8.11.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:-संस्कृतम्, एकादशः पाठः - सावित्री बाई फुले Class- 8th (VIII), Subject- Sanskrit, Lesson- 11 (Saavitri Baai Phule)
8.11.1 कक्षा -अष्टमी, विषय:-संस्कृतम्,
एकादशः पाठः - सावित्री बाई फुले Class- 8th (VIII), Subject- Sanskrit,
Lesson- 11 (Saavitri Baai Phule)- Arth ************************************
नमो नमः।
अष्टमकक्ष्यायाः रुचिरा भाग-3 इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् ।
अधुना वयं एकादश-पाठं पठामः।
पाठस्य नाम अस्ति-
सावित्री बाई फुले
अहं डॉ. विपिन:।
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एकादशः पाठः - सावित्री बाई फुले
हिंदी-सरलार्थम्
(1) उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इस सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्यापाठशाला| एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति| मार्गे कश्चित् तस्या: उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति।
सरलार्थ:- ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी विद्यालय का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र का पहला कन्याओं का विद्यालय है। एक अध्यापिका घर से पुस्तके लेकर चलती है। रास्ते में कोई उसके ऊपर धूल (को) और कोई पत्थर के टुकड़ों को फेकता है।
(2) परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमा महिला जानीथ?
सरलार्थ:- परन्तु वह अपने मजबूत इरादे से नहीं हटती है। अपने विद्यालय में कन्याओं से हँसी-मजाक के साथ बातचीत करती हुई वह शिक्षण कार्य में लगी होती है। उसकी अपनी पढ़ाई भी साथ ही चल रही है। यह महिला (स्त्री) कौन है? क्या आप लोग इस महिला को जानते हैं?
(3) इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया| जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाम्नि स्थाने सावित्री अजायत।
सरलार्थ:- यही महाराष्ट्र की पहली महिला अध्यापिका सावित्री बाई फुले नाम वाली हैं। जनवरी महीने के तीसरे दिन सन् 1831 ईस्वीय वर्ष में महाराष्ट्र के नायगाँव नामक स्थान पर सावित्री ने जन्म लिया।
(4) तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहितौ नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्प: एव आसीत्।
सरलार्थ:- उनकी माता लक्ष्मीबाई और पिता खंडोजी नाम वाले थे। नौ वर्ष की आयु वाली वह ज्योतिबा फुले जी के साथ ब्याही गई। वह भी उस समय तेरह वर्ष के आयु वाले थे।
(5) यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबल: समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्या: मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्सं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।
सरलार्थ:- क्योंकि वह स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे इसलिए सावित्री के मन में स्थित पढ़ाई करने की इच्छा बढ़ गई। इससे आगे उन्होंने आग्रहपूर्वक अंग्रेजी भाषा की भी पढ़ाई की।
(6) 1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणे नगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत। तदानी सा केवल सप्तदशवर्षीया आसीत्।
सरलार्थ:- सन् 1848 ईस्वीय वर्ष में पुणे (पूना) नगर में सावित्री ने ज्योतिबा जी के साथ कन्याओं (लड़कियों) के लिए राज्य का पहला विद्यालय प्रारम्भ किया। उस समय वह केवल सत्रह साल की थी।
(7) 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथकतया तया अपरः विद्यालय: प्रारब्धः। सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखर विरोधम् अकरोत्।
सरलार्थ:- सन् 1851 ईस्वीय वर्ष में छुआछूत के कारण अपमानित किए गए समूह की लड़कियों के लिए अलग से उन्होंने दूसरा विद्यालय आरम्भ किया। सामाजिक बुराइयों का सावित्री ने जोरदार विरोध किया।
(8) विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलत: केचन नापिता: अस्यां रूढौ सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिता: निम्नजातीयाः काश्चित् नार्य: जलं पातुं याचन्ते स्म।
सरलार्थ:- विधवाओं के सिरों को मुंडवाने का निराकरण के लिए वह स्वयं नाइयों से मिलीं। फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाज में अपनी भागीदारी छोड़ दी। एक बार सावित्री ने देखा कि कुएँ के पास फटे हए वस्त्रों में लिपटी कथित नीची जाति की कुछ स्त्रियां जल पीने के लिए माँग रही थीं।
(9) उच्चवर्गीया: उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्धणं अवारयन्। सावित्री एतत् अपमानं सोढुं नाशक्नोत्। सा ता: स्त्रिय: निजगृहं नीतवती| तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः।
सरलार्थ:- ऊँची जाति की स्त्रियां मज़ाक करती हुई कुएँ से पानी पिलाने को मना कर रही थीं। सावित्री इस अपमान को सह न सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले गई और तालाब दिखाकर कहा कि इच्छानुसार पानी ले जाओ। यह तालाब सब लोगों के लिए है।
(10) अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानताया: स्वतंत्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।'महिला सेवामण्डल' 'शिशुहत्या प्रतिबंधक गृह' इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फूलेदम्पत्योः अवदानम् महत्वपूर्णम्।
सरलार्थ:- यहाँ से जल लेने में जाति का बंधन नहीं है। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतंत्रता के पक्ष का समर्थन हमेशा पूरी तरह से किया। 'महिला सेवा मंडल', 'शिशुहत्या प्रतिबंधक गृह आदि संस्थाओं की स्थापना में फुले दम्पती का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
(11) सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।
सरलार्थ:- सत्यशोधक मंडल की गतिविधियों में भी सावित्री बहुत सक्रिय थीं। इस मंडल का उद्देश्य पीड़ित समुदायों को अपने अधिकारों के प्रति जगाना था।
(12) सावित्री अनेकाः संस्था: प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री- व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत्।
सरलार्थ:- सावित्री ने अनेक संस्थाओं को अपने निर्देशन की कुशलता से संचालित किया। अकाल के समय और प्लेग के समय उन्होंने पीड़ित लोगों की बिना थके और लगातार सेवा की। सहायता की वस्तुओं की व्यवस्था के लिए पूरा प्रयास किया।
(13) महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम् असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे खिस्ताब्दे निधनं गता। साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते 'काव्यफुले 'सुबोधरत्नाकर' चेति|
सरलार्थ:- महारोग के फैलाव के समय में सेवा में लगी हुई वे स्वयं इस महामारी से पीड़ित हो गई और सन् 1897 ई० वर्ष में मृत्यु को प्राप्त हो गई। साहित्य रचना में भी सावित्री बढ़-चढ़ कर अर्थात आगे हैं। उनके दो काव्य संग्रह हैं-काव्य फुले और 'सुबोध रत्नाकर'।
(14) भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।
सरलार्थ:- भारत देश में महिलाओं के उत्थान की स्थिति को गहराई से समझने के लिए सावित्री जी का जीवन परिचय अवश्य पढ़ना चाहिए।
(1) उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इस सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्यापाठशाला| एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति| मार्गे कश्चित् तस्या: उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति।
सरलार्थ:- ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी विद्यालय का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र का पहला कन्याओं का विद्यालय है। एक अध्यापिका घर से पुस्तके लेकर चलती है। रास्ते में कोई उसके ऊपर धूल (को) और कोई पत्थर के टुकड़ों को फेकता है।
(2) परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमा महिला जानीथ?
सरलार्थ:- परन्तु वह अपने मजबूत इरादे से नहीं हटती है। अपने विद्यालय में कन्याओं से हँसी-मजाक के साथ बातचीत करती हुई वह शिक्षण कार्य में लगी होती है। उसकी अपनी पढ़ाई भी साथ ही चल रही है। यह महिला (स्त्री) कौन है? क्या आप लोग इस महिला को जानते हैं?
