Skip to main content

7.2.1 कक्षा - सप्तमी, विषय: - संस्कृतम् द्वितीय: पाठ: (दुर्बुद्धि: विनश्यति ) Class 7th, Subject - Sanskrit Lesson-2 (DurbudhiH Vinashyati)

          7.2.1 कक्षा - सप्तमी,  विषय: - संस्कृतम्
            द्वितीय: पाठ:  (दुर्बुद्धि: विनश्यति )
       Class 7th,   Subject - Sanskrit
       Lesson-2 (DurbudhiH Vinashyati)

       ************************************

नमोनमः। 
सप्तमीकक्ष्यायाः रुचिरा भाग- 2
इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् । 
अद्य वयं द्वितीयं पाठं पठामः। 
पाठस्य नाम अस्ति -

                   दुर्बुद्धि: विनश्यति

       ************************************
दुर्बुद्धि: विनश्यति
दुर्बुद्धि: =  दुर्+बुद्धिः।

दुर्बुद्धि  शब्द  बुद्धिः से पूर्व दुर् उपसर्ग के जुड़ने से बना है।  दुर् का अर्थ होता है-  बुरा (bad),  तथा कठिन (difficult)।
इस संदर्भ में दुर्बुद्धि का अर्थ हुआ बुरी /  मूर्ख बुद्धि। 

विनश्यति  - का अर्थ है नष्ट होना अथवा मरना।

इस प्रकार "दुर्बुद्धि: विनश्यति" का अर्थ है मूर्ख नष्ट हो जाता है अथवा मारा जाता है।

इस पाठ में हम हंस और कछुए की कहानी के माध्यम से मूर्ख व्यक्ति को होने वाली हानि के विषय में पढ़ेंगे। यह पाठ शिक्षा देता है की हमें सदा अपने अच्छे मित्रों की बात माननी चाहिए और असमय नहीं बोलना चाहिए।

प्रस्तुत पाठ प्रसिद्ध कथाग्रंथ "पंचतंत्र" से लिया गया है जिसके रचयिता "विष्णु शर्मा" है।

     ---------------------------------------------------------
                 द्वितीय: पाठ:  (दुर्बुद्धि: विनश्यति )

अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सरः

 ( Bold- क्रिया पद ,    Underline- कर्तृ (कर्ता) पद ) 

अर्थ-
मगध देश में फुल्लोत्पल नामक एक तालाब था।


तत्र संकटविकटौ हंसौ निवसतः
अर्थ- 
वहां संकट और विकट नाम के दो हंस रहते थे।

कम्बुग्रीवनामकः तयोः मित्रम् एकः कूर्मः अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
अर्थ-

 उनका मित्र कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ भी वहीं रहता था।

अथ एकदा धीवराः तत्र आगच्छन्
अर्थ-
एक बार मछुआरे वहां आए। 

ते अकथयन् - वयं श्वः मत्स्य-कूर्मादीन् मारयिष्यामः
अर्थ-
उन्होंने कहा - हम कल मछलियां,  कछुए आदि को मारेंगे

 






एतत् श्रुत्वा कूर्मः अवदत्- ‘‘मित्रे! किं युवाभ्यां धीवराणां वार्ता श्रुता
अर्थ-
यह सुनकर कछुआ बोला - दोस्तों! क्या तुमने मछुआरों की बात सुनी

अधुना किम् अहं करोमि?’’
अर्थ-
अब मैं क्या करूं?

हसौ अवदताम् -  ‘‘प्रातः यद् उचितं तत्कर्त्तव्यम् (तत्+ कर्त्तव्यम्) ।’’

अर्थ-
हंसों ने कहा - सुबह जो ठीक होगा वह करते हैं।

कूर्मः अवदत्- ‘‘मैवम् (मा + एवम्)।
अर्थ-
कछुआ बोला- एसा नहीं।

यद् यथाsहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम्।’’
अर्थ-
कि मैं अन्य तालाब को जाता हूँ अतः वैसा करो।

हंसौ अवदताम्-‘‘आवां किं करवाव?’’
अर्थ-
दोनों हंस बोले - हम क्या करें।

कूर्मः अवदत्- ‘‘अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण
अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।’’ 
अर्थ-
कछुआ बोला - मैं तुम दोनों के साथ आकाश मार्ग से कहीं और जाना चाहता हूं। 

          ------------------------------------------ 

हंसौ अवदताम्-‘‘अत्र कः उपायः?’’
अर्थ-
दोनों हंस बोले-  यह कैसे संभव है?

कच्छपः वदति-‘‘युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धरयताम्
अर्थ- 
कछुआ बोला - तुम दोनों लकड़ी के डंडे को अपनी चोंच में पकड़ (धारण कर) लेना। 

अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।’’ 
अर्थ-
मैं लकड़ी के डंडे के बीच में लटककर तुम्हारे पंखों की सहायता से कहीं और चला जाऊंगा।

हंसौ अकथयताम्- ‘‘सम्भवति एषः उपायः। 
अर्थ-
दोनों हंस बोले - यह उपाय हो सकता है।

किन्तु अत्र एकः अपायोsपि वर्तते।
अर्थ-
परंतु यहां एक हानि / समस्या भी है।

आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य ( त्वाम्+ अवलोक्य) जनाः किञ्चिद् वदिष्यन्ति एव। 
अर्थ-
हमारे द्वारा ले जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ अवश्य कहेंगे।

यदि त्वमुत्तरं (त्वम्+ उत्तरं) दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्।
अर्थ- 
यदि तुम उत्तर दोगे तो तुम्हारा मरना निश्चित है।

अतः त्वम् अत्रैव (अत्र+एव) वस। 
अर्थ-
इसलिए तुम यहीं रहो।

तत् श्रुत्वा क्रुद्धः कूर्मः अवदत्- ‘‘किमहं (किम्+अहं) मूर्खः?
अर्थ-
यह सुनकर कछुआ गुस्से में बोला - क्या मैं मूर्ख हूंँ?

उत्तरं न दास्यामि। 
अर्थ-
उत्तर नहीं दूंगा।

किञ्चिदपि (किञ्चिद्+अपि) न वदिष्यामि।’’
अर्थ-
कुछ भी नहीं बोलूंगा। 

अतः अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्।
अर्थ-
इसलिए मैं जैसा बोलता हूँ वैसा तुम दोनों करो।

          ------------------------------------------ 
एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्मं पौराः अपश्यन्
अर्थ-
इस प्रकार लकड़ी के डंडे में लटकते हुए कछुए को लोगों ने देखा। 

 










पश्चाद् अधावन् अवदन् च- ‘‘हंहो!
अर्थ-
और पीछे भागते हुए बोले - अरे। 

महदाश्चर्यम् (महद्+आश्चर्यम् )।
अर्थ-
बहुत बड़े आश्चर्य की बात है।

हंसाभ्यां सह कूर्मोsपि उड्डीयते।’’ 
हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है। 

 

कश्चिद् वदति- ‘‘यद्ययं (यदि+अयं) कूर्मः कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।’’
कोई बोला - यदि यह कछुआ कहीं गिरता है तो मैं यहीं पकाकर खा जाऊंगा।

अपरः अवदत् - ‘‘सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि’’। 
दूसरा बोला - नदी के तट पर पकाकर खा जाऊंगा।

अन्यः अकथयत्- ‘‘गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि’’ इति। 
कोई और बोला - घर में ले जाकर खा जाऊंगा।

तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्मः क्रुद्धः जातः।
उनकी बातें सुनकर कछुआ क्रोधित हो गया।

मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य सः अवदत् - ‘‘यूयं भस्म खादत।’’
मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर वह बोला - तुम लोग राख खाओ। 

तत्क्षणमेव (तत्क्षणम्+एव) कूर्मः दण्डात् भूमौ पतितः।
उसी समय कछुआ डंडे से धरती पर गिर गया।

पौरेः सः मारितः। 
लोगों ने उसे मार दिया। 

अत एवोक्तम् (एव+उक्तम्)-
इसीलिए कहा गया है-

          सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति।
          स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति।।

सरलार्थ -
         जो अच्छे दोस्तों द्वारा कही गई हित की बातों को नहीं मानता, वह मूर्ख कछुए की तरह ही लकड़ी से गिरकर मारा जाता है। 

     ---------------------------------------------------------
                            --  शब्दार्थाः  --
1) सरः                     - तालाब
2) कूर्मः/कच्छपः      - कछुआ
3) प्रतिवसति स्म      - रहता था
4) धीवराः.                - मछुआरे
5) मत्स्यवूफर्मादीन्    - मछली, कछुआ आदि को
7) मारयिष्यामः.        - मारेंगे
8) मैवम् ; मा एवम्.    - ऐसा नहीं
9) धरयताम्              - धरण करें
10) पक्षबलेन           - पंखो के बल से
11) अपायः              - हानि
12) नीयमानम्         - ले जाते हुए
13) अवलोक्य         - देखकर
14) लम्बमानम्        - लटकते हुए
15) उड्डीयते             - उड़ रहा है
16) विस्मृत्य            - भूल कर
17) भस्म                - राख
18) सुहृदाम्            - मित्रों का/के/की
19) हितकामानाम्    - कल्याण की इच्छा
20) अभिनन्दति       - प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता/करती है
21) दुर्बुद्धिः              - दुष्ट बुद्धि वाला ।

     ---------------------------------------------------------     
      (1) पठनाय (Lesson in PDF)
      
          ------------------------------------------   
      (2) श्रवणाय  (Audio)-       

          ------------------------------------------   
             (3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video ) 
    1.1  पाठ: 
https://youtu.be/yl1f5_0NHAY
OnlinesamskrTutorial

               पाठस्य कथा
https://youtu.be/fYO2qgVeypI
      By SANSKRIT PRAGAYAN  (Pankaj ji )

         पाठ अर्थ सहित तथा अभ्यास के अर्थ सहित
https://youtu.be/rWyRQh2omCc
     By Kailash Sharma       

        1.2  अभ्यास:  
https://youtu.be/0A8_fu9Kt5w
       OnlinesamskrTutorial

          ------------------------------------------ 
       (4)   अभ्यासाय  (B2B Worksheet)
       https://drive.google.com/file/d/1i0gAj732HhZN6pjKDU66BG-mmSUed_KB/view?usp=drivesdk

          ------------------------------------------  
           (5) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि 
                  (Lesson Exercise - )  
           
https://drive.google.com/file/d/1avgb3gbBaaQY8baWQ7f64sRvlmVVBpif/view?usp=drivesdk
         -------------------------------------------- 
               प्रेरणादायक गीत 
ये वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा (गीत)
https://youtu.be/Kshr8cDF9D0  

Comments

Popular posts from this blog

छात्र-प्रतिज्ञा (संस्कृत) Student's Pledge (Sanskrit)

छात्र-प्रतिज्ञा (संस्कृत)  Student's Pledge (Sanskrit) भारतं अस्माकं देशः।  वयं सर्वे भारतीया:  परस्परं भ्रातरो भगिन्यश्च ।  अस्माकं देशः प्राणेभ्योsपि प्रियतर: ।  अस्य समृद्धौ विविध-संस्कृतौ च वयं गौरवम् अनुभवाम:।  वयं अस्य सुयोग्याः अधिकारिणो भवितुं सदा प्रयत्नं करिष्याम:।   वयं स्वमातापित्रो: शिक्षकाणां गुरुजनानां च सदैव सम्मानं करिष्याम:।  सर्वैः च सह शिष्टतया व्यवहारं करिष्याम:।  वयं स्वदेशं देशवासिनश्च प्रति विश्वासभाज: भवेम।  (वयं स्वदेशं  देशवासिनश्च प्रति कृतज्ञतया वर्तितुं प्रतिज्ञां कुर्म:।)  तेषां कल्याणे समृद्धौ च अस्माकं  सुखं निहितम् अस्ति। जयतु भारतम्। ------------------------------------------------------------  "भारत हमारा देश है!  हम सब भारतवासी भाई- बहन है!  हमें अपना देश प्राण से भी प्यारा है!  इसकी समृद्धि और विविध संस्कृति पर हमें गर्व है!  हम इसके सुयोग्य अधिकारी बनने का प्रयत्न सदा करते रहेंगे!  हम अपने माता पिता, शिक्षकों और गुरुजनों का सदा आदर करेंगे और  सबके साथ शिष्टता का व्यवहार करेंगे!  हम अपने देश और देशवासियों के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञ

संस्कृत-वाक्य-रचना (Sanskrit Vakya Rachna)

संस्कृत-वाक्य-रचना (Sanskrit Vakya Rachna)  This Table can be useful to teach Students, How to make/Translate Sentences in Sanskrit..  (click to Zoom)                       1.   प्रथम पुरुष   1.1 पुल्लिंग-   बालक जा रहा है।   (वर्तमान-काल) बालकः गच्छति।  बालक पढ़ता है। बालक: पठति।  दो बालक पढ़ते हैं। (द्विवचन)  बालकौ  पठत:।  सभी बालक पढ़ते हैं। (बहुवचन)  बालका: पठन्ति।  बालक पढ़ेगा। (भविष्य-काल) बालक: पठिष्यति।  ("लट् लकार" में " ष्य " जोड़ने पर "लृट् लकार" का रूप बनता है यथा- पठति+ ष्य=  पठिष्यति) बालक गया। (भूत-काल) बालकः गच्छति स्म।   स्म " का प्रयोग किया  बालकः अगच्छत्।   लंङ् लकार (भूतकाल के लिए "लंङ् लकार" के स्थान पर  " लट्  लकार" में " स्म " का प्रयोग किया जा सकता है।)  बालक ने पढ़ा। बालकः पठति स्म।  (भूतकाल के लिए "लंङ् लकार" के स्थान पर  " लट् लकार" में " स्म " का प्रयोग किया जा सकता है।)  सभी बालकों ने पढ़ा। बालकाः पठन्ति स्म।    वह पढ़ता है। सः पठति। कौन पढ़ता है। कः पठति।  आप पढ़ते

पिपासितः काकः (Thirsty Crow) Sanskrit Story

    पिपासितः  काकः (Thirsty Crow)  Sanskrit Story           एकदा एकः काकः  पिपासितः  आसीत्।  सः जलं पातुम्  इतस्ततः  अभ्रमत्। परं  कुत्रापि  जलं न प्राप्नोत्।  अन्ते सः एकं घटम् अपश्यत्।  घटे  स्वल्पम्  जलम् आसीत्।  अतः सः जलम्  पातुम्  असमर्थः अभवत्।  सः एकम्  उपायम्  अचिन्तयत्।  सः  पाषाणस्य  खण्डानि घटे अक्षिपत्। एवं क्रमेण घटस्य जलम्  उपरि  आगच्छत्।  काकः जलं पीत्वा  संतुष्टः  अभवत्।  परिश्रमेण एव  कार्याणि  सिध्यन्ति न तु मनोरथैः।