7.2.1 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम् पाठः -2 नित्यं पिबामः सुभाषितरसम् Class- 7th, Subject - Sanskrit, Lesson-2 Nityam PibamaH Subhashitam NCERT - दीपकम् / Deepakam
7.2.1 कक्षा- सप्तमी, विषय:- संस्कृतम्
पाठः -2 नित्यं पिबामः सुभाषितरसम्
Class- 7th, Subject - Sanskrit,
Lesson-2 Nityam PibamaH Subhashitam
NCERT - दीपकम् / Deepakam
************************************
श्लोक अर्थ सहित Shalok
🔷 श्लोक 1
वस्त्रेण वपुषा वाचा विद्यया विनयेन च।
वकारैः पञ्चभिर्युक्तः नरः भवति पूजितः॥
शब्दार्थ: वस्त्र, शरीर, वाणी, विद्या, विनय — इन पाँच ‘व’ गुणों से युक्त व्यक्ति पूजनीय होता है।
भावार्थ: अच्छे वस्त्र, स्वस्थ शरीर, मधुर वाणी, विद्या और विनम्रता से युक्त मनुष्य सम्मान प्राप्त करता है।
---
🔷 श्लोक 2
षड्दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
शब्दार्थ: षट् दोष — निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य, दीर्घसूत्रता।
भावार्थ: जो व्यक्ति ऐश्वर्य चाहता है, उसे ये छह दोष—अत्यधिक नींद, सुस्ती, भय, क्रोध, आलस्य, कार्य टालना—त्याग कर कर्मशील रहना चाहिए।
---
🔷 श्लोक 3
अद्भिर्गात्राणि शुद्ध्यन्ति मनः सत्येन शुध्यति।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति॥
शब्दार्थ: जल से शरीर, सत्य से मन, विद्या एवं तप से आत्मा, ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।
भावार्थ: स्नान, सत्य बोलना, विद्या-तप, और ज्ञान-अर्जन से सम्पूर्ण आत्मिक शुद्धि होती है।
---
🔷 श्लोक 4
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
शब्दार्थ: हिन्दमहासागर के उत्तर, हिमालय के दक्षिण में स्थित उस गण का नाम भारतवर्ष है, जहाँ भारतीं संतानें रहती हैं।
भावार्थ: यह श्लोक भारत के भौगोलिक स्वरूप और नाम का अर्थ स्पष्ट करता है।
---
🔷 श्लोक 5
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥
शब्दार्थ: जल की बूंद-बूंद से घड़ा भरता है; इसी प्रकार धीरे-धीरे प्रयत्न से विद्या, धर्म और धन की प्राप्ति होती है।
भावार्थ: निरंतर अभ्यास एवं परिश्रम से सभी अच्छे गुण व उपलब्धियाँ मिलती हैं।
---
🔷 श्लोक 6
यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पण्डितानुपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैर्नलिनीदलमिव विस्तारितता बुद्धिः॥
शब्दार्थ: जो पढ़ता, लिखता, देखता, सवाल पूछता और विद्वानों से मिलता है—उसकी बुद्धि सूर्य की किरणों से खिलने वाले कमल की तरह विकसित होती है।
भावार्थ: सतत् अध्ययन, साक्षात्कार और मार्गदर्शन से बुद्धि उज्जवल व पुष्पित होती है।
---
🔷 श्लोक 7
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥
शब्दार्थ: मधुर वचन सुनकर सभी प्राणी प्रसन्न होते हैं। वाणी में कोई गरीबी नहीं होती, इसलिए वचन में मधुरता रखें।
भावार्थ: प्रिय वाणी से संबंध मजबूत होते हैं; हर समय कोमलता से बोलना चाहिए क्योंकि इससे कभी नुकसान नहीं होता।
---
🔷 श्लोक 8
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्धमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥
शब्दार्थ: आलस्य ही मनुष्य का बड़ा शत्रु है। परिश्रम का सहयोगी कोई नहीं; जो उससे जुड़ा रहता है, वह दुख-दुर्लभ करता है।
भावार्थ: आलस्य से दूर रहना चाहिए क्योंकि यह सबसे बड़ा बाधक है, और परिश्रम सबसे सच्चे मित्र की तरह हमें लक्ष्य तक पहुँचाता है।
---
🔷 श्लोक 9
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।
व्यासवचनद्वयं तन्मे स्मरणं सदा भवेत्॥
शब्दार्थ: दूसरों की सहायता करना पुण्य है; उन्हें कष्ट देना पाप है—यह व्यास मुनि का महान निर्देश है।
भावार्थ: सदैव दूसरों की भलाई हेतु कर्म करना चाहिए और किसी को दुख नहीं पहुँचाना चाहिए।
---
Comments
Post a Comment