(3) इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया| जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाम्नि स्थाने सावित्री अजायत।
सरलार्थ:- यही महाराष्ट्र की पहली महिला अध्यापिका सावित्री बाई फुले नाम वाली हैं। जनवरी महीने के तीसरे दिन सन् 1831 ईस्वीय वर्ष में महाराष्ट्र के नायगाँव नामक स्थान पर सावित्री ने जन्म लिया।
(4) तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहितौ नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्प: एव आसीत्।
सरलार्थ:- उनकी माता लक्ष्मीबाई और पिता खंडोजी नाम वाले थे। नौ वर्ष की आयु वाली वह ज्योतिबा फुले जी के साथ ब्याही गई। वह भी उस समय तेरह वर्ष के आयु वाले थे।
(5) यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबल: समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्या: मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्सं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।
सरलार्थ:- क्योंकि वह स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे इसलिए सावित्री के मन में स्थित पढ़ाई करने की इच्छा बढ़ गई। इससे आगे उन्होंने आग्रहपूर्वक अंग्रेजी भाषा की भी पढ़ाई की।
(6) 1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणे नगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत। तदानी सा केवल सप्तदशवर्षीया आसीत्।
सरलार्थ:- सन् 1848 ईस्वीय वर्ष में पुणे (पूना) नगर में सावित्री ने ज्योतिबा जी के साथ कन्याओं (लड़कियों) के लिए राज्य का पहला विद्यालय प्रारम्भ किया। उस समय वह केवल सत्रह साल की थी।
(7) 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथकतया तया अपरः विद्यालय: प्रारब्धः। सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखर विरोधम् अकरोत्।
सरलार्थ:- सन् 1851 ईस्वीय वर्ष में छुआछूत के कारण अपमानित किए गए समूह की लड़कियों के लिए अलग से उन्होंने दूसरा विद्यालय आरम्भ किया। सामाजिक बुराइयों का सावित्री ने जोरदार विरोध किया।
(8) विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलत: केचन नापिता: अस्यां रूढौ सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिता: निम्नजातीयाः काश्चित् नार्य: जलं पातुं याचन्ते स्म।
सरलार्थ:- विधवाओं के सिरों को मुंडवाने का निराकरण के लिए वह स्वयं नाइयों से मिलीं। फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाज में अपनी भागीदारी छोड़ दी। एक बार सावित्री ने देखा कि कुएँ के पास फटे हए वस्त्रों में लिपटी कथित नीची जाति की कुछ स्त्रियां जल पीने के लिए माँग रही थीं।
(9) उच्चवर्गीया: उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्धणं अवारयन्। सावित्री एतत् अपमानं सोढुं नाशक्नोत्। सा ता: स्त्रिय: निजगृहं नीतवती| तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः।
सरलार्थ:- ऊँची जाति की स्त्रियां मज़ाक करती हुई कुएँ से पानी पिलाने को मना कर रही थीं। सावित्री इस अपमान को सह न सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले गई और तालाब दिखाकर कहा कि इच्छानुसार पानी ले जाओ। यह तालाब सब लोगों के लिए है।
(10) अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानताया: स्वतंत्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।'महिला सेवामण्डल' 'शिशुहत्या प्रतिबंधक गृह' इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फूलेदम्पत्योः अवदानम् महत्वपूर्णम्।
सरलार्थ:- यहाँ से जल लेने में जाति का बंधन नहीं है। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतंत्रता के पक्ष का समर्थन हमेशा पूरी तरह से किया। 'महिला सेवा मंडल', 'शिशुहत्या प्रतिबंधक गृह आदि संस्थाओं की स्थापना में फुले दम्पती का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
(11) सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।
सरलार्थ:- सत्यशोधक मंडल की गतिविधियों में भी सावित्री बहुत सक्रिय थीं। इस मंडल का उद्देश्य पीड़ित समुदायों को अपने अधिकारों के प्रति जगाना था।
(12) सावित्री अनेकाः संस्था: प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री- व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत्।
सरलार्थ:- सावित्री ने अनेक संस्थाओं को अपने निर्देशन की कुशलता से संचालित किया। अकाल के समय और प्लेग के समय उन्होंने पीड़ित लोगों की बिना थके और लगातार सेवा की। सहायता की वस्तुओं की व्यवस्था के लिए पूरा प्रयास किया।
(13) महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम् असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे खिस्ताब्दे निधनं गता। साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते 'काव्यफुले 'सुबोधरत्नाकर' चेति|
सरलार्थ:- महारोग के फैलाव के समय में सेवा में लगी हुई वे स्वयं इस महामारी से पीड़ित हो गई और सन् 1897 ई० वर्ष में मृत्यु को प्राप्त हो गई। साहित्य रचना में भी सावित्री बढ़-चढ़ कर अर्थात आगे हैं। उनके दो काव्य संग्रह हैं-काव्य फुले और 'सुबोध रत्नाकर'।
(14) भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।
सरलार्थ:- भारत देश में महिलाओं के उत्थान की स्थिति को गहराई से समझने के लिए सावित्री जी का जीवन परिचय अवश्य पढ़ना चाहिए।
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