8.2.1 कक्षा - अष्टमी, विषय: - संस्कृतम् द्वितीय: पाठ: (बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता) Class 8th, Subject - Sanskrit Lesson-2 (Bilasya Vaani N Kadapi Me Shruta)
8.2 कक्षा - अष्टमी, विषय: - संस्कृतम्
द्वितीय: पाठ: (बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता)
Class 8th, Subject - Sanskrit
Lesson-2
(Bilasya Vaani N Kadapi Me Shruta)
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नमोनमः।
अष्टमकक्ष्यायाः रुचिरा भाग- 3 इति
पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अद्य वयं द्वितीयं पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति -
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
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प्रस्तुत पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध कथाग्रंथ "पंचतंत्र" के तृतीय तंत्र 'काकोलूकीयम्' से संग्रहित है। पंचतंत्र के मूल लेखक विष्णु शर्मा है। इसमें 5 खंडो (तंत्रों) में कुल 70 कथाएं तथा 900 श्लोक है। इनमें गद्य-पद्य के रूप में नीतिपरक कथाएं दी गई है। इन कथाओं के पात्र मुख्यतः पशु-पक्षी हैं।
पंच तंत्र -
1) मित्रभेद
2) मित्रसंप्राप्ति
3) काकोलूकीय* (काक और उल्लूक)
4) लब्धप्रणाश
5) अपरीक्षित-कारक
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बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
अर्थ-
गुफा की आवाज़ मैंने कभी भी नहीं सुनी।
कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म।
अर्थ-
किसी जंगल में खरनखरः नाम का शेर रहता था।
सः कदाचित् इतस्ततः परिभ्रमन् क्षुधार्तः न किञ्चिदपि आहारं प्राप्तवान्।
अर्थ-
वह किसी दिन भूख से व्याकुल (परेशान) होकर यहां वहां भटका परंतु उसे कहीं भी भोजन प्राप्त नहीं हुआ।
ततः सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-
अर्थ-
फिर सूर्यास्त के समय पर एक बड़ी गुफा को देखकर उसने सोचा
"नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोsपि जीवः आगच्छति।
अर्थ-
अवश्य ही इस गुफा में रात में कोई जीव आता होगा।
अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि" इति।
अर्थ-
इसलिए यहीं (इसी गुफा में) छुप कर बैठ जाता हूँ।
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एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नामकः शृगालः समागच्छत्।
अर्थ-
इसी समय गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नाम का एक सियार वहां पर पहुंचा।
स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते,
अर्थ-
जैसे ही उसने देखा शेर के पैरों के निशान गुफा में जाते हुए दिख रहे हैं,
न च बहिरागता।
अर्थ-
परंतु बाहर आते हुए नहीं।
शृगालः अचिन्तयत्- "अहो विनष्टोsस्मि।
अर्थ-
सियार ने सोचा - अरे अब मेरी मृत्यु निश्चित है।
अथवा
अरे मैं तो मारा गया।
नूनम् अस्मिन् बिले सिहः अस्तीति (अस्ति+ इति) तर्कयामि।
अर्थ-
अवश्य ही इस गुफा में शेर है ऐसा मुझे लग रहा है।
तत् किं करवाणि?"
अर्थ-
तो अब क्या करूं?
एवं विचिन्त्य दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः (कर्तुम् आरब्धः)-
अर्थ-
ऐसा सोचकर वह (सियार) दूर से ही आवाज करने (बोलने) लगा।
"भो बिल! भो बिल! किं न स्मरसि,
अर्थ-
हे गुफा! हे गुफा! क्या तुझे याद नहीं है,
यन्मया (यत् +मया) त्वया सह समयः कृतोsस्ति
अर्थ-
कि मैंने तुम्हारे साथ एक शर्त (समझौता) की थी
यत् यदाहं (यदा+अहं) बाह्यतः प्रत्यागमिष्यामि
अर्थ-
कि जब मैं बाहर से लौट कर आऊंगा
तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि?
अर्थ-
तो तुम मुझे पुकारोगी?
यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीयं बिलं यास्यामि
इति।"
अर्थ-
यदि तुम मुझे नहीं पुकारोगी तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊंगा।
अथ एतच्छ्रुत्वा (एतत्+श्रुत्वा) सिंहः अचिन्तयत्-
अर्थ-
अब यह सुनकर शेर ने सोचा-
"नूनमेषा (नूनम्+एषा) गुहा स्वामिनः सदा समाह्वानं करोति।
अर्थ-
अवश्य ही यह गुफा अपने स्वामी को हमेशा बुलाती होगी।
परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।"
अर्थ-
परंतु मेरे डर से कुछ नहीं बोल रही है।"
अथवा साध्विदम् (साधु+इदम्) उच्यते-
अर्थ-
ठीक ही कहा है-
भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्।।
(पद विभाग :)
भय-सन्-त्रस्त-मनसां हस्त-पाद-आदिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुः-च-अधिको भवेत्।।
अर्थ-
डरे हुए मन वालों की हाथ-पांव आदि से संबंधित क्रिया काम नहीं करती है, न ही उसकी आवाज निकलती है, और कंपन भी अधिक होता है।
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तदहम् अस्य आह्वानं करोमि।
अर्थ-
तो अब मैं इसको बुलाता हूं।
एवं सः बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति।
अर्थ-
इस प्रकार वह गुफा में प्रवेश करके मेरा भोजन बन जाएगा।
अतिरिक्त
{यहां सियार ने अपनी जान बचाने के लिए जो चालाकी वाली बात की, शेर उसे सच मान बैठा, और उसने मान लिया कि गुफा वास्तव में आवाज़ करके अपने स्वामी को बुलाती होगी}
इत्थं विचार्य सिहः सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत् (आह्वानम् +अकरोत्) ।
अर्थ-
इस प्रकार सोचकर शेर ने अचानक सियार को पुकारा।
सिहस्य उच्चगर्जन-प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्।
अर्थ-
सिंह की ऊंची गर्जन से गूंजती हुई उस गुफा ने ऊंची आवाज़ में सियार को पुकारा।
अनेन अन्येsपि पशवः भयभीताः अभवन्।
अर्थ-
इससे और पशु भी डर गए ।
शृगालोsपि ततः दूरं पलायमानः इममपठत् (इमम्+ अपठत्) -
अर्थ-
सियार ने भी वहां से दूर भागते हुए यह पढ़ा (बोला)-
अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम् (करोति+अनागतम्)।
वनेsत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।।
अर्थ-
आई हुई विपत्ति के बारे में जो सोच समझ कर कार्य करता है वही शोभा पाता है और जो बिना सोचे समझे कार्य करता है उसे दुख प्राप्त होता है।
जंगल में रहते हुए मैं बूढ़ा हो गया हूँ अर्थात् बहुत समय व्यतीत हो चुका है परन्तु गुफा की आवाज़ मैंने कभी भी नहीं सुनी।
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(1) पठनाय (Lesson in PDF) -
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(2) श्रवणाय (Audio )-
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(3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video )
1.1 पाठ:
https://youtu.be/g3ee-pKsv6Q
https://youtu.be/RIfwPvn-xTI
OnlinesamskrTutorial
पाठस्य कथा
https://youtu.be/8_2Sw8TEoEg
By SANSKRIT PRAGAYAN (Pankaj ji ),
पाठ अर्थ सहित तथा अभ्यास अर्थ सहित
https://youtu.be/-igHedZEx3w
By Kailash Sharma
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(4) अभ्यासाय (B2B Worksheet)
https://drive.google.com/file/d/1izHaS4jkNj9G-Z2WJtPrhvFgmMFza5LX/view?usp=drivesdk
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(5) अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि
(Lesson Exercise - )
https://drive.google.com/file/d/1_Bm6JVKwZeqdTI0Bb7YjwcLoD0O580wz/view?usp=drivesdk
अतिरिक्त --------------------------------------------
प्रेरणादायक गीत
ये वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा (गीत)
https://youtu.be/Kshr8cDF9D0
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