नम् )-सब्जी तथा
अन्न (vegetables
and grains), दत्त्वा-देकर
(giving), क्षुधा-तृषाकुलौ (तृषा +
आकुलौ)-भूख-प्यास से व्याकुल (distressed with hunger and thirst)।
सरलार्थ :उन दोनों (किसान तथा उसकी पत्नी) के परिश्रम से खेत सदा
फसलों से भर जाते हैं। धरती जो पहले सूखी व काँटों से भरी थी अब हरी-भरी हो जाती
है। वे दोनों सब को सब्जी, अन्न, फल-दूध (आदि) देते हैं (किन्तु) स्वयं भूख-प्यास से
व्याकुल रहते हैं। वे दोनों विचित्र (अनोखे) जन पालक हैं। (यह एक विडंबना है कि
दूसरों की भूख मिटाने वाले स्वयं भूख का शिकार हैं।)
प्रश्नाभ्यासः-
सूर्यस्तपतु मेघाः
वा वर्षन्तु विपुलं जलम्।
कृषिका
कृषिको नित्यं शीतकालेऽपि कर्मठौ॥
एकपदेन उत्तरत –
1. कः तपतु ?
उत्तर
-------------------------------|
2. किं वर्षन्तु ?
उत्तर ------------------------------|
एकवाक्येन उत्तरत –
1.
विपुलं जलं के वर्षन्ति ?
उत्तर
---------------------------------------------|
2.
शीतकाले कौ कार्यं कुरुतः ?
उत्तर ---------------------------------------------|
विकल्पेभ्यः समुचितपदं चित्वा उत्तरं लिखन्तु |
1. (विपुलं जलं)
अत्र विशेषणपदं किमस्ति ?
1. विपुलम् 2. जलम्
2. (विपुलं जलं) अत्र विशेष्यपदं किमस्ति ?
1. विपुलम् 2. जलम् उत्तर -------------------------------|
3. (सूर्यः तपतु) अत्र कर्तृपदं किमस्ति ?
1. सूर्यः 2. तपतु
4. (विपुलं जलं
वर्षन्तु) अत्र क्रियापदं किमस्ति ?
1. जलम्
2. वर्षन्तु 3. विपुलम्
उत्तराणि
एकपदेन उत्तरत 1. सूर्यः
2. मेघाः
एकवाक्येन उत्तरत 1. विपुलं जलं मेघाः वर्षन्ति| 2.शीतकाले कृष्कौ
कार्यम् कुरुतः |
विकल्पेभ्यः समुचितपदं चित्वा उत्तरं लिखन्तु
|
1. विपुलं 2. जलं
3. सूर्यः 4. वर्षन्तु |
एकपदेन
उत्तरत –
1. सस्वेदं किमस्ति ?
उत्तर
-----------------------------|
2. ग्रीष्मे शरीरं कीदृशं भवति ?
उत्तर
-----------------------------|
एकवाक्येन
उत्तरत –
1.
कौ क्षेत्राणि कर्षतः ?
उत्तर ----------------------------|
2.
क्षेत्राणि केन कर्षतः ?
उत्तर ----------------------------|
विकल्पेभ्यः समुचितपदं चित्वा उत्तरं लिखन्तु |
1. (सस्वेदं
शरीरं) अत्र विशेषणपदं किमस्ति ?
1. शरीरम् 2. सस्वेदम्
2.
(तौ
तु क्षेत्राणि कर्षतः)
अत्र कर्तृपदं किमस्ति ?
1. तौ 2. तु
3. कर्षतः 4. क्षेत्राणि
3 (ग्रीष्मे) इति पदस्य विलोमपदं
किमस्ति ?
1. 1. शीते 2. कम्पे 3. मेघे 4. सूर्ये
4. (सस्वेदं) पदस्य अर्थः कः
?
1.
पसीने से भीगा हुआ 2. पानी से भीगा हुआ 3. धूल से भीगा हुआ
उत्तराणि –
एकपदेन उत्तरत – 1. शरीरम् 2. सस्वेदम्
एकवाक्येन उत्तरत – 1.
कृषकौ क्षेत्राणि कर्षतः | 2. हलेन कुदालेन च क्षेत्राणि कर्षतः |
विकल्पेभ्यः समुचितपदं चित्वा उत्तरं लिखन्तु | 1. सस्वेदम्
2. तौ 3. शीते 4. पसीने से भीगा हुआ |
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