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8.4.1 कक्षा - अष्टमी, विषय: - संस्कृतम् चतुर्थ: पाठ: (सदैव पुरतो निधेहि चरणम्) Class 8th, Subject-Sanskrit, Lesson-4 (Sadaiv-Purato-Nidhehi-CharanaM)

       8.4.1 कक्षा- अष्टमी,  विषय:- संस्कृतम्
                    चतुर्थ:
पाठ:  

         (सदैव पुरतो निधेहि चरणम्)  


     Class- 8th,  Subject-Sanskrit,

                     Lesson-4
    (Sadaiv-Purato-Nidhehi-CharanaM) 

       ************************************

🙏 नमो नमः। 
अष्टमकक्ष्यायाः 'रुचिरा भाग-3' इति पाठ्यपुस्तकस्य शिक्षणे स्वागतम् । 
अद्य वयं चतुर्थं पाठं पठामः। 
पाठस्य नाम अस्ति -
               सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
अहं डॉ. विपिन:। 

       ************************************

        “सदैव पुरतो निधेहि चरणम्” इति गीतं राष्ट्रवादिकविना श्रीधरभास्करवर्णेकर-महोदयेन विरचितम् अस्ति। जीवने अनेकाः समस्याः भवन्ति धैर्येण आत्मविश्वासेन च तासां समाधानं कृत्वा सर्वदा अग्रे गन्तुम् इदम् गीतं प्रेरयति। अनेन गीतेन कविना जनजागरणस्य कर्मठतायाः च सन्देश: प्रदत्तः  अस्ति।

  विशिष्टम्-

       इदं प्रेरणागीतम् अतएव गीते 'लोट्लकारस्य'  'विधिलङ्लकारस्य' च प्रयोगः अस्ति। यतोहि 
अनयोः लकारयोः प्रयोगः प्रेरणार्थे भवति।
       ************************************
                   सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
                 
     सदैव (सदा+एव)    - सदा/ हमेशा ही
    
पुरत:                    - आगे
    
निधेहि                  - रखो
    
चरणम्                  - चरण/ कदम 

इस प्रकार पाठ का अर्थ हुआ-
        हमें सदा आगे ही कदम रखना चाहिए 

                          अथवा

        सदा आगे बढ़ते रहना चाहिए।

        श्रीधरभास्कर वर्णेकर द्वारा विरचित प्रस्तुत गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है। इसके प्रणेता राष्ट्रवादी कवि हैं और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का सन्देश दिया है। 

                       कवि-परिचय:

      डाॅ. श्रीधरभास्कर वर्णेकर (1918-2005 ई.) नागपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में काव्य, नाटक, गीत इत्यादि विधाओं की अनेक रचनाएँ की। तीन खण्डों में संस्कृत-वांंगमय-कोश  का उन्होंने सम्पादन किया। इनकी रचनाओं में ‘शिवराज्योदयम्’ महाकाव्य एवं ‘विवेकानन्दविजयम्’ नाटक सुप्रसिद्ध हैं।
     प्रस्तुत गीत में पज्झटिका छन्द का प्रयोग है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। हिन्दी में इसे चोपाई कहा जाता है।

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                               चतुर्थः पाठः
                      सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
                       (लोट्-विधिलङ्-प्रयोगः)

   चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।


१) गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्। 
विनैव यानं नगारोहणम्। 
 बलं स्वकीयं भवति साधनम्। 
       सदैव पुरतो .......................।।




२) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंंस्राः पशवः परितो घोराः।। 
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
     सदैव पुरतो .......................।।



३) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाsनुरक्तिम्।।
  कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्। 
          सदैव पुरतो .......................।।      


      ************************************ 


           -पाठ अन्वय, संधि-विच्छेद और अर्थ सहित-

चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।

अन्वयः -
चल चल। पुरतः चरणं निधेहि।
सदा पुरतः एव चरणं निधेहि।

भावार्थ:-
चलो चलो। आगे कदम बढाते चलो।
हमेशा आगे कदम बढाते चलो। 

शब्दार्थाः

1. पुरतो (पुरतः)               - आगे
2. निधेहि                        - रखो 

 

         ------------------------------------- 


१) गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्


विनैव यानं नगारोहणम्।

बलं स्वकीयं भवति साधनम्


सदैव पुरतो .......................।।

     अन्वयः -
ननु गिरिशिखरे निजनिकेतनम् (अस्ति)।
यानं विना एव नगारोहणम् (करणीयम् अस्ति) ।
स्वकीयं बलं साधनं (एव) भवति ।
(अतः) सदैव पुरतः चरणं निधेहि ।

     भावार्थ:-
निश्चित ही अपना घर पर्वत की चोटी पर है।
साधन (यान) के बिना ही पर्वत पर चढना है।
अत्मिवश्वास से अगे बढो़गे तो निश्चित ही लक्ष्य प्राप्त होगा  क्योकि स्वयं की शक्ति ही आगे बढने में सहायक होती है।


इसलिए सदा आगे कदम बढाते चलो।

शब्दार्थाः

1. गिरिशिखरे                           - पर्वत की चोटी पर
2. निजनिकेतनम्                      - अपना निवास
3. विनैव (विना+एव)                 - बिना ही
4. नगारोहणम् (नग+आरोहणम्)  - पर्वत पर चढ़ना
5. स्वकीयम्                             - अपना

         -------------------------------------


२) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।


हिंंस्राः पशवः परितो घोराः।। 


सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।


सदैव पुरतो .......................।।

अन्वयः -
पथि विषमाः प्रखराः पाषाणाः (सन्ति)।
परितो घोराः हिस्राः पशवः (सन्ति)।
यद्यपि गमनं सुदुष्करं खलु ।
(तथापि) सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

     भावार्थ:-
हमारे मार्ग में असामान्य (टेढे़-मेढे़) और नुकीले पत्थर है तथा चारों ओर भयंकर वन्यजीव हैं। माना कि जाना (वहॉं पहुंचना) अत्यन्त कठिन है तदापि हमें
सदा आगे कदम बढा़ते रहना है।

शब्दार्थाः

1. पथि                           - मार्ग में
2. पाषाणाः                     - पत्थर
3. विषमाः                       - असामान्य
4. प्रखराः                        - तीक्ष्ण, नुकीले
5. हिंस्राः.                        - हिंसक
6. परितो (परितः)             - चारों ओर
7. घोराः                          - भयङ्कर, भयानक
8. सुदुष्करम्                    - अत्यन्त कठिनतापूर्वक साध्य

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३) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।


विधेहि राष्ट्रे तथाsनुरक्तिम्।।


कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्। 


सदैव पुरतो .......................।।     

अन्वयः -
भीतिं जहीहि, शक्तिं भज भज।
तथा राष्ट्रे अनुरक्तिम् विधेहि।
सततं ध्येय-स्मरणं कुरु कुरु ।
सदैव पुरतः चरणं निधेहि। 

भावार्थ:-
हमें भय को छोड़कर अपने बल/शक्ति का स्मरण करना चाहिए। देश के प्रति प्रेम प्रदर्शित करना चाहिए। सदा अपने
कर्तव्य का स्मरण करते हुए हमेंशा 

आगे बढ़ते रहना है ।

शब्दार्थाः

1. जहीहि                     - छोड़ो/छोड़ दो
2. भज                        - भजो, जपो
3. विधेहि                     - करो
4. अनुरक्तिम्                - प्रेम, स्नेह
5. सततम्                    - लगातार
6. ध्येयस्मरणम्             - उद्देश्य (लक्ष्य) का स्मरण

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                        हिंदी कविता में रूपांतर 

चलो आगे कदम बढ़ाओ

सदा आगे कदम बढ़ाओ। 

 

 अपना घर पर्वत-चोटी पर

 बिन जहाज़ के चढ़ना उसपर,

 साधन अपने बल को बनाओ 

 सदा आगे कदम बढ़ाओ 

  

मार्ग में होंगे कंकड़-पत्थर 

और मिलेंगे पशु भयंकर, 

 चाहे कठिनता जितनी पाओ

 सदा आगे कदम बढ़ाओ।

 

छोड़ो डर भजो शक्ति को

दिल में रखो राष्ट्रभक्ति को, 

अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाओ 

                     सदा आगे कदम बढ़ाओ।                        

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                          धन्यवादाः। 

      ************************************

   
      (1.1) पठनाय (PDF)  
   

      (1.2) पठनाय (PPT)        

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             (2) श्रवणाय  (Audio )- 
      

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 (3) दर्शनाय - दृश्य-श्रव्य (Video ) 

          (3.1)  पाठ: 

https://youtu.be/jXl434lPvO4 

     (डॉ. विपिन:) 

          (3.2) पाठ: 

https://youtu.be/W3zIjK1Sd0s

     (OnlinesamskrTutorial)     

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       (4)   अभ्यास-कार्यम् -प्रश्नोत्तराणि 
                  (Lesson Exercise )  
 
     
https://sanskritprabha.blogspot.com/2020/06/842-class-8th-subject-sanskrit-lesson-4.html 

Video 

https://youtu.be/D2sezOlic2o 

     (डॉ. विपिन:) 

          -------------------------------------

           (5) अभ्यासाय  (B2B Worksheet)          

       ************************************

                          

  


